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भ्रूण की चौथे महीने में मृत्यु हो गई तो क्या उसका नाम रखा जायेगा, उसका अक़ीक़ा किया जायेगा, उसे स्नान दिया जायेग और कफन पहनाया जायेगा ?

27-12-2013

प्रश्न 50106

मेरी पत्नी गर्भवती थी। चार महीने और तीन सप्ताह में भ्रूण की मृत्यु हो गई जबकि वह अपनी मां के पेट के अंदर था। अब हमें क्या करना चाहिए ? क्या उसका नाम रखा जायेगा ? क्या उसके लिए अक़ीक़ा किया जायेगा ? अगर उसके संबंध में कोई और चीज़ है तो कृपया उस पर हमारी मदद करें।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

चार महीने के बाद गिर जाने वाले भ्रूण (जनीन) से संबंधित मसाइल (मुद्दों) के बारे में विद्वानों के बीच मतभेद पाया जाता है। हमारे मशाइख (विद्वान व गुरूजन) जिस चीज़ का फत्वा देते हैं वह यह है कि उसका नाम रखा जायेगा, उसे स्नान दिया जायेगा, उसे कफन पहनाया जायेगा, उस पर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जायेगी, उसे मुसलमानों के साथ दफन किया जायेगा और उसकी तरफ से अक़ीक़ा किया जायेगा।

स्थायी समिति के विद्वानों से पूछा गया :

मैं आपको सूचित करता हूँ कि मेरी पत्नी ने अपनी मृत्यु से पूर्ण अपने एक भ्रूण को गिरा दिया जो चार महीने का था। मैं ने उसे लेकर उसपर जनाज़ा की नमाज़ पढ़े बिना ही दफन कर दिया। आप से अनुरोध है कि यदि मेरे ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य है तो मुझे अवगत कराएं।

तो उन्हों ने उत्तर दिया :

जब उसने चार महीने पूरे कर लिए थे तो विद्वानों के सही कथन के अनुसार उचित यह था कि उसे स्नान कराया जाता, कफन पहनाया जाता और उस पर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जाती। इसका प्रमाण उस हदीस का सामान्य अर्थ है जिसे अबू दाऊद और तिर्मिज़ी ने मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''गिरे हुए बच्चे पर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जायेगी।'' लेकिन अब उस अपेक्षित चीज़ का समय निकल चुका है, और आपके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है।'' ''फतावा स्थायी समिति'' (8/406).

तथा उन्हों ने यह भी कहा है कि :

अगर उसका चार महीना पूरा नहीं हुआ है तो उसे न स्नाना करवाया जायेगा, न उस पर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जायेगी, न उसका नाम रखा जायेगा आर न ही उसकी तरफ से अक़ीक़ा किया जायेगा ; क्योंकि उसमें प्राण नहीं डाली गयी है।''फतावा स्थायी समिति (8/408).

तथा शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :

क्या छोटा बच्चा जो पूरा होने से पहले गिर जाए उसके लिए अक़ीक़ा है या नहीं ?

तो उन्हों ने उततर दिया :

जो चार महीना पूरा होने से पहले गिर जाए : तो उसके लिए अक़ीक़ा नहीं है, और न तो उसका नाम रखा जायेगा और न ही उसपर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी जायेगी, बल्कि उसे ज़मीन में किसी स्थान पर गाड़ दिया जायेगा।

लेकिन जहाँ तक चार महीने के बाद का संबंध है तो इसमें रूह फूँकी जा चुकी है। अतः इसका नाम रखा जायेगा, इसे स्नान दिया जायेगा, कफन पहनाया जायेगा, इस पर जनाज की नमाज़ पढ़ी जायेगी और मुसलमानों के साथ दफन किया जायेगा। तथा हमारे विचार के अनुसार उसकी ओर से अक़ीक़ा भी किया जायेगा। लेकिन कुछ विद्वानों का कहना है कि : उसकी ओर से अक़ीक़ा नहीं किया जायेगा यहाँ तक कि वह पूरे सात दिन ज़िन्दा रहे। लेकिन सहीह बात यह है कि उसकी ओर से अक़ीक़ा किया जायेगा कयोंकि उसे क़ियामत के दिन पुनः जीवित किया जायेगा और वह अपने माता पिता के लिए शफाअत करने वाला होगा।''''अस-इलतुल बाबिल मफ्तूह'' (प्रश्न संख्या - 653).

दूसरा :

इस अवधि में भ्रूण से जो खून निकलता है : वह निफास (प्रसव) का खून है। इसलिए औरत पर नमाज़ और रोज़ा से रुक जाना अनिवार्य है और उसके पति पर उससे संभोग करना हराम (निषिद्ध) है। तथा उस खून को निफास (प्रसव) का खून समझा जाता है अगर औरत ऐसे भ्रूण को गिरा दे जिसके अंदर मानव की रचना स्पष्ट हो चुकी थी।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :

अह्ले इल्म (धर्मज्ञानियों) का कहना है : यदि वह (भ्रूण, जनीन) इस अवस्था में बाहर निकले कि उसके अंदर मानव की रचना स्पष्ट हो चुकी थी : तो औरत का खून उसके निकलने के बाद प्रसव (निफास) का खून समझा जायेगा। जिसमें वह औरत नमाज़ और रोज़ा छोड़ देगी और अपने पति से दूर रहेगी यहाँ तक कि वह पाक व साफ हो जाय। और अगर वह इस हालत में निकलता है कि उसकी रचना नहीं हुई थी : तो उसके खून को निफास का खून नहीं समझा जायेगा, बल्कि वह ख़राब खून है जो उसे नमाज़, रोज़ा और उनके अलावा किसी चीज़ से नहीं रोके गा।

विद्वानों ने कहा है कि : ''सबसे कम समय जिसमें भ्रूण की बनावट स्पष्ट हो जाती है वह इक्यासी दिन है।'' . . . फतावल मर्अतिल मुस्लिमह (1/304, 305)

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

अक़ीक़ा और नवजात शिशु के प्रावधान
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