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किसी किशोर या बच्चे को किस उम्र तक अभिरक्षा एवं पालन-पोषण की आवश्यकता होती हैॽ क्या दूध पीता शिशु अपनी माँ के साथ रह सकता है यदि उसका पुनर्विवाह हो जाए? क्या माँ के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने बच्चों के संरक्षण एवं पालन-पोषण की अवधि समाप्त होने के बाद उनपर पैसा खर्च करे, उनके लिए घर खरीदे और उनका खर्च वहन करेॽ यदि कोई लड़की है, तो संरक्षण एवं पालन-पोषण की अवधि समाप्त होने के बाद उसका विवाह होने तक उसका खर्च कौन उठाएगाॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
प्रथम :
बच्चे का संरक्षण एवं पालन-पोषण तथा देखभाल करना पति-पत्नी दोनों का संयुक्त अधिकार है, यदि अभी भी विवाह का बंधन क़ाय है।
लेकिन यदि दोनों के बीच त़लाक़ हो जाता है, तो माँ को बच्चे के पालन-पोषण का अधिक अधिकार है।
अ़दवी मालिकी ने "शर्ह अल-ख़रशी" (4/207) पर अपने हाशिया (फ़ुटनोट) में कहा : “माँ के लिए बच्चे के पालन-पोषण का अधिकार उस समय है : जब उसका त़लाक़ हो जाए, या उसके पति की मृत्यु हो जाए। लेकिन जबकि वह अभी भी शादी के बंधन में है, तो पालन-पोषण का अधिकार दोनों (पति-पत्नी) का है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा "अल-मौसू़अ़ह अल-फ़िक्हिय्यह" (17/301) में कहा गया है : “बच्चे की देखभाल एवं पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी माता-पिता दोनों की है, यदि दोनों के बीच विवाह का बंधन क़ायम है। यदि वे अलग हो जाते हैं : तो विद्वानों की सहमति के अनुसार, देखभाल एवं पालन-पोषण का अधिकार बच्चे की मॉं का है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरा :
माँ को सात वर्ष की आयु तक अपने बच्चों की अभिरक्षा एवं पालन-पोषण का अधिक अधिकार है, जब तक कि वह (दूसरी) शादी न कर ले। क्योंकि अहमद (हदीस संख्या : 6707) और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2276) ने अब्दुल्लाह बिन अ़म्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि : “एक महिला ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यह मेरा बेटा है, मेरा पेट इसके लिए घर था, मेरे स्तन इसके लिए पीने का बर्तन थे और मेरी गोद इसके लिए पालना थी। अब इसके पिता ने मुझे त़लाक़ दे दिया है और वह इसे मुझसे छीनना चाहते हैं। तब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा : “जब तक तुम दूसरी शादी नहीं कर लेती, तब तक तुम्हारा उस पर अधिक अधिकार है।”
इस हदीस को अलबानी ने "सहीह अबू दाऊद" में हसन कहा है।
यदि वह (मॉं) दूसरा विवाह कर लेती है, तो अभिरक्षा एवं पालन-पोषण का अधिकार उसके बाद वाले के पास चला जाएगा।
हालाँकि, इस विषय पर धर्मशास्त्रियों के बीच मतभेद है :
उनमें से कुछ का विचार यह है कि पालन-पोषण का अधिकार मॉं की माॉं की तरफ चला जाएगा। चारों मतों (हनफ़ी, मालिकी, शाफ़ेई और हंबली) में से अधिकांश विद्वानों की राय यही है।
तथा कुछ दूसरे विद्वानों की राय यह है कि पालन-पोषण का अधिकार पिता को प्राप्त होगा। इसी राय को शैखु़ल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह और इब्ने क़य्यिम ने अपनाया है।
देखें : "अल-मौसूअ़ह अल-फ़िक़्हिय्यह" (17/302) और “अश-शर्हुल मुम्ते’” (13/535)
यदि हम यह कहें कि संरक्षण एवं पालन-पोषण का अधिकार बच्चे के पिता को हस्तांतरित हो जाता है, तो यदि वह बच्चे को उसकी विवाहित माँ के साथ रहने की अनुमति दे देता है और वह संरक्षण में लिए हुए बच्चे की देखभाल करने के योग्य है, तथा उसका दूसरा पति इससे सहमत है, तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है।
इसी तरह, माँ की माँ अपने पालन-पोषण के अधिकार को अपनी पुनर्विवाहित बेटी के हक़ में छोड़ सकती है।
शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं :
“बच्चे का संरक्षण एवं पालन-पोषण करना, उसका अधिकार है जो बच्चे की देखभाल करने वाला है, लेकिन यह उसके ऊपर अधिकार (अनिवार्य) नहीं है।
इस आधार पर : यदि वह इस अधिकार को अपने अलावा किसी और को देना चाहता है, तो उसके लिए ऐसा करना जायज़ है।” "अश-शर्हुल मुम्ते’" (13/536) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तीसरा :
यदि महिला ने दूसरी शादी नहीं की और बच्चा सात वर्ष का हो गया है :
1. तो यदि वह बच्चा पुरुष है, तो उसे अपने पिता और माता के बीच चयन करने का अधिकार दिया जाएगा और वह जिसे चुनेगा उसके साथ रहेगा। जैसा कि नसई (हदीस संख्या : 3496) और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2277) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “मैंने एक महिला को सुना जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आई, जबकि उस समय मैं आपके पास बैठा था। उसने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मेरा पति मेरे बेटे को लेना चाहता है, जबकि वह मुझे अबू इनबा के कुएं से पानी लाकर देता है और वह मुझे लाभ पहुँचाता है?
