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बहुविवाह का हुक्म और उसकी शर्तें

27-05-2012

प्रश्न 49044

बहुविवाह का क्या हुक्म है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

अल्लाह तआला ने पुरूषों के लिए बहुविवाह -अर्थात एक ही समय में एक से अधिक औरतों से विवाह- वैध ठहराया है, चुनांचे अल्लाह तआला ने अपनी पवित्र पुस्तक में फरमाया :

وَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تُقْسِطُوا فِي الْيَتَامَى فَانْكِحُوا مَا طَابَ لَكُمْ مِنَ النِّسَاءِ مَثْنَى وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تَعْدِلُوا فَوَاحِدَةً أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ذَلِكَ أَدْنَى أَلَّا تَعُولُوا [النساء : 3]

और यदि तुम्हें डर हो कि अनाथ लड़कियों से विवाह करके तुम न्याय नहीं कर सको गे, तो अन्य औरतों में से जो तुम्हें अच्छी लगें उनसे शादी कर लो, दो-दो, तीन-तीन, चार-चार, लेकिन यदि तुम्हें डर हो कि न्याय नहीं कर सकोगे तो एक ही काफी है, या तुम्हारी मिल्कियत की दासियाँ, यह इस बात के अधिक योग्य है कि एक ओर झुक जाने से बचो। (सूरतुन निसा : 3).

यह आयत बहुविवाह की वैधता के बारे में स्पष्ट प्रमाण है, अतः इस्लामी धर्म शास्त्र में पुरूष के लिए वैध है कि वह एक औरत से, या दो औरतों से, या तीन औरतों से या चार औरतों से शादी करे, और उसके लिए चार से अधिक औरतों से विवाह करना जाइज़ नहीं है, यही बात मुफस्सेरीन -क़ुरआन के भाष्यकारों- और फुक़हा -धर्म शस्त्रियों- ने कही है, तथा इस पर मुसलमानों की सर्व सहमति है इसमें कोई मतभेद नहीं है।

तथा यह बात ज्ञात रहनी चाहिए कि एक से अधिक औरतों से शादी करने की कुछ शर्तें हैं:

1. न्याय:

क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :

فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تَعْدِلُوا فَوَاحِدَةً [النساء : 3]

‘‘यदि तुम्हें भय है कि तुम न्याय नहीं कर सको गे तो एक ही काफी है।” (सूरतुन निसा : 3).

इस आयत से ज्ञात हुआ कि न्याय बहुविवाह की वैधता के लिए शर्त है, यदि आदमी को डर हैकि वह अपनी पत्नियों के बीच न्याय नहीं कर सकेगा अगर उसने एक से अधिक औरत से विवाह किया, तो उसके लिए एक से अधिक औरत से विवाह करना वर्जित और निषिद्ध है। यहाँ पर न्याय से अभिप्राय अपनी पत्नियों के बीच खर्च, पहनावा (कपड़ा), रात बिताने इत्यादि सांसारिक चीज़ों में जो उसकी शक्ति और ताक़त में होती हैं, बराबरी करना है। रही बात प्यार व महब्बत में बराबरी करने की तो आदमी इसका ज़िम्मेदार नहीं है, और न ही उस से इसकी मांग की जायेगी क्योंकि वह इसकी ताक़त नहीं रखता है, और यही अल्लाह तआला के इस फरमान का अर्थ हैः

ولن تعدلوا بين النساء ولو حرصتم [النساء : 129]

“और तुम औरतों के बीच न्याय कदापि नहीं कर सकते भले ही तुम इसके लालायित हो।” (सूरतुन निसा : 129) अर्थाती हार्दिक प्यार में।

2. बीवियों पर खर्च करने की क्षमता :

इस शर्त का प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है :

وَلْيَسْتَعْفِفِ الَّذِينَ لَا يَجِدُونَ نِكَاحًا حَتَّى يُغْنِيَهُمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ [النور : 33]

“और उन लोगों को पाक रहना चाहिए जो अपना विवाह करने का सामर्थ्य नहीं रखते, यहाँ तक कि अल्लाह तआला उन्हें अपनी अनुकम्पा से धनवान बना दे।” (सूरतुन्नूर: 33).

