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मैं एक गर्भवती महिला हूँ और मैं अच्छी तरह से सजदा नहीं कर सकती। क्योंकि स्थिति बिल्कुल भी आरामदायक नहीं है। क्या मैं बैठकर नमाज़ पढ़ूँ, हालाँकि मैं अधिकांश नमाज़ खड़ी होकर पढ़ने में सक्षम हूँ?
बैठने की स्थिति में नमाज़ पढ़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा क्या है, क्या कुर्सी पर है या ज़मीन परॽ क्या मुझे खड़े होने की जगहों में खड़ा होना चाहिए और सजदे की जगहों और नीचे बैठने के स्थानों में कुर्सी पर बैठना चाहिए?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
बीमार व्यक्ति की नमाज़ के संबंध में मूल सिद्धांत यह है कि वह नमाज़ के अरकान एवं वाजिबात (आवश्यक कार्यों) में से जो कुछ भी करने में सक्षम है, उसे करना उसके लिए अनिवार्य है, तथा जिसे करने में वह असमर्थ है, उससे वह समाप्त हो जाएगा। इस बात को क़ुरआन और सुन्नत के बहुत-से प्रमाण इंगित करते हैं। अल्लाह तआला का फरमान है :
فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُم
التغابن: 16
‘‘अतएव तुम अपनी यथाशक्ति अल्लाह से डरते रहो।’’ (सूरतुत्-तग़ाबुन : 16)
तथा फरमाया :
لا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْساً إِلا وُسْعَهَا
[البقرة : 286]
‘‘अल्लाह तआला किसी प्राणी पर उसकी शक्ति से अधिक भार नहीं डालता।’’ (सूरतुल बक़रा : 286)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “जब मैं तुम्हें किसी चीज़ का आदेश दूँ, तो तुम अपनी शक्ति भर उसे करो।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 7288) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1337) ने रिवायत किया है।
इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं मुझे बवासीर की बीमारी थी, तो मेंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नमाज़ के बारे में पूछा, तो आपने फरमाया : (खड़े होकर नमाज़ पढ़ो। यदि तुम इसमें सक्षम न हो, तो बैठकर नमाज़ पढ़ो। यदि इसमें भी सक्षम न हो, तो पहलू पर (लेटकर) नमाज़ पढ़ो।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1117) ने रिवायत किया है।
उपर्युक्त प्रमाणों के आधार पर, यदि आप खड़े होकर नमाज़ पढ़ सकती हैं, तो आपके लिए खड़ा होना अनिवार्य है। फिर जब आप खड़े होने में असमर्थ हो जाएँ या आपके लिए खड़ा होना बहुत कठिन हो जाए, तो आप नमाज़ के दौरान बैठ सकती हैं।
आप जो भी करने में सक्षम हैं और आपके लिए आसान है, उसके अनुसार आपके लिए कुर्सी पर या ज़मीन पर बैठना जायज़ है। लेकिन ज़मीन पर बैठना बेहतर है, क्योंकि सुन्नत का तरीक़ा यह है कि आदमी क़ियाम व रुकू’ (खड़े होने और झुकने) के स्थान पर फसकड़ा (आलथी-पालथी) मारकर बैठे, और यह कुर्सी पर करना आसान नहीं है।
शैख इब्ने उसैमीन ने कहा :
यदि वह खड़ा नहीं हो सकता है, तो उसे बैठकर नमाज़ पढ़ना चाहिए। और उसके लिए बेहतर यह है कि वह क़ियाम एवं रुकू’ (खड़े होने और झुकने) के स्थान पर आलथी-पालथी मार कर बैठे।” उद्धरण समाप्त हुआ। पुस्तिका “तहारतुल-मरीज़ि व सलातुहू”
यह आलथी-पालथी मारकर बैठना अनिवार्य नहीं है। अतः वह जैसा चाहे बैठ सकता है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “यदि तुम इसमें सक्षम न हो, तो बैठकर नमाज़ पढ़ो।” और आपने यह नहीं बताया कि उसे कैसे बैठना चाहिए।” देखें : “अश-शर्हुल मुम्ते’” (4/462).
यदि आपके लिए सजदा करना और रुकू’ करना बहुत मुश्किल है, तो आप उनका इशारा करेंगी (यानी : अपनी पीठ को झुकाएँगी) और सजदा के लिए रुकू’ से अधिक झुकाएँगी।
और यदि आप खड़े होने में सक्षम हैं, तो रुकू’ के लिए इशारा खड़े होने की स्थिति में करेंगी (आगे झुकेंगी) और सजदे कि लिए इशारा बैठने की स्थिति में करेंगी (आगे झुकेंगी)। क्योंकि खड़े होने की स्थिति बैठने की स्थिति की तुलना में रुकू’ के अधिक क़रीब है, और बैठने की स्थिति खड़े होने की तुलना में सजदे से अधिक क़रीब है।
शैख़ इब्ने बाज़ ने कहा :
“जो व्यक्ति खड़ा होने में सक्षम है, लेकिन रुकू या सजदा करने में असमर्थ है, तो उससे क़ियाम (खड़े होने का दायित्व) समाप्त नहीं होगा। बल्कि वह खड़े होकर नमाज पढ़ेगा और रुकू के लिए इशारा करेगा (आगे झुकेगा) (अर्थात खड़े होने की स्थिति में रहते हुए) फिर बैठ जाएगा और सजदे के लिए इशारा करेगा (आगे झुकेगा) ... और वह सजदे के लिए रुकू' की तुलना में अधिक झुकेगा। और यदि वह केवल सजदा करने में असमर्थ है, तो वह रुकू' करेगा और सजदे के लिए इशारा करेगा (आगे झुकेगा)…
जब भी बीमार व्यक्ति नमाज़ के दौरान वह कुछ करने में सक्षम हो जाता है, जो वह करने में असमर्थ था, जैसे कि खड़ा होना, या बैठना, या रुकू' करना, या सजदा करना, तो वह उसी समय उसे करना शुरू कर देगा और जो कुछ भी उसने अपनी नमाज़ पूरी कर ली है, उसपर आगे नमाज़ जारी रखेगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
पुस्तिका : “अहकाम सलातिल-मरीज़ व तहारतिहि”
शैख इब्ने उसैमीन ने कहा :
“जो व्यक्ति रुकू करने (झुकने) में सक्षम नहीं है, वह खड़े होने की अवस्था में उसका इशारा करेगा। (यानी खड़े होकर आगे की ओर झुकेगा) और जो सजदा करने में सक्षम नहीं है, वह बैठने की अवस्था में उसका इशारा करेगा। (यानी बैठे-बैठे आगे की ओर झुकेगा)।” “अश-शर्हुल-मुम्ते’” (4/475)।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।