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हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।गैर-मुस्लिम देशों में मुस्लिम परिवारों के अस्तित्व की रक्षा के लिए, घर के भीतर और उसके बाहर कई शर्तों और आवश्यकताओं को पूरा करना होगाः
घर के भीतर :
1- पिता को अपने बच्चों के साथ नियमित रूप से मस्जिद में नमाज़ पढ़ना चाहिए। अगर वहाँ पास में कोई मस्जिद न हो तो घर में जमाअत से नमाज़ पढ़ना चाहिए। ।
2- उन्हें प्रतिदिन क़ुरआन पढ़ना और उसकी तिलावत (पाठ) को सुनना चाहिए।
3- उन्हें एक दूसरे के साथ खाने पर एकत्रित होना चाहिए।
4- जहाँ तक हो सके उन्हें क़ुरआन की भाषा में बातचीत करनी चाहिए।
5- उन्हें उन पारिवारिक तथा सामाजिक शिष्टाचार को बनाए रखना चाहिए जिनको सर्व संसार के पालनहार ने अपनी पुस्तक (क़ुरआन) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है, उन्हीं में से कुछ (शिष्टाचार) सूरतुन्नूर में है।
6- वे खुद को या अपने बच्चों को अश्लील, अनैतिक और भ्रष्ट फिल्में न देखने दें।
7- बच्चों के लिए अनिवार्य है कि वे घर ही पर रात बितायें और जितना संभव हो घर में रहें; ताकि वे बाहर के बुरे माहौल से बच सकें। उनको घर से बाहर सोने की अनुमति कभी नहीं मिलनी चाहिए।
8- उन्हें अपने बच्चों को घर से दूर विश्वविद्यालयों में भेजने से बचना चाहिए, जहाँ उन्हें विश्वविद्यालय के आवास में रहना होगा। अन्यथा हम अपने बच्चों को खो देंगे, जो गैर मुस्लिम समाज में घुल-मिल जायेंगे।
9- पूरी तरह से ह़लाल भोजन का उपयोग करना अनिवार्य है, तथा माता-पिता को पूर्ण रूप से ह़राम वस्तुओं के इस्तेमाल से बचना चाहिए जैसे सिग्रेट, गांजा (मारिजुआना) और अन्य चीजें जो गैर-मुस्लिम देशों में व्यापक रूप से उपलब्ध हैं।
घर के बाहर :
1-हमें अपने बच्चों को बालवाड़ी (किंडर-गार्टन) से उच्च माध्यमिक विद्यालय (इंटरमीडियेट स्कूल) के अंत तक इस्लामी स्कूलों में भेजना चाहिए।
2- उन्हें जितना संभव हो उतना जुमा और जमाअत की नमाज़ों के लिए, तथा व्याख्यान, सदुपदेश और ज्ञान आदि की मंडलियों और सभाओं में भाग लेने के लिए, मस्जिद में भेजना चाहिए।
3- मुस्लिमों द्वारा देखभाल किए जाने वाले स्थानों पर हमें बच्चों और युवाओं के लिए शैक्षिक और खेल गतिविधियों की स्थापना करनी चाहिए।
4- शैक्षिक शिविरों का आयोजन करना जहाँ परिवार के सभी सदस्य जा सकते हैं।
5- माता-पिता का अपने बच्चों के साथ उम्रा के अनुष्ठान और हज्ज के कर्तव्य को पूरा करने के लिए पवित्र स्थानों पर जाने का प्रयास करना चाहिए।
6- बच्चों को सरल भाषा में इस्लाम के बारे में बताने के लिए प्रशिक्षण देना जिसे बड़े और बच्चे, मुसलमान और गैर-मुसलमान सब समझ सकें।
7- बच्चों को क़ुरआन याद करने की प्रशिक्षण देना चाहिए, और - अगर संभव हो - तो उन्हें किसी मुस्लिम अरब देश में दीन की गहन समझ हासिल करने के लिए भेजना चाहिए ताकि वे ज्ञान, दीन (धार्मिकता) और क़ुरआन की भाषा से लैस होकर अल्लाह की ओर बुलाने वाले बनकर लौटें।
8- बच्चों में से कुछ को जुमा का खुत्बा (भाषण) देने और मुसलमानों की इमामत कराने के लिए प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि वे इस्लामी समुदायों का नेतृत्व कर सकें।
9- बच्चों को शीघ्र विवाह करने के लिए प्रोत्साहित करना ताकि हम उनके धार्मिक और सांसारिक हितों की रक्षा कर सकें।
10- उन्हें उन मुसलमान लड़कियों और परिवारों से शादी करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जो अपनी धार्मिक प्रतिबद्धता और अच्छे व्यवहार के लिए जाने जाते हैं।
11- परिवार के विवादों को सुलझाने के लिए इस्लामी समुदाय के ज़िम्मेदारों, अथवा इस्लामी केंद्र के इमाम व खतीब (उपदेशक) की मदद लेनी चाहिए।
12- नृत्य, संगीत और गायन की पार्टियों, अनैतिकता के उत्सवों और काफिरों के त्योहारों में उपस्थिति नहीं होना चाहिए। तथा बच्चों को, हिक्मत (बुद्धिमत्ता) के साथ, स्कूल के ईसाई छात्रों के साथ रविवार को चर्च में जाने से रोकना चाहिए।
और अल्लाह तौफ़ीक़ देने वाला और सीधा मार्ग दिखाने वाला है।