इसपर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “तुम दोनों उसके लिए चिट्ठी डालो।”
तो उसके पति ने कहा : मेरे बेटे के बारे में मुझसे कौन झगड़ा कर सकता हैॽ
तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : “यह तुम्हारा पिता है और यह तुम्हारी माँ है; तुम इन दोनों में से जिसका चाहो, उसका हाथ थाम लो।”
बच्चे ने अपनी माँ का हाथ पकड़ लिया और वह उसे लेकर चली गई।”
इस हदीस को अलबानी ने "सहीह अबू दाऊद" में सहीह कहा है।
इसी दृष्टिकोण की ओर हंबली और शाफ़ेई मत के लोग गए हैं।
2. यदि वह लड़की है, तो इमाम शाफ़ेई रहिमहुल्लाह के अनुसार उसे भी चयन करने का अधिकार दिया जाएगा।
जबकि इमाम अबू हनीफ़ा रहिमहुल्लाह का कहना है कि : जब तक लड़की की शादी नहीं हो जाती या उसे मासिक-धर्म आना नहीं शुरू हो जाता, तब तक उसपर माँ का अधिक अधिकार है।
इमाम मालिक रहिमहुल्लाह का कहना है : जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती और पति उसपर प्रवेश नहीं कर लेता, तब तक उसपर माँ का ज़्यादा अधिकार है।
जबकि इमाम अहमद रहिमहुल्लाह का कहना है कि : पिता का उसपर ज़्यादा अधिकार है, क्योंकि पिता उसका संरक्षण करने के अधिक योग्य है।
देखें : “अल-मौसूअ़ह अल-फ़िक्हिय्यह” (17/314-317)
चौथा :
बच्चे के संरक्षण एवं पालन-पोषण की अवधि उस वक्त समाप्त हो जाती है जब बच्चा यौवन और परिपक्वता की आयु तक पहुँच जाता है। उस समय वह अपने माता-पिता में से जिसे चाहे चुनकर उनके साथ रह सकता है। और यदि वह पुरुष है, तो उसे उन दोनों से अलग रहने का भी अधिकार है।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह कहते हैं :
“अभिरक्षा केवल बच्चे या कमज़ोर बुद्धि वाले (नासमझ) व्यक्ति पर सिद्ध हो सकती है। जहाँ तक एक समझदार वयस्क की बात है, तो उसकी अभिरक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है, तथा उसके पास अपने माता-पिता में से जिसके साथ वह चाहे, उसके साथ रहने का विकल्प है।
यदि वह पुरुष है, तो उसे अकेले रहने का (भी) अधिकार है, क्योंकि उसे उनकी आवश्यकता नहीं है। लेकिन वांछनीय है कि वह उन्हें छोड़कर अकेला न रहे और उनके साथ अच्छा व्यवहार करना बंद न करे।
यदि वह लड़की है, तो उसे अकेले रहने की अनुमति नहीं है, तथा उसके पिता को यह अधिकार है कि वह उसे अकेले रहने से रोक दे, क्योंकि इस बात से निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता कि कोई उसके पास आ सकता है और उसे भ्रष्ट कर सकता है, जो उसके और उसके परिवार के लिए लज्जा (बदनामी) की बात होगी। यदि उसके पिता नहीं हैं, तो उसके अभिभावक और उसके परिवार को उसे ऐसा करने से रोकना चाहिए।”
"अल-मुग़नी" (8/191) से उद्धरण समाप्त हुआ।
पाँचवाँ :
अभिरक्षा की अवधि के दौरान बच्चों के भरण-पोषण पर खर्च करना पिता की ज़िम्मेदारी है।
तथा उनके परिपक्वता की आयु तक पहुँचने तथा वयस्क होने पर अभिरक्षा एवं पालन-पोषण की अवधि समाप्त हो जाने के बाद उनके भरण-पोषण पर खर्च करने के संबंध में धर्मशास्त्रियों के बीच मतभेद है।
