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मेरा सवाल यह है कि “सहीह मुस्लिम” में यह हदीस वर्णित है कि ईसा अलैहिस्सलाम की साँसें काफिरों को मारने में सक्षम होंगी, जब वे उन्हें सूंघेंगे। यदि ईसा अलैहिस्सलाम को यह क्षमता प्रदान की गई है और जब वह समय के अंत में वापस आएंगे तो मृतकों को पुनर्जीवित करने की क्षमता होगी, तो क्या उस समय लोग उनके बारे में असमंजस और भ्रम के शिकार नहीं होंगे, वे यह सोचेंगे कि उनके पास जीवन और मृत्यु देने की शक्ति हैॽ हालाँकि वास्तव में वह अल्लाह ही है जो जीवन और मृत्यु देता है।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
नव्वास बिन समआन रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णन किया गया है कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक सुबह दज्जाल का उल्लेख किया, तो कभी आपने धीमे स्वर में बात की और कभी ऊँचे स्वर में बात की ...
फिर वह (दज्जाल) इसी हाल में होगा कि अचानक अल्लाह मर्यम के पुत्र मसीह अलैहिस्सलाम को भेजेगा। वह दमिश्क़ नगर के पूर्व में श्वेत मीनार के पास उतरेंगे, पीले रंग के दो वस्त्र पहने हुए, अपने दोनों हाथ दो फ़रिश्तों के पंख पर रखे हुए। जब वह (ईसा अलैहिस्सलाम) अपना सिर झुकाएँगे तो पानी टपकेगा। और जब वह अपना सिर उठाएँगे, तो मोती की तरह बूँदें गिरेंगी। तो जिस काफ़िर को भी उनकी साँस की हवा लगेगी, वह मर जाएगा, और उनकी साँस उतनी दूर तक पहुँचेगी जहाँ तक उनकी निगाह पहुँचेगी। फिर वह (ईसा अलैहिस्सलाम) दज्जाल को तलाश करेंगे यहाँ तक कि उसे ‘लुद्द’ (फिलिस्तीन के एक शहर का नाम) के द्वार पर पाएँगे और उसे क़त्ल करेंगे ...” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2937) ने रिवायत किया है।
अल्लाह तआला ने ईसा अलैहिस्सलाम को उनके ईश्दूतत्व के जो पूर्व प्रमाण दिए थे, जैसे कि मृतकों को जीवित करना, और जो (अंतिम समय में) उनकी साँस की हवा से काफ़िर की मृत्यु हो जाएगी, जैसा कि इस हदीस में बताया गया है – तो यह सब कुछ संदेह का विषय नहीं है। बल्कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उन्हें यह उनके संदेश की सत्यता के प्रमाण के तौर पर दिया है। और सद्बुद्धि तथा शुद्ध प्रकृति इन प्रमाणों के द्वारा उस व्यक्ति के अपने शब्दों और स्थितियों (कर्मों) में ईमानदार और सच्चे होने पर प्रमाण ग्रहण करते हैं। इसीलिए इन चमत्कारों को “दलाइल अन-नुबुव्वह” (ईश्दूतत्व के संकेत) कहा जाता है।
आपने अपने प्रश्न में जिस संदेह (भ्रम) की ओर संकेत किया है, उसकी केवल उस समय कल्पना की जा सकती है, यदि ईसा अलैहिस्सलाम ये संकेत (प्रमाण) दिए जाते, फिर वह सच्चाई को बताने से खामोश रहते। तो उस समय लोग उनके बारे में कुछ सोच सकते जबकि वह चुप रहते और कुछ भी स्पष्ट नहीं करते।
लेकिन ईसा अलैहिस्सलाम ये प्रमाण उस समय दिए गए थे, जब वह उस कार्य को अंजाम दे रहे थे, जो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उन्हें आदेश दिया था कि वह अल्लाह को एकमात्र पूजा के योग्य मानने और उसे साझी से और संतान से पवित्र ठहराने की ओर लोगों को बुलाएँ।
जैसाकि पहले भी उनसे ऐसा हो चुका है, अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَرَسُولًا إِلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنِّي قَدْ جِئْتُكُمْ بِآيَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ أَنِّي أَخْلُقُ لَكُمْ مِنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ فَأَنْفُخُ فِيهِ فَيَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِ اللَّهِ وَأُبْرِئُ الْأَكْمَهَ وَالْأَبْرَصَ وَأُحْيِ الْمَوْتَى بِإِذْنِ اللَّهِ وَأُنَبِّئُكُمْ بِمَا تَأْكُلُونَ وَمَا تَدَّخِرُونَ فِي بُيُوتِكُمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ ، وَمُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيَّ مِنَ التَّوْرَاةِ وَلِأُحِلَّ لَكُمْ بَعْضَ الَّذِي حُرِّمَ عَلَيْكُمْ وَجِئْتُكُمْ بِآيَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ ، إِنَّ اللَّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ هَذَا صِرَاطٌ مُسْتَقِيمٌ [آل عمران : 49-51].
