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शाबान के महीने के अंत में उम्रा का एहराम बाँधा और रमज़ान में उम्रा किया तो क्या उसे रमज़ान में उम्रा करने का अज्र मिलेगा ॽ

26-08-2012

प्रश्न 141234

एक आदमी ने शाबान के महीने के अंतिम दिन में मगरिब की अज़ान से पहले उम्रा का एहराम बांधा, और मगरिब के बाद रमज़ान के प्रवेश होने का ऐलान किया गया, तो क्या यह उसके लिए रमज़ान में उम्रा करना समझा जायेगा या नहीं ॽ मतलब यह कि वह एहराम की नीयत में मगरिब से पहले दाखिल हुआ और रात में - रमज़ान की रात में - उम्रा किया।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

रमज़ान में उम्रा करने का बहुत बड़ा सवाब है, और वह एक हज्ज का सवाब है।

इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अनसार की एक औरत से फरमाया : “तुझे हमारे साथ हज्ज करने से किस चीज़ ने रोक दिया ॽ” उसने कहा :हमारे पास केवल दो ऊँट थे, तो एक ऊँट पर उसके बच्चे के बाप और उसके बेटे (यानी उसके पति और बेटे) ने हज्ज किया, और एक ऊँट हमारे लिए छोड़ा जिस पर हम पानी लाते हैं। आप ने फरमाया : “जब रमज़ान आए तो तुम उम्रा करो,क्योंकि उसमें उम्रा करना एक हज्ज के (सवाब के) बराबर है।” और मुस्लिम की एक रिवायत के शब्द यह हैं किः “मेरे साथ हज्ज” (करने के सवाब के बराबर है)। इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1782) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1256) ने रिवायत किया है।

और ताकि मुसलमान को यह बड़ा अज्र व सवाब प्राप्त हो : उसके लिए अनिवार्य है कि वह रमज़ान के महीने में ही उम्रा का एहराम बाँधे और उसके मनासिक (कार्यों) को अदा करे, न कि शाबान के अंतिम दिन में उसका एहराम बाँधे, भले ही उसने उसके आमाल को रमज़ान के महीने में अदा किया हो,और न ही यह कि रमज़ान के महीने में एहराम बांधे और शव्वाल में उसके मनासिक को अदा करे।

तो ये दो स्थितियाँ हैं जिनमें उम्रा अदा करने वाले को हज्ज का अज्र नहीं मिलेगा :

पहली स्थिति : वह शाबान के महीने के अंत में उम्रा का एहराम बाँधे और रमज़ान का महीना शुरू होने के बाद उसके मनासिक अदा करे।

दूसरी स्थिति : रमज़ान के आखिरी दिन का सूरज डूबने से पहले उम्रा का एहराम बाँधे और ईद की रात में उसके मनासिक को अदा करे।

शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“रमज़ान में उम्रा करनेवाले के लिए ज़रूरी है कि उसका उम्रा एहराम के शुरू होने से उसके अंत तक रमज़ान ही के महीने में हो, इसके आधार पर हम एक दूसरा उदाहरण लेते हैं :

यदि एक आदमी शाबान की अंतिम घड़ी में मीक़ात पर पहुँचे, और उम्रा का एहराम बाँध ले, फिर सूरज डूब जाए, और सूरज डूबने के साथ रमज़ान का महीना शुरू हो जाए, फिर वह मक्का आए, और तवाफ करे, सई करे, और बाल कटाए तो क्या यह कहा जायेगा कि : उसने रमज़ान में उम्रा किया है ॽ

इसका उत्तर यह है कि : नहीं, क्योंकि उसने रमज़ान के महीने के शुरू होने से पूर्व उम्रा शुरू किया है।

एक तीसरा उदाहरण : एक आदमी ने रमज़ान के महीने के अंतिम दिन सूरज डूबने से पहले उम्रा का एहराम बाँधा, और ईद की रात में उम्रा के लिए तवाफ और सई किया, तो क्या यह कहा जायेगा कि : उसने रमज़ान में उम्रा किया है ॽ

इसका उत्तर यह है कि : नहीं, क्योंकि उसने रमज़ान में उम्रा नहीं किया है ; इसलिए कि उसने उम्रा का एक भाग रमज़ान के महीने से बाहर निकाल दिया है, जबकि रमज़ान में उम्रा एहराम के शुरू से उसके अंत तक होना चाहिए।” अंत हुआ।

“मजमूओ फतावा शैख इब्ने उसैमीन” (21/352, 353)

रोज़ेदार के लिए मुस्तहब रोज़े हज्ज और उम्रा का हुक्म
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