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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए है।सबसे पहले :
इस समय भ्रूण को बाहर निकालने या न निकालने के मामले में भरोसेमंद डॉक्टर से परामर्श लेना उचित होगा जो आपकी स्थिति की वास्तविकता का अनुमान लगा सकता है,लेकिन यदि मृत भ्रूण का आप के पेट में बाक़ी रहना आपको नुकसान नहीं पहुँचाता है,तो आप सब्र करें और सर्जरी का सहारा न लें,क्योंकि असल (मूल सिद्धांत) बिना आवश्यकता के शरीर को हानि न पहुँचाना और सुन्न करने वाली दवा का प्रयोग न करना है।
इब्ने हज़्म रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “उन्हों ने इस बात पर इत्तिफाक़ किया है कि किसी के लिए अपने आप को क़त्ल करना,या अपने अंगों में से किसी अंग को काटना, या अपने आप को कष्ट और पीड़ा पहुँचाना जाइज़ नहीं है,सिवाय उपचार के अंदर विशिष्ट रूप से पीड़ा से ग्रस्त अंग को काटने के अलावा।” किताब “मरातिबुल इजमाअ” (पृष्ठ : 157) से समाप्त हुआ।
दूसरा :
जब भ्रूण बाहर निकले तो उसे एक कपड़े में लपेट कर दफना दिया जायेगा,न उसे स्नान दिया जायेगा न उस पर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जायेगी, तथा न उसका नाम रखा जायेगा और न उसकी ओर से अक़ीक़ा किया जायेगा, क्योंकि ये सभी अहकाम (प्रावधान) केवल उस भ्रूण के लिए साबित होते हैं जिसमें रूह (प्राण) फूँक दी गयी हो,और गर्भावस्था पर चार महीने बीतने के बाद ही भ्रूण में रूह फूँकी जाती है।
यदि मान लिया जाये कि भ्रूण के बाहर निकलने में देरी हो गई यहाँ तक कि चार महीना बीत गया, तब भी पिछले प्रावधानों में से कोई धर्म संगत नहीं होगा ;यदि इस समय उसकी मौत ज्ञात और सत्यापित है।
तथा प्रश्न संख्या : (13198) और (71161)का उत्तर देखें।
तीसरा :
इस भ्रूण के साथ जो खून निकलता है वह निफास (प्रसव) का खून है,क्योंकि यदि भ्रूण अस्सी दिन के बाद गिर जाए तो उसके साथ निकलने वाला खून प्रसव का खून होता है। तथा प्रश्न संख्या : (12475)देखें।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
चिकित्सा