“और उसे इसराईल की संतान की ओर रसूल बनाकर भेजेगा। (वह उनसे कहेगा) कि निःसंदेह मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी निशानी लेकर आया हूँ कि निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के रूप जैसी आकृति बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह के आदेश से पक्षी बन जाती है। और मैं अल्लाह के आदेश से जन्मजात अंधे और कोढ़ी को ठीक कर देता हूँ और मृतकों को जीवित कर देता हूँ। और मैं तुम्हें बता देता हूँ जो कुछ तुम अपने घरों में खाते हो और जो कुछ इकट्ठा करके रखते हो। निःसंदेह इसमें तुम्हारे लिए एक निशानी है, यदि तुम मोमिन हो। और उसकी पुष्टि करने वाला हूँ जो मुझसे पहले तौरात में से है, और ताकि मैं तुम्हारे लिए कुछ उन चीज़ों को ह़लाल कर दूँ जो तुम्हारे लिए ह़राम की गई थीं। और मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी निशानी लेकर आया हूँ। अतः अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो। निःसंदेह अल्लाह ही मेरा पालनहार और तुम्हारा पालनहार है। अतः उसकी इबादत करो। यही सीधा मार्ग है।” (सूरत आल-इमरान : 49-51).
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَإِذْ قَالَ اللَّهُ يَاعِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنْتَ قُلْتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَهَيْنِ مِنْ دُونِ اللَّهِ قَالَ سُبْحَانَكَ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِي بِحَقٍّ إِنْ كُنْتُ قُلْتُهُ فَقَدْ عَلِمْتَهُ تَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي وَلَا أَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِكَ إِنَّكَ أَنْتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ ، مَا قُلْتُ لَهُمْ إِلَّا مَا أَمَرْتَنِي بِهِ أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ وَكُنْتُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا مَا دُمْتُ فِيهِمْ فَلَمَّا تَوَفَّيْتَنِي كُنْتَ أَنْتَ الرَّقِيبَ عَلَيْهِمْ وَأَنْتَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ [المائدة : 116-117].
“और (याद करो) जब अल्लाह कहेगा : “ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तूने लोगों से कहा था कि मुझे और मेरी माँ को अल्लाह के अतिरिक्त दो पूज्य बना लोॽ वह कहेगा : तू पवित्र है! मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं वह बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं। यदि मैंने यह बात कही थी, तो निश्चय तूने उसे जान लिया। तू जानता है, जो मेरे मन में है और मैं नहीं जानता जो तेरे मन में है। निश्चय तू ही सब छिपी बातों को भली-भाँति जानने वाला है। मैंने उनसे उसके सिवा कुछ नहीं कहा, जिसका तूने मुझे आदेश दिया था कि अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा रब और तुम्हारा रब है। और मैं उनपर गवाह था जब तक उनमें रहा, फिर जब तूने मुझे उठा लिया, तो तू ही उनपर निरीक्षक था। और तू हर चीज़ पर गवाह है।” (सूरतुल मायदा : 116-117)
यह जो ईसा अलैहिस्सलाम से प्रकट होगा, उस समय होगा जब वह अंतिम समयकाल में इस्लाम की शरियत के अनुसार शासन करने के लिए उतरेंगे। वह (उस समय) ईसाइयों से इस्लाम के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। चुनाँचे वह उनसे किसी भी प्रकार का जिज़्या नहीं स्वीकार करेंगे। तो ईसाइयों में से कुछ लोग मुस्लिम बन जाएँगे; क्योंकि सच्चाई प्रकट और स्पष्ट हो जाएगी।
यह सबसे स्पष्ट बातों में से है और इस बात का सबसे प्रत्यक्ष सबूत है कि उस समय कोई समस्या या भ्रम (संदेह) नहीं होगा; क्योंकि ईसा अलैहिस्सलाम, जो अल्लाह के रसूल और उसके पैगंबर हैं, वह अंतिम समय में जब उतरेंगे, तो लोगों को अपनी शरीयत की ओर हरगिज़ नहीं बुलाएँगे। बल्कि वह उनसे इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे कि वे खुद से ईसाई धर्म का पालन करें। तथा जो कोई भी उनके उतरने से पहले ईसाई धर्म का पालन कर रहा था, उससे इस बात को कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा कि वह ईसा बिन मरयम अलैहिस्सलाम के उतरने के बाद उसपर बना रहे। तो फिर इस मामले में समस्या की आशंका कैसे हो सकती है, या इसमें कोई भ्रम या संदेह कैसे बाक़ी रह सकता हैॽ
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “उस अस्तित्व की क़सम जिस के हाथ में मेरी जान है! निश्चित रूप से क़रीब है कि इब्ने मरयम तुम्हारे बीच एक न्यायप्रिय शासक बनकर उतरें। फिर वह सलीब को तोड़ देंगे, सुअर को मार डालेंगे, जिज़्या को समाप्त कर देंगे, तथा धन की बहुतायत हो जाएगी यहाँ तक कि कोई उसे स्वीकार नहीं करेगा।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2222) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 155) ने रिवायत किया है।
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने इसका उल्लेख करने के बाद कहा :
“ये अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित मुतवातिर हदीसें हैं, जिन्हें अबू हुरैरा, इब्ने मसऊद, उसमान बिन अबिल-आस, अबू उमामह, नव्वास बिन समआन, अब्दुल्लाह बिन अम्र इब्न अल-आस, मुजम्मि’ बिन जारियह और अबू सरीहा हुज़ैफा बिन उसैद रज़ियल्लाहु अन्हुम ने रिवायत किया है।
इन हदीसों में उनके उतरने के तरीक़े और स्थान का प्रमाण है...
फिर वह सूअर को क़त्ल करेंगे, सलीब को तोड़ देंगे और जिज़्या को ख़त्म कर देंगे। चुनाँचे वह इस्लाम के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे, जैसा कि सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम की हदीस में ऊपर उल्लेख किया गया है। यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से इसकी सूचना देना, इसकी पुष्टि करना, इसे अधिनियमित करना और इसे उस समय उनके लिए औचित्य ठहराना है। क्योंकि उस समय उनके कारण (बहाने) समाप्त हो जाएँगे और उनके संदेह स्वयं दूर हो जाएँगे। इसलिए वे सभी ईसा अलैहिस्सलाम का अनुसरण करते हुए, उनके हाथों पर इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेंगे। इसीलिए अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَإِنْ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا [النساء : 159].
“किताब वालों में से कोई भी ऐसा न बचेगा, जो ईसा पर उनकी मृत्यु से पहले ईमान न ले आए। और वह क़ियामत के दिन उनपर गवाह होंगे।” (सूरतुन-निसा : 159)
यह आयत अल्लाह के इस कथन के समान है : وَإِنَّهُ لَعِلْمٌ لِلسَّاعَةِ “और निश्चय वह (ईसा अलैहिस्सलाम) क़ियामत का ज्ञान (या निशानी) हैं।” (सूरतुज़-ज़ुख़रुफ़ : 61)
इस आयत में “इल्म” (ज्ञान) शब्द को “अलम” (निशानी) भी पढ़ा गया है, जिसका अर्थ यह है कि वह क़ियामत के निकट होने का एक संकेत और प्रमाण हैं।”
तफ़सीर इब्ने कसीर (2 / 464-465) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तो उस समय ईसा अलैहिसिस्सलाम का उतरना उन लोगों के संदेहों का निवारण कर देगा जिन्होंने उन्हें पूज्य बना लिया था।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।