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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सब से पहले :
हम आपके आभारी हैं कि आप हमारी साइट पर विश्वास करते हैं, और हम अल्लाह तआला से यह दुआ करते हैं कि हम आपके अच्छे गुमान पर पूरे उतरें, और (अल्लाह) आपको मार्गदर्शनऔर तौफीक़ प्रदान करे। हम आपके इस बात पर शुक्रगुज़ार हैं कि आप जिन चीज़ों से अनभिज्ञ थे उन्हें सीखने के लिए शीघ्रता की। और यही हर मुसलमान पर अनिवार्य है। क्योंकि आदमी ज्ञानी नहीं पैदा होता है, और जैसाकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है कि "ज्ञान सीखने से आता है।"इस हदीस को इब्ने हजर ने फत्हुल बारी में हसन कहा है। और आप यह न समझें कि जिस चीज़ के बारे में आप नहीं जानते हैं, उसके बारे में प्रश्न करना मूर्खता है। बल्कि यह एक पसंदीदा चीज़ है जिस पर इंसान की सराहना करनी चाहिए।
दूसरा :
जहाँ तक नमाज़ से संबंधित प्रश्नों की बात है तो प्रश्न संख्या (13340) में नमाज़ की विधि और उसमें पढ़े जाने वाले अज़कार (दुआओं) के बारे में आपको विस्तृत उत्तर मिल जायेगा।
तीसरा :
जहाँ तक नमाज़ में अरबी या अन्य भाषा में पढ़ने का संबंध है, तो प्रश्न संख्या (3471)में अल्लाह की आज्ञा से आपको इसके बारे में संपूर्ण उत्तर मिल जायेगा।
तथा हम आपको कम से कम सूरतुल फातिहा और नमाज़ के अरकान व वाजिबात से संबंधित चीज़ों में अरबी भाषा सीखने का अति लालायित होने की सलाह देते हैं। और यह चीज़ आसान है। या तो आप इसे किसी मुसलमान से सीख सकते है जिसे वह स्मरण (याद) हो और वह उसे अच्छी तरह पढ़ सकता हो, और या तो किसी वेब साइट पर जायें जो क़ुर्आन करीम की आडियो रिकार्डिंग पर आधारित हो, और उसे सुनकर वहाँ से याद कर लें।
चौथा :
जहाँ तक नमाज़ के छोड़ने का संबंध है तो यह दो हाल से खाली नहीं है :
प्रथम : आपकी अपनी इच्छा के बिना नमाज़ छूट जाये, बल्कि किसी शरई उज़्र (धार्मिक कारण) से हो जैसे कि भूल जाना, या सो जाना, जबकि आप उसे उसके ठीक समय पर अदा करने के लिए लालायित हों, तो इस हालत में आप मा’ज़ूर (क्षम्य) समझे जायेंगे, और आपके लिए अनिवार्य है कि उसकी याद आते ही उसकी कज़ा करलें। इसका प्रमाण सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 681)में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के फज्र की नमाज़ से सो जाने के क़िस्से में वर्णित है। चुनांचि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम आपस में एक दूसरे से फुसफुसाने लगे कि "हमने नमाज़ के बारे में जो कोताही की है उसका कफ्फारा (परायश्चित) क्या है ?" तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "सो जाने में कोई कोताही की बात नहीं है, कोताही की बात उस आदमी के हक़ में है जो नमाज़ न पढ़े यहाँ तक कि दूसरी नामज़ का समय आ जाये। अत: जिस से ऐसा हो जाये तो वह उसे उसकी ध्यान आते ही पढ़ ले।"
किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आदमी जानबूझकर नमाज़ से सोया रहे यहाँ तक कि वह उस से छूट जाये, फिर नींद का बहाना करे। या वह नमाज़ की अदायगी में सहायक रास्तों (कारणों) को अपनाने में कोताही करे फिर इसका बहाना बनाये। बल्कि उसके ऊपर अनिवार्य यह है कि वह हर उस कारण को अपनाये जिसकी वह ताक़त रखता है, जैसाकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस घटना में किया, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक आदमी को बेदार रहने के लिए नियुक्त कर दिया ताकि वह उन्हे नमाज़ के लि जगा सके, किन्तु वह (स्वयं) सो गया और उन्हें बेदार नहीं कर सका। तो इस स्थिति में आदमी क्षम्य (मा’ज़ूर) समझा जायेगा।
