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मैं रीढ़ की हड्डी में बीमारी से पड़ित हूँ, और इलाज के तौर पर छह गोलियाँ लेता हूँ, तो क्या मेरे लिए इस बात की अनुमति है कि मैं रोज़ा तोड़ दूँ और बाद में क़ज़ा करूँ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि वह आप को कुशल मंगल करे, और आप को धैर्य तथा अज्र व सवाब की आशा प्रदान करे ताकि आपको पूरा पूरा अज्र व सवाब प्राप्त हो। अल्लाह तआला ने रोगी के साथ आसानी की है और उसके लिए रमज़ान में रोज़ा तोड़ना अनुमेय किया है, परंतु वह बीमारी समाप्त होने के बाद उन दिनों की क़ज़ा करेगा जिनके रोज़े उसने तोड़ दिए हैं। अल्लाह तआला का फरमान है :
فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ [البقرة:184].
''अतः तुम में से जो बीमार हो या यात्रा पर हो, तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे।’’ (सूरतुल बकरा : 184)
इब्न क़ुदामा अल-मक़दसी रहिमहुल्लाह कहते हैं :
‘‘विद्वानों की इस बात पर सर्वसम्मति है की बीमार व्यक्ति के लिए रोज़ा तोड़ना अनुमेय है, और इस बारे में मूल प्रमाण अल्लाह तआला का यह फरमान है : فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَر َ ''अतः तुम में से जो बीमार हो या यात्रा पर हो, तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे।’’ (सूरतुल बकरा : 184)'' अंत हुआ।
‘‘अल-मुगनी’’ (3/88)
रोज़ा तोड़ने को वैध ठहराने वाली बीमारी वह है जिसके साथ रोज़ा रखना हानिकारक हो या वह उससे स्वस्थ्य होने को विलंब कर देती हो। तथा दवा का प्रयोग करना कोई उज़्र (कारण) नहीं है सिवाय इसके कि उसे केवल उसके रोज़े के दिन के दौरान ही लेना संभव हो। यदि रोगी के लिए सेहरी के समय और मगरिब के बाद दवा लेना संभव है और रोज़ा उसके लिए नुक़सानदायक न हो : तो उसके लिए रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है। लेकिन यदि उसे दिन के समय दवा लेने की जरूरत है तो उसके ऊपर कोई हानि (आपत्ति) नहीं है कि वह रोज़ा तोड़ दे और उन दिनों की बाद में क़ज़ा करे जिनके रोज़