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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।सर्व प्रथम :
यौन उत्तेजक औषधियों की हानियों का वर्णन :
डॉक्टर्स नपुंसकता के अधिकतर मामलों का उपचार करने में सक्षम हैं, तथा उन्हों ने कई उपयोगी तरीक़ों और उपायों की खोज की है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
● कामोत्तेजक दवाओं द्वारा उपचार जिनको गोलियों के रूप में मुंह से लिया जाता है, जैसे वियाग्रा और सियालिस वग़ैरह।
● स्थानीय इंजेक्शन थेरेपी जो धमनियों का विस्तार करती है।
● मूत्रमार्ग के माध्यम से छोटी सपोसिटरी (दवा की बत्ती) देकर उपचार।
● शल्यचिकित्सा प्रक्रियाओं (सर्जरी) के माध्यम से सहायक उपकरणों द्वारा उपचार, और इस पद्धति का केवल तभी उपयोग किया जाता है जब उपर्युक्त पिछली विधियां विफल हो जाएँ।
इन चिकित्सीय विधियों में से कुछ हानिकारक हैं और उसके दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) हैं, विशेष रूप से मौखिक रूप से लिए जानेवाले कामोत्तेजक, और इसी तरह सहायक उपकरण भी हैं।
चुनाँचे मुंह के रास्ते से ली जाने वाली सभी कामोत्तेजक दवाएँ जो गोलियों के रूप में होती हैं, इन बीमारियों का कारण बनती हैं : सिर दर्द, नाक का जमाव, अपचन के साथ-साथ पेट दर्द, प्रकाश से अतिसंवेदनशीलता, पीठ के निचले हिस्से या माँसपेशियों में कुछ दर्द।
इसी प्रकार धमनियों के रुकावट के रोगों से पीड़ित रोगियों द्वारा डॉक्टर से परामर्श के बिना इन दवाओं का इस्तेमाल उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है; क्योंकि इन रोगियों में से अधिकतर लोग “नाईट्रेट” नामक दवा लेते हैं, जबकि यह दवा वियाग्रा के साथ दृढ़ता से प्रतिक्रिया करती है, क्योंकि वियाग्रा इस दवा को रोगी के शरीर में अपघटन से रोकता है, और यह (रुकावट) रक्तचाप को गंभीर गिरावट की ओर ले जाती है, जो मौत का कारण बन सकता है
दूसरा :
कामोत्तेजक दवाएँ सेवन करने का हुक्म :
कामोत्तेजक दवाओं का इस्तेमाल दो स्थितियों में किया जाता है :
पहली स्थिति :
बुढ़ापे की वजह से या बीमारी के उपचार के लिए कामोत्तेजक लेने की आवश्यकता हो। ऐसी स्थिति में इनका इस्तेमाल करना शरीअत के अनुसार जायज़ (वैध) है। क्योंकि इस्लाम मुसलमान को उपचार करने और उपचार के कारणों को अपनाने का आदेश देता है। इसी संदर्भ में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : (तुम लोग दवा इलाज करो, क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने कोई ऐसी बीमारी नहीं बनाई जिसकी दवा न बनाया हो, सिवाय एक बीमारी ‘बुढ़ापा’ के।) इस हदीस को तिर्मिज़ी, अबू दाऊद और इब्ने माजा ने रिवायत किया है, तथा तिर्मिज़ी ने इसे सहीह क़रार दिया है।
यह शरीअत के अनुसार मुस्तहब भी हो सकता है जैसे कि उसपर संतान की प्राप्ति निष्कर्षित होती हो, जिसको मांगने की शरीयत के ग्रंथो में सिफारिश की गई है। उन्हीं ग्रंथों में से अल्लाह तआला का यह फरमान भी है :
( فَالآَنَ بَاشِرُوهُنَّ وَابْتَغُوا مَا كَتَبَ اللَّهُ لَكُمْ ) [البقرة : 187]
‘‘अब तुम्हें उनसे संभोग करने की और अल्लाह की लिखी हुई चीज़ को ढूंढने की अनुमति है।’’ (सूरतुल बक़रा : 187)
तथा अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (तुम अधिक प्रेम करनेवाली तथा बहुत बच्चे जननेवाली औरतों से शादी करो क्योंकि मैं तुम्हारी अधिकता के कारण अन्य उम्मतों पर गर्व करने वाला हूँ।) इस हदीस को अबू दाऊद और नसाई ने रिवायत किया है और यह हदीस सहीह है।
किन्तु विशेषज्ञों द्वारा उल्लिखित नियमों को ध्यान में रखना ज़रूरी है क्योंकि वे लोग इस क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। विशेषज्ञों ने जिन नियमों का उल्लेख किया है उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
(क) नपुंसक रोगी को किसी विशेषज्ञ भरोसेमंद डाक्टर से परामर्श के बाद ही उन कामोत्तेजक दवाओं का सेवन करना चाहिए।
(ख) उसे इन कामोत्तेजकों पर पूरी तरह भरोसा नहीं करना चाहिए कि उनके बिना शरीर अपने कर्तव्यों का प्रदर्शन न कर सके।
(ग) इनके इस्तेमाल करने में अपव्यय नहीं करना चाहिए क्योंकि उनका सेवन करने में अपव्यय पर ऐसी हानियाँ निष्कर्षित होती हैं जो उसकी जान ले सकती हैं।
दूसरी स्थिति :
अधिक आनंद वग़ैरह पाने के लिए कामोत्तेजक दवाओं का प्रयोग करना। इस स्थिति में कामोत्तेजकों के इस्तेमाल करने का हुक्म, बिना आवश्यकता के इन कामोत्तेजकों का सेवन करने पर निष्कर्षित होने वाले परिणामों को देखने पर निर्भर है। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिक आनंद पाने के लिए स्वस्थ लोगों द्वारा कामोत्तेजक दवाओं का उपयोग गंभीर नुकसान का कारण बन सकता कहा है। चिकित्सा अनुसंधान यह पुष्टि करता है कि स्वस्थ व्यक्तियों द्वारा कामोत्तेजकों का इस्तेमाल दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव डालता है; क्योंकि उत्तेजक शरीर को एक ऐसी गतिविधि देते हैं जो कुछ ही घंटों तक जारी रह सकता है, और फिर शरीर उस गतिविधि की क़ीमत थकान एवं अतिश्रम से चुकाता है। और यह बात ज्ञात है कि जो चीज़ भारी या शुद्ध नुक़सान का कारण होः तो शरीयत के ग्रंथ और उसके नियम उसकी अनुमति देने से इनकार करते हैं।
‘‘अल-मराक़ी’’ में कहा गया है :
“फैसला उसी के आधार पर होगा जो कुछ शरीअत से साबित है, और हर वह चीज़ जो नुक़सान की ओर ले जाए मूलतः वह निषिद्ध है।”
शैख़ सअद बिन तुर्की अल-ख़स्लान के पर्यवेक्षण में शैख़ ज़ैनुल-आबिदीन बिन अश-शैख़ बिन अज़वीन के एम. ए. की थेसिस “अन-नवाज़िल फी अल-अशरिबह” (पृष्ठ संख्या : 237-240) से सारांशित किया गया।
तथा लाभ के लिए प्रश्न संख्या : (79072) का उत्तर भी देखें।
तथा “शरीअत की राय क्या है” इस कथन के हुक्म की जानकारी के लिए प्रश्न संख्या : (72841) का उत्तर देखें।
और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है है।