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मैंने ज़मीन का एक टुकड़ा खरीदा, और उसके मालिक के साथ 504 हज़ार की क़ीमत पर सहमत हुआ। फिर हमने एक प्रारंभिक अनुबंध लिखा कि 10 दिनों के भीतर मैं किस्तों में उसे राशि लाकर दूँगा, फिर मुझे एक अंतिम अनुबंध मिलेगा और मैं ज़मीन के टुकड़े पर क़ब्ज़ा कर लूँगा। हमने इस सौदे को लौटाने वाले पर 50,000 का दंडात्मक शर्त (जुर्माना) निर्धारित कर दिया। दरअसल, मैंने उसे क़िस्तें दीं यहाँ तक कि 309 हज़ार पूरे कर दिए, जिसके बाद मुझे पता चला कि इस ज़मीन के टुकड़े और आसपास के इलाक़े की असली क़ीमत 336 हज़ार से अधिक नहीं है। इसलिए मैंने उससे कहा कि वह मुझे मौजूदा (वास्तविक) बाजार भाव पर बेचे, नहीं तो वह मेरे पैसे मुझे वापस कर दे। लेकिन उसने मुझे उस कीमत पर बेचने से इनकार कर दिया, और मुझे केवल 259 हज़ार वापस लौटाए। दूसरे शब्दों में, उसने जुर्माने की राशि (50,000) काट ली। क्या उसे ऐसा करने का अधिकार हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
प्रथम :
लेन-देन करने वालो पक्षों के लिए एख दंडात्मक शर्त निर्धारित करना जायज़ है : कि जो व्यक्ति लेन-देन को रद्द करेगा वह अपने साथी (विपरीत पक्ष) को एक निश्चित राशि का भुगतान करेगा; क्योंकि शर्तों के बारे में मूल सिद्धांत यह है कि वे मान्य हैं, और क्योंकि ऋण के अलावा अन्य अनुबंधों में एक दंडात्मक शर्त निर्धारित करना मान्य है, जिसे पूरा किया जाना अनिवार्य है, जैसा कि हमने प्रश्न संख्या : (281085) के उत्तर में बयान किया है।
दूसरा :
यह दंडात्मक शर्त इस बात के साथ प्रतिबंधित है कि शरई रूप से लेनदेन को रद्द करने को अनुमेय ठहराने वाली कोई चीज़ उपस्थित न हो, जैसे कि शर्त, दोष और ग़बन (धोखे) का विकल्प।
इसलिए यदि आपको बिक्री में धोखा दिया गया था, और शरई रूप से आपके लिए (लेनदेन को रद्द करने का) विकल्प सिद्ध है : तो आपके पास इस बिक्री को रद्द करने का अधिकार है, और आप दंडात्मक शर्त के बाध्य नहीं हैं।
जिस ग़बन का एतिबार किया जाता है उससे अभिप्राय घोर ग़बन है, मामूली ग़बन नहीं।
फ़ुक़हा ने घोर ग़बन की सीमा के बारे में मतभेद किया है। उनमें से कुछ ने इसे (उचित बाज़ार मूल्य से) एक तिहाई अधिक होने के साथ और कुछ ने पाँचवाँ भाग अधिक होने के साथ परिभाषित किया है, और कुछ ने इस मामले में व्यापारियों के रिवाज को संदर्भ बनाया है।
“अल-मौसूअह अल-फिक़्हिय्यह” (20/150) में आया है : “घोर ग़बन से अभिप्राय : हनफिया के निकट, तथा मालिकिया के अनुसार उनके अधिक सही दृष्टिकोण में और हनाबिला के निकट एक दृष्टिकोण के अनुसार : यह है कि ग़बन का आकलन करने में व्यापारियों के रिवाज का एतिबार किया जाएगा।
इसे परिभाषित करने में भले ही उनके शब्द भिन्न हैं, परंतु उन सब का अर्थ एक है।
मूल्यांकनकर्ताओं के मूल्यांकन का एतिबार इसलिए किया जाता है, क्योंकि दोषों और इसी तरह के मामलों के बारे में जिनके लिए लेनदेन में अनुभव की आवश्यकता होती है, उन्हीं लोगों की ओर लौटा जाता है।
मालिकिय्या और हनाबिला का दूसरा कथन यह है कि ग़बन के बारे में एक तिहाई का एतिबार किया जाएगा। तथा मालिकिय्या का तीसरा कथन यह है कि है जो एक तिहाई से अधिक हो (उसका एतिबार होगा)।" उद्धरण समाप्त हुआ।
तीसरा :
यदि ग़बन का विकल्प (यानी धोखे के कारण सौदे को रद्द करने का विकल्प) सिद्ध हो जाता है, तो आप ज़मीन वापस कर सकते हैं और क़ीमत वापस ले सकते हैं, या आप उसे रख सकते हैं, लेकिन आपको भुगतान की गई क़ीमत और बाजार मूल्य के बीच का अंतर नहीं मिलेगा।
"कश्शाफुल-क़िना’" (3/212) में कहा गया है : “खरीदार को बेची गई चीज़ को वापस करने या उसे रखने (यानी सौदा स्वीकार करने) के बीच विकल्प दिया जाएगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।