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अगर किसी ने अपने धन का एक हिस्सा ज़कात के रूप में निर्धारित किया फिर वह उससे चोरी हो गया, तो क्या उसे उसका बदला निकालना होगाॽ

10-02-2022

प्रश्न 159996

इस साल रमजान में मेरे घर में चोरी हो गई थी। मेरे पास एक लाख स्टर्लिंग पौंड का सोना था, लेकिन – अल्लाह का शुक्र है – उसमें से केवल पचास हज़ार पौंड की क़ीमत के सोने की चोरी हुई। तथा मैंने कुछ पैसा अपने सोने की ज़कात निकालने के उद्देश्य से अलग रख दिया था, लेकिन - दुर्भाग्य से - वह भी चोरी हो गया। तो क्या इस स्थिति में मुझे ज़कात देनी होगीॽ क्योंकि कुछ लोग कहते हैं : चूँकि इरादा पहले से मौजूद था और तुमने ज़कात की राशि निर्धारित कर दी थी और उसे अलग रख दिया था, इसलिए अब तुमपर कुछ भी (अनिवार्य) नहीं है और तुम्हें उसे फिर से निकालने की कोई आवश्यकता नहीं है। तो क्या यह बात सही हैॽ जबकि कुछ दूसरे कहते हैं : नहीं, बल्कि तुम्हें इसे निकालना ही होगा, क्योंकि तुमने दरअसल उसे निकाला ही नहीं है। अतः मुझे आशा है कि आप इस मामले को स्पष्ट करेंगे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह आपके नुक़सान की भरपाई करे और आपका धन आपको लौटा दे, और जो कुछ आपसे लिया गया है, आपको उससे बेहतर एवज़ प्रदान करे।

दूसरा :

जहाँ तक ज़कात के उस धन का संबंध है जिसे आपने अपने सोने की ज़कात के तौर पर निर्धारित किया था, फिर वह आपसे चोरी हो गया : तो आपपर उसे फिर से निकालना अनिवार्य है। क्योंकि ज़कात उसके हक़दारों तक नहीं पहुँची।

शैख मनसूर अल-बहूती रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“और अगर वह अपनी ज़कात निकाल दे, अर्थात् : उसे अलग रख दे। फिर वह ग़रीब व्यक्ति के उसे अपने क़ब्ज़े में लेने से पहले नष्ट हो जाए, तो धन के मालिक पर उसका बदल (देना) अनिवार्य है।” "कश्शाफ अल-क़िना" (2/269) से उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :

एक आदमी है, जिसपर उसके धन की ज़कात देय हो गई। तो उसने अपनी ज़कात निकाली और उसे गरीबों और ज़रूरतमंदों में बाँटने के लिए किसी को दे दी। और उस आदमी ने उसे सुरक्षित स्थान पर रख दिया। फिर वह उससे चोरी हो गई। क्या उसे फिर से ज़कात देनी होगीॽ

तो उन्होंने जवाब दिया :

“इन दिरहमों (पैसों) की जरूरतमंदों के लिए गारंटी दी जाएगी, क्योंकि वे उन तक नहीं पहुँचे, न ही वे उनके प्रतिनिधि तक पहुँचे। इसलिए उनकी गारंटी दी जाएगी (ज़िम्मेदारी ली जाएगी)।” “मजमूओ फतावा अश-शैख अल-उसैमीन” (18/479, 480) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा शैख रहिमहुल्लाह से यह भी पूछा गया :

आज मेरा बटुआ (पर्स) चोरी हो गया, जिसमें कुछ धन राशि थी जो मैंने ज़कात के लिए अलग कर रखी थी। तो क्या इस खो गई या चोरी हो गई राशि के कारण, ज़कात समाप्त (माफ़) हो जाएगी, या क्या मुझे अब भी ज़कात निकालनी होगीॽ

तो उन्होंने उत्तर दिया :

“यह पैसा जो प्रश्नकर्ता ने ज़कात के लिए तैयार किया था, उसके स्वामित्व (क़ब्जे) से बाहर नहीं गया, बल्कि वह अभी तक उसके कब्जे ही में था और उसके हक़दार जैसे गरीबों या अन्य लोगों तक नहीं पहुँचा। इसके आधार पर, यदि किसी व्यक्ति द्वारा ज़कात के लिए तैयार किया गया धन चोरी हो गया : तो उसपर उसका बदल निकालना अनिवार्य है।

हो सकता है उस व्यक्ति का उसका बदल निकालना इस बात का कारण बन जाए कि अल्लाह उससे चुराए गए इस पैसे को लौटा दे।” "फतावा अल-हरम अल-मक्की" (टेप संख्या 9, 1413 हिजरी) से उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।  

ज़कात (अनिवार्य धर्म-दान)
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