अल्लाह तआला ने इस आयत में आदेश दिया है कि जो व्यक्ति निकाह का सामर्थ्य रखता है किंतु वह उसे पाता नहीं है और वह उसके ऊपर दुर्लभ है, तो वह पवित्रता अपनाए, तथा निकाह के दुर्लभ होने के कारणों में से : यह है कि विवाह करने के लिए महर न पाए, और वह अपनी पत्नी पर खर्च करने पर सक्षम न हो।” अल-मुफस्सल फी अहकामिल मरअह, भागः 6, पृष्ठः 286.

तथा विद्वानों का एक समूह इस बात की ओर गया है कि बहुविवाह, एक पत्नी पर निर्भर करने से श्रेष्ठतर है। शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया है कि विवाह में मूल सिद्धांत बहुविवाह है या एक विवाह ॽ तो उन्हों ने उत्तर दिया : “इसके अंदर मूल सिद्धांत बहुविवाह की वैधता है उस आदमी के लिए जो इस पर सक्षम है और उसे अन्याय का डर नहीं है, क्योंकि इसके अंदर बहुत से हित हैं, उसके गुप्तांग की पवित्रता, तथा जिन औरतों से विवाह किया जायेगा उनकी पवित्रता और उन पर उपकार, नस्ल की वृद्धि जिस से उम्मत की संख्या में वृद्धि होगी, और एक अल्लाह की उपासने करने वालों की संख्या में वृद्धि होगी। और इस पर अल्लाह तआला का यह फरमान तर्क स्थापित करता है :

وَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تُقْسِطُوا فِي الْيَتَامَى فَانْكِحُوا مَا طَابَ لَكُمْ مِنَ النِّسَاءِ مَثْنَى وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تَعْدِلُوا فَوَاحِدَةً أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ذَلِكَ أَدْنَى أَلَّا تَعُولُوا [النساء : 3]

और यदि तुम्हें डर हो कि अनाथ लड़कियों से विवाह करके तुम न्याय नहीं कर सको गे, तो अन्य औरतों में से जो तुम्हें अच्छी लगें उनसे शादी कर लो, दो-दो, तीन-तीन, चार-चार, लेकिन यदि तुम्हें डर हो कि न्याय नहीं कर सकोगे तो एक ही काफी है, या तुम्हारी मिल्कियत की दासियाँ, यह इस बात के अधिक योग्य है कि एक ओर झुक जाने से बचो। (सूरतुन निसा : 3).

और इसलिए भी कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक से अधिक औरतों से विवाह किया और अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

( لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ ) [الأحزاب : 21]

निःसन्देह तुम्हारे लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में उत्तम आदर्श (बेहतरीन नमूना) है। (अल-अहज़ाबः 21)

तथा अ ल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस समय जब कुछ सहाबा ने कहा कि: मैं गोश्त नहीं खाऊँगा, दूसरे ने कहा कि: मैं रात भर नमाज़ पढ़ूँगा और सोऊँगा नहीं, तीसरे ने कहा कि : मैं औरतों से विवाह नही करूँगा, तो जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसकी सूचना मिली तो आप ने लोगों को भाषण दिया। आप ने अल्लाह की स्तुति और प्रशंसा किया, फिर फरमाया:

तुम लोगों ने इस-इस तरह की बात कही है, सुनो ! अल्लाह की कस़म! मैं तुम में सब से अधिक अल्लाह से डरने वाला और सब से अधिक मुत्तक़ी और परहेज़गार हूँ, किन्तु मैं रोज़ा रखता हूँ और कभी रोज़ा नहीं भी रखता, और मैं (रात को) नमाज़ पढ़ता हूँ और सोता भी हूँ, तथा मैं ने औरतों से शादियाँ भी कर रखी हैं। अतः जो मेरी सुन्नत से उपेक्षा करे वह मुझसे (अर्थात् मेरे तरीक़े पर नहीं) है।”

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह महान शब्द एक और अनेक हरेक के लिए सर्वसामान्य है।” मजल्ल्तुल बलाग़ अंक : 1015, फतावा उलमाइल बल-दिल हराम पृष्ठ : 386.

एकाधिक पत्नियाँ और उनके बीच न्याय
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