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महिला के लिए निजी भागों सहित अपने शरीर के विभिन्न भागों में छिद्र करवाने का क्या हुक्म है, तथा उन छेदों का क्या हुक्म है जो उसने इस्लाम स्वीकार करने से पहले करवाई हैं ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
उस औरत के लिए - जिसके माता पिता ने पहले से ही उसके शरीर में कुछ छेद करवाए हैं, या बड़े होने के बाद, चाहे इस्लाम से पहले हो या उसके बाद, उसने स्वयं अपने शरीर में छिद्र करवाए है - कोई हर्ज की बात नहीं है कि वह इन छिद्रों को सोने या चांदी वगैरह के अलंकरण लटकाने के लिए उपयोग करे, लेकिन यह दो महत्वपूर्ण शर्तों के साथ प्रतिबंधित है :
1- यह अलंकरण किसी पराये के सामने प्रदर्शित न करे, बल्कि उसे केवल उसका पति देख सकता है, या वे महरिम लोग केवल उन जगहों में देख सकते हैं जिसे उनके लिए देखना जाइज़ है जैसे उदाहरण के तौर पर कान और नाक।
3- उन जगहों का अलंकरण करने में नास्तिकों (अविश्वासियों) या अनैतिकता वाले अनैतिक लोगों की समानता और छवि अपनाना न पाया जाता हो। यदि किसी समाज में महिलाओं के बीच पेट में “नाभि” में अलंकरण पहनना प्रचलित स्वभाओं (आदतों) में से है तो इस प्रकार के अलंकरण का उपयोग करने में कोई हर्ज की बात नहीं है। लेकिन यदि वह केवल अविश्वासियों और पापियों जैसे अनैतिक लोगों के द्वारा ही जाना जाता है, तो इस आदत (चलन) को अपनाना जाइज़ नहीं है, क्योंकि इसमें उनकी छवि और समानता अपनाना पाया जाता है, और अनैतिकता के लोगों की समानता अपनाना निषिद्ध है।
दूसरा :
जहाँ तक छेद करने की कार्रवाई के हुक्म संबंध है अर्थात महिला को अलंकरण लटकाने के लिए अपने शरीर के विभिन्न जगहों में छिद्र करवाना, तो इस कार्रवाई के हुक्म के बारे में विस्तार है :
1- यदि छेद करवाने पर जननांग का खोलना और पराये मर्द या परायी औरत का उसे देखना निष्कर्षित होता है ; तो निःसंदेह यह एक हराम और निषिद्ध काम है। क्योंकि जननांग के खुलने की बुराई, अलंकरण को लटकाने के हित से कहीं बढ़कर है,क्योंकि जननांग का प्रदर्शन हमारे धर्म में निश्चित वर्जनाओं में से है, तथा निजी भागों के प्रदर्शन के परिणाम स्वरूप लोगों के रहस्य को उघारना, मानव का अनादर तथा पाप का प्रलोभन, उस अलंकरण के उद्देश्य से बहुत बढ़कर है जो मात्र एक पूर्णता के तौर पर है जो उदाहरण के तौर पर केवल दोनों कानों में अलंकरण लटकाने से भी प्राप्त हो सकता है।
2- यदि छेद करवाना स्वास्थ्य संबंधी नुक़सान का कारण बनता है, चाहे शीघ्र ही हो या देर से, तो ऐसी स्थिति में वह हराम है और शरीर के किसी भी भाग में छेद करवाना जाइज़ नहीं है, तथा हमारी साइट पर प्रश्न संख्या (107196) के उत्तर में होंठ या जीभ में अलंकरण लटकाने से निष्कर्षित होने वाले नकारात्मक प्रभावों का वर्णन हो चुका है।
3- फिर यदि शरीर के किसी विशेष स्थान में छेद करवाना नास्तिकों, पाप और अनैतिकता के लोगों के बीच आमतौर पर एक प्रचलित आदत हैः तो उनकी नकल करना और छवि अपनाना जाइज़ नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “जिसने किसी जाति की छवि अपनाई तो वह उन्हीं में से है।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 4031) ने रिवायत किया है, और हाफिज़ इब्ने हजर ने “फत्हुल बारी”(10/282) में रिवायत किया है।
4- इसी प्रकार पुरूष के लिए अपने शरीर में किसी भी जगह अलंकरण लटकाने के लिए छेद करवाना निषिद्ध (हराम) है, क्योंकि इसमें महिलाओं की समानता अपनाना पाया जाता है, इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उभयलिंगी पुरूषों और मर्दाना औरतों (पुरूषों की नकल करने वाली औरतों) पर शाप किया है, और फरमाया कि : तुम उन्हें अपने घरों से निकाल दो।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5885) ने रिवायत किया है। इब्ने आबिदीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “बाली लटकाने के लिए कान छेदना महिलों के श्रृंगार में से है, अतः वह पुरूषों के लिए वैध नहीं है।” संक्षेप के साथ “रद्दुल मुहतार” (6/420) से अंत हुआ।
यदि छेद करवाना पिछले सभी निषेद्धों से खाली है, तो उसका हुक्म यह है कि वह शरीर के किसी भी भाग में जाइज़ है यदि उस जगह में श्रृंगार करना उस समाज में एक प्रसिद्ध चलन और रिवाज है, क्योंकि मूल सिद्धांत औरतों के लिए अलंकरण करने का वैध होना है। तथा कुछ ऐसे प्रमाण वर्णित हैं जो बाली लटकाने के लिए बच्ची के कान का छेदना वैध ठहराते हैं, अतः उसी पर अन्य जगहों को भी क़ियास किया जायेगा यदि वे पिछले निषेद्धों पर आधारित नहीं है। इसी तरह हनफीयह और हनाबिलह के धर्म शास्त्रियों (फुक़हा) ने अलंकरण लटकाने के लिए छेद करवाने के कुछ रूपों के जाइज़ होने को स्पष्टता के साथ वर्णन किया है।
“रद्दुल मुहतार”(6/420) में कुछ किताबों से उद्धृत करते हुए आया है कि :
“यदि वह - अर्थात नाक में नथुनी पहनना - उन चीज़ों में से है जिनसे औरतें श्रृंगार करती हैं - जैसाकि कुछ देशों में है - तो वह उसमें - अर्थात जाइज़ होने में - बाली के छेद के समान है, तथा शाफईयह ने उसके जाइज़ होने को स्पष्ट रूप से बयान किया है।”अंत