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एक महिला ने बिना किसी उज़्र (कारण) के रमज़ान के तीन दिनों का रोज़ा तोड़ दिया, बल्कि उसने लापरवाही करते हुए ऐसा किया, तो इस बारे में अल्लाह का हुक्म (फैसला) क्या है और उस पर क्या अनिवार्य है ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यदि वस्तुस्थिति यही है जो वर्णन किया गया है कि उस महिला ने लापरवाही करते हुए रमज़ान के तीन दिनों का रोज़ा तोड़ दिया और उसने ऐसा लापरवाही करते हुए किया है, उसे हलाल समझते हुए नहीं किया है, तो वास्तव में उसने रोज़े की हुर्मत (पवित्रता) को भंग करके एक बड़ा गुनाह और महा पाप किया है। क्योंकि रमज़ान का रोज़ा इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है :
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ[البقرة: 183]
"ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़े रखना अनिवार्य किया गया है जिस प्रकार तुम से पूर्व लोगों पर अनिवार्य किया गया था, ताकि तुम संयम और भय अनुभव करो। (सूरतुल बक़रा : 183)
यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने आगे फरमाया :
شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنْزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدًى لِلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِنَ الْهُدَى وَالْفُرْقَانِ فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ وَمَنْ كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ يُرِيدُ اللهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ [البقرة: 185]
"रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुर्आन उतारा गया, जो लोगों के लिए मार्गदर्शक है और जिसमें मार्गदर्शन की और सत्य तथा असत्य के बीच अंतर की निशानियाँ हैं, तुम में से जो व्यक्ति इस महीना को पाए उसे रोज़ा रखना चाहिए। और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरा करे, अल्लाह तआला तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, तुम्हारे साथ सख्ती नहीं चाहता है। (सूरतुल बक़रा : 185)
तथा उसके ऊपर अनिवार्य है कि जिन दिनों का रोज़ा उसने तोड़ दिया था उनकी क़ज़ा करते हुए तीन दिन रोज़ा रखे। और यदि उन तीनों दिनों में जिनका रोज़ा उसने तोड़ दिया था किसी दिन उस से संभोग हुआ है तो उस पर उस दिन की क़ज़ा करने के साथ कफ्फारा भी अनिवार्य है, और यदि उस से दो दिनों में संभोग हुआ है तो उस पर क़ज़ा के साथ दो कफ्फारा अनिवार्य है। इसी तरह जितने दिनों में संभोग हुआ है, उतने दिनों की कज़ा के साथ उतना कफ्फारा अनिवार्य है। और कफ्फारा एक गुलाम आज़ाद करना है, यदि वह न मिले तो दो महीने लगातार रोज़ा रखेगी, यदि इसकी भी ताक़त नहीं है तो शहर की खूराक (भोजन) से साठ मिस्कीनों को खाना खिलायेगी। तथा उस पर यह भी अनिवार्य है कि वह अल्लाह से क्षमा याचना करे और उस से तौबा व इस्तिगफार करे, तथा उस रोज़े को अदा करे जिसे अल्लाह तआला ने उसके ऊपर अनिवार्य किया है। तथा इस बात का पक्का संकल्प करे कि वह पुन: रमज़ान के दिन में रोज़ा नहीं तोड़ेगी। तथा उसके ऊपर तीनों दिनों में से प्रत्येक दिन के बदले एक मिस्कीन को खाना खिलाना भी अनिवार्य है ; क्योंकि उसने क़ज़ा को दूसरे रमज़ान तक विलंब कर दिया है।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।