द्वितीय :
आदमी से जानबूझकर नमाज़ छूट जाये, तो यह एक बहुत बड़ी अवज्ञा, पाप और खतरनाक जुर्म है, यहाँ तक कि कुछ विद्वानों ने ऐसा करने वाले आदमी के कुफ्र का फत्वा दिया है। (जैसाकि आदरणीय शैख इब्ने बाज़ के फतावा व मक़ालात 2/89 में है)।
ऐसे आदमी पर सच्ची तौबा (क्षमा याचना) करना अनिवार्य है, इस बात पर सभी विद्वानों की सहमति है। जहाँ तक उस नमाज़ की क़ज़ा का संबंध है, तो विद्वानों ने इसमें मतभेद किया है कि यदि वह बाद में उसकी क़ज़ा करे तो क्या वह नमाज़ उस से स्वीकार होगी या क़बूल नहीं होगी ? तो अधिकांश विद्वानों का मत यह है कि वह उस नमाज़ की क़ज़ा करेगा और वह गुनाह के साथ उस से शुद्ध होगी। (अर्थात् जब वह तौबा न करे तो गुनाहगार होगा -और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है-) जैसाकि शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने "अश्शरहुल मुम्ते" (2/89) में उनसे उल्लेख किया है। तथा शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने जिस चीज़ को राजेह कहा है वह यह है कि वह (नमाज़) शुद्ध नहीं होगी, बल्कि उसके लिए उसकी क़ज़ा करना ही धर्म संगत नहीं है। आप रहिमहुल्लाह ने "अल-इिख्तयारात" (34) में फरमाया : जानबूझ कर नमाज़ छोड़ देने वाले के लिए उसकी क़ज़ा करना धर्म संगत नहीं है, और न ही वह नमाज़ उस से शुद्ध होगी। बल्कि वह अधिक से अधिक ऐच्छिक (नफ्ल) नमाज़ पढ़े। यही सलफ सालेहीन के एक समूह का कथन है।"
वर्तमान काल में जिन लोगों ने इसको राजेह ठहराया है उनमें से शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह हैं जिसका हवाला पीछे गुज़र चुका है। उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन से दलील पकड़ी है : "जिसने कोई ऐसा कार्य किया जिस पर हमारा आदेश नहीं है तो वह अस्वीकार्यनीय है।" (बुखारी व मुस्लिम)
अत: आप पर अनिवार्य है कि इस चीज़ से सख्त परहेज़ करें और नमाज़ को उसके ठीक समय पर अदा करने के लालायित बनें। जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है :
إِنَّ الصَّلاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَاباً مَوْقُوتاً [ النساء : 103]
"नि:सन्देह नमाज़ मोमिनों पर निर्धारित समयों पर अनिवार्य है।" (सूरतुन्निसा : 103)
जहाँ तक तौबा का संबंध है तो इसका विस्तृत उत्तर आप इसी साइट पर प्रश्न संख्या (14289) में पायेंगे।
जहाँ तक उन ज़बीहों का संबंध है जिन्हें गैर मुस्लिम ज़ब्ह करते हैं, तो इसका उत्तर आप प्रश्न संख्या (10339)में पायेंगे।
और आप ने समुद्री खानों के बारे में जो प्रश्न किया है, तो यह दरअसल सब के सब हलाल हैं, इसका प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :
أُحِلَّ لَكُمْ صَيْدُ الْبَحْرِ وَطَعَامُهُ مَتَاعًا لَكُمْ [ المائدة : 96]
"तुम्हारे लिए समुद्र का शिकार पकड़ना और उसका खाना हलाल किया गया है, तुम्हारे फायदे और लाभ के लिए।" (सूरतुल माइदा : 96)
हम अल्लाह तआला से यह प्रश्न करते हैं कि वह आप को अरबी भाषा सीखने, दीन की समझ हासिल करने और नेकियों का तोशा जमा करने की तौफीक़ प्रदान करे। नि:सन्देह वह इसका मालिक और इस पर सर्वशक्तिमान है।