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क्या इफतार को मगरिब की नमाज़ के बाद विलंब करने में कोई सवाब है ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
इफतार को विलंब करने में कोई पुण्य नहीं है, बल्कि सर्वश्रेष्ठ और सवाब में सबसे संपूर्ण सूरज डूबने के तुरंत बाद जल्दी से रोज़ा इफतार करना है।
बुखारी (हदीस संख्या : 1957) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1098) ने सह्ल बिन सअद से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘लोग निरंतर भलाई में रहेंगे जब तक वे रोज़ा इफ्तार करने में जल्दी करते रहेंगे।’’
तथा इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2353) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है और उसमें ये शब्द हैं : ‘‘क्योंकि यहूदी और ईसाई उसमें विलंब करते हैं।’’ इसे अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2353) में हसन कहा है।
नववी ने फरमाया :
“इस हदीस में सूरज के निश्चित रूप से डूब जाने के बाद इफ्तार में जल्दी करने पर उभारा और बल दिया गया है, और इसका अर्थ यह है कि उम्मत का मामला रिनंतर संगठित और व्यवस्थित रहेगा और वे भलाई के साथ रहेंगे जब तक कि वे इस सुन्नत की पाबंदी और रक्षा करते रहेंगे, और जब वे रोज़ा इफ्तार करने में विलंब करेंगे तो यह उनके खराबी में पड़ने की निशानी होगी।” अंत हुआ.
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान : ‘‘क्योंकि यहूदी व ईसाई उसमें विलंब करते हैं।’’
तीबी ने फरमाया :
“इस कारण के स्पष्टीकरण में यह प्रमाण है कि हनीफी धर्म का आधार अह्ले किताब में से दुश्मनों का विरोध करने पर है, और उनके साथ सहमति रखने में धर्म का विनाश है।” अंत हुआ।
तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 1099) ने रिवायत किया है कि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों में से एक आदमी (और वह अब्दुल्लाह बिन मसऊद हैं) के बारे में पूछा गया कि वह इफ्तार और मगरिब की नमाज़ में जल्दी करते हैं, तो उन्हों ने उत्तर दिया : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इसी तरह किया करते थे।’’
इमाम शाफेई ने ‘‘अल-उम्म’’ में फरमाया :
‘‘इफ्तार में जल्दी करना मुस्तहब है।’’अंत हुआ
तथा इब्ने हज़्म ने ‘‘अल-मुहल्ला’’ (4/380) में फरमाया :
“तथा सुन्नत में से रोज़ा इफ्तार करने में जल्दी करना और सेहरी करने में विलंब करना है, और वह मात्र सूरज का रोज़ेदार के उफुक़ (क्षितिज) से गायब होना है इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।’’
विद्वानों ने इफ्तार में जल्दी करने के मुस्तहब होने की कई हिकमतें उल्लेख की हैं, उन्हीं में से कुछ निम्नलिखित हैं :
1- यहूदियों और इसाईयों का विरोध करना।
2- सुन्नत का अनुकरण करना और उसके अनुरूप होना।
3- दिन में रात की वृद्धि न की जाए।
4- यह रोज़ेदार के लिए अधिक आसानी की बात है और उसके लिए इबादत पर अधिक शक्ति का कारण है।
5- तथा इसमें अल्लाह सर्वशक्तिमान की वैद्ध की हुई चीज़ को उपभोग करने में पहल करना पाया जाता है, और अल्लाह सुबहानहु व तआला दानशील है, और दानशील इस बात को पसंद करता है कि लोग उसकी दानशीलता से लाभान्वित हों, अतः वह अपने बंदों से इस बात को पसंद करता है कि वे सूरज डूबने के समय से ही उस चीज़ की तरफ जल्दी करें जो उसने उनके लिए हलाल ठहराई है।
“विद्वानों ने इस बात पर सर्वसहमति जताई है कि इसका स्थान उस समय है जब दृष्टि के द्वारा या दो न्यायप्रिय लोगों की सूचना से सूरज का डूबना निश्चित हो जाए, इसी प्रकार सबसे राजेह (उचित) मत के अनुसार एक न्यायप्रिया व्यक्ति की सूचना से भी।’’ इसे हाफिज़ (इब्ने हजर) ने कहा है।
देखिए: ‘‘फत्हुल बारी’’ शरह हदीस संख्या (1957), ‘‘अश्शरहुल मुम्ते’’ (6/267).