हंबली मत के अनुसार, यदि वयस्क पुत्र ग़रीब है, तो उसका भरण-पोषण उसके अमीर पिता पर अनिवार्य है। और यदि पिता नहीं है, तो सामान्य रूप से उसकी अमीर माँ पर अनिवार्य है, चाहे वह (वयस्क पुत्र) स्वस्थ हो या अक्षम।
तथा शाफ़ेई मत के अनुसार, यदि वयस्क पुत्र किसी स्थायी बीमारी की स्थिति (जैसे अपंगता, विकलांगता आदि) अथवा किसी रोग से पीड़ित होने के कारण अक्षम हो, तो यह अनिवार्य है।
"अल-इंसाफ़" (9/289) में उल्लेख किया गया है : "उनका कथन : "और उनके बच्चे, भले ही उनके वंश का सिलसिला कितने नीचे तक पहुँच जाए।" में वे बच्चे भी शामिल हैं जो बड़े, स्वस्थ और मज़बूत हैं, यदि वे गरीब हैं। यह सही है। तथा यह इस मत का एकल दृष्टिकोण है।" उद्धरण समाप्त हुआ।
इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह कहते हैं : इमाम शाफ़ेई रहिमहुल्लाह ने कहा : “(वयस्क बच्चे के भरण-पोषण के अनिवार्य होने के लिए) उसमें कमी का पाया जाना शर्त है, चाहे हुक्म के माध्यम से या सृजन के माध्यम से। और इमाम अबू हनीफा रहिमहुल्लाह ने कहा : “लड़के पर उस समय तक खर्च किया जाएगा जब तक वह युवावस्था तक नहीं पहुँच जाता है। जब वह युवावस्था को पहुंच जाए और स्वस्थ हो, तो उसका भरण-पोषण बंद कर दिया जाएगा। परंतु लड़की का भरण-पोषण उस समय तक बंद नहीं किया जाएगा जब तक उसकी शादी न हो जाए।”
इमाम मालिक रहिमहुल्लाह ने भी कुछ ऐसा ही कहा है, सिवाय इसके कि उन्होंने कहा है कि : महिलाओं का भरण-पोषण उस वक्त तक जारी रहेगा जब तक कि उनकी शादी नहीं हो जाती है और पति उनपर प्रवेश नहीं कर लेता। फिर इसके बाद वह भरण-पोषण पाने की हक़दार नहीं होंगी, भले ही उनका त़लाक़ हो जाए। यदि उनका त़लाक़ पति के उनके पास प्रवेश करने से पहले ही हो जाए, तब भी वे अपने खर्चे पर गुज़ारा करेंगी।
हमारे लिए (प्रमाण) नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का हिन्द रज़ियल्लाहु अन्हा से यह फरमाना है : “उचित ढंग से उतना ले लो जितना तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के लिए पर्याप्त हो।” आपने यहाँ खर्च लेने से वयस्क एवं स्वस्थ बच्चे को अलग नहीं किया। तथा क्योंकि वह एक ग़रीब बच्चा है, इसलिए वह अपने अमीर पिता से भरण-पोषण पाने का हक़दार है, जैसे कि यदि वह लंबे समय से स्थायी रूप से बीमार होता या बेरोज़गार होता तो भरण-पोषण पाने का हक़दार होता।” “अल-मुग़्नी” (9/258) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इससे हमें मालूम हुआ कि जब तक बच्चों के पिता मौजूद हैं, तो अभिरक्षा एवं पालन-पोषण की अवधि समाप्त होने के बाद महिला के लिए अपने बच्चों पर खर्च करना आवश्यक नहीं है, न तो घर खरीदने में और न ही उसके अलावा में। तथा शादी होने तक बेटी के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी उसके पिता पर है।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।