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विरासत के सबसे प्रमुख प्रावधान क्या हैंॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
''फ़राइज़'' (विरासत) का ज्ञान सबसे प्रतिष्ठित और सबसे सम्मानीय शरई विज्ञानों में से है। सूरतुन-निसा की तीन आयतों में, अल्लाह ने उसके बहुत-से प्रावधानों का उल्लेख किया है, फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत ने इन प्रावधानों को और अधिक स्पष्टता और विस्तार के साथ बयान किया है।
सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने विरासत का ज्ञान प्राप्त करने पर ध्यान दिया। इसी तरह ताबेईन (सहाबा के अनुयायियों) और उनके बाद आने वाले विद्वानों ने भी इस पर ध्यान दिया, यहाँ तक कि इस ज्ञान के बारे में लिखी गई किताबों की संख्या बहुत हो गई।
हम नीचे इस विज्ञान के कुछ मुद्दों और व्यापक नियमों का उल्लेख कर रहे हैं :
- विरासत के तीन स्तंभ हैं : वारिस (उत्तराधिकारी), मुवर्रिस (विरासत देने वाला, यानी मृतक) और विरासत में मिलने वाला अधिकार (मृत्यु-संपत्ति)।
- विरासत (उत्तराधिकार) की शर्तें तीन हैं :
पहली : मुवर्रिस की मृत्यु के समय वारिस के जीवन का सुनिश्चित होना, या उसे जीवित लोगों के हुक्म में मानना, जैसे कि गर्भाशय में उपस्थित भ्रूण। भ्रूण दो शर्तों के साथ वारिस होता है : एक शर्त यह कि मुवर्रिस की मृत्यु के समय उसका गर्भाशय में मौजूद होना सुनिश्चित हो, चाहे वह शुक्राणु ही क्यों न हो, और दूसरी यह कि वह स्थिर जीवन के साथ जीवित पैदा हुआ हो।
विरासत की शर्तों में से दूसरी शर्त : मुवर्रिस की मृत्यु का सुनिश्चि होना, या उसे मृतकों के हुक्म में मानना, जैसे कि लापता व्यक्ति।
तीसरी शर्त : वारिस होने की अपेक्षा का ज्ञान, जिसका अर्थ है विरासत के कारण, वारिस के पक्ष और उसके दर्जे इत्यादि को जानना।
- वारिस होने की पात्रता के तीन कारण हैं : निकाह (जिसका मतलब केवल वैध विवाह अनुबंध है, पत्नी के पास प्रवेश करना शर्त नहीं है), वला (गुलाम की मुक्ति), और नसब (यानी रिश्तेदारी)।
- विरासत में तीन बाधाएँ हैं : दासता (अतः दास किसी भी चीज़ का वारिस नहीं हो सकता), हत्या (अतः हत्यारा उस व्यक्ति से किसी भी चीज़ का वारिस नहीं हो सकता जिसकी उसने हत्या की है) और धर्म का अंतर (अतः काफिर मुसलमान का वारिस नहीं हो सकता और मुसलमान काफिर का वारिस नहीं हो सकता।)
- पुरुष वारिसों की संख्या पंद्रह है : बेटा, बेटे का बेटा, चाहे वंश की रेखा कितनी भी नीचे तक पहुँच जाए, पिता, दादा, चाहे पुरुष वंश की रेखी कितने भी ऊपर तक पहुँच जाए, सगा भाई, पिता के माध्यम से सौतेला भाई, माँ के माध्यम से सौतेला भाई, सगे भाई का पुत्र, पिता के माध्यम से सौतेले भाई का पुत्र, चाहे वंश की रेखा कितनी भी नीचे तक पहुँच जाए, सगा चाचा और पैतृक चाचा चाहे वंश की रेखा कितना भी ऊपर तक पहुँच जाए, सगे चाचा का पुत्र (चचेरा भाई) और पैतृक चाचा का पुत्र, भले ही वंश की रेखा नीचे तक चली जाए, पति और गुलाम मुक्त करने वाला पुरुष।
- महिला वारिसों की संख्या दस है : बेटी, बेटे की बेटी, चाहे उसके पिता के वंश की रेखा कितनी भी नीचे तक पहुँच जाए, माँ, नानी, दादी, सगी बहन, पिता के माध्यम से सौतेली बहन, माँ के माध्यम से सौतेली बहन, पत्नी और गुलाम मुक्त करने वाली महिला।
- विरासत दो प्रकार की होती है : फर्ज़ और ता'सीब। फ़र्ज से अभिप्राय वह हिस्सा है जो शरीयत के द्वारा किसी वारिस के लिए निर्दिष्ट किया हुआ है, जैसे आधा, एक चौथाई, एक तिहाई...आदि।
ता'सीब से तात्पर्य यह है कि शरीयत में जिन वारिसों का हिस्सा निर्दिष्ट है उन लोगों के अपना हिस्सा लेने के बाद संपत्ति में से जो कुछ बचा है उसे कोई वारिस ले ले।
- अल्लाह की किताब में निर्दिष्ट हिस्से छह हैं : आधा, एक चौथाई, आठवाँ, दो-तिहाई, एक तिहाई और छठा।
विरासत के आवंटन की शुरुआत उन लोगों से होगी जिनके लिए क़ुरआन में हिस्से निर्दिष्ट हैं, अतः वे लोग सबसे पहले अपने हिस्से लेंगे। फिर यदि संपत्ति में से कुछ भी बच जाता है तो उसे ''असबह'' लेंगे। यदि उनके लिए कुछ भी नहीं बचा है, तो उनके लिए कोई हिस्सा नहीं है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन के अनुसार : "विरासत के निर्दिष्ट हिस्से उन लोगों को दो जो उनके हक़दार हैं। फिर जो कुछ बच जाए, वह निकटतम पुरुष रिश्तेदार को दिया जाए।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6732) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1615) ने रिवायत किया है।
जहाँ तक विरासत के प्रावधानों के विवरण और प्रत्येक वारिस की स्थितियों और प्रत्येक स्थिति में उसके वारिस होने की शर्तों के वर्णन की बात है, तो इसके लिए विस्तार की आवश्यकता है जो इस संक्षिप्त उत्तर में समायोजित नहीं हो सकता है।
इसके लिए उन पुस्तकों का संदर्भ ले सकते हैं जो इस विषय पर लिखी गई हैं, जिनमें से सबसे आसान ये हैं : शैख अब्दुल-अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह की पुस्तक ''अल-फ़वाइद अल-जलिय्यह फ़िल-मबाहिस अल-फ़रज़िय्यह''
शैख मुहम्मद बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह की पुस्तक “तसहील अल-फ़राइज़”, शैख सालेह अल-फौज़ान की पुस्तक “अत-तहक़ीक़ात अल-मर्ज़िय्यह फिल-मबाहिस अल-फरज़िय्यह”।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।