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एक हाजी हज्ज करने का इरादा रखता है, लेकिन उसका मक्का में और फिर मदीना में कुछ काम है। उसने मीक़ात को पार किया और एहराम में प्रवेश नहीं किया। और मक्का में दाख़िल होगया, फिर उसने मदीना का सफ़र किया और मदीना के मीक़ात से हज्ज का एहराम बाँधा। तो उसके इस व्यवहार का क्या हुक्म हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जब हाजी मदीना के लोगों की मीक़ात पर चला गया, और वहाँ से एहराम बाँधकर आया, तो अब उसके बिना एहराम के मक्का में प्रवेश करने के कारण उसपर कुछ भी अनिवार्य नहीं है। हालाँकि उसके लिए बेहतर यह था कि वह अपनी पहली मीक़ात से एहराम की हालत में प्रवेश करता।
और अल्लाह तआला ही सामर्थ्य प्रदान करने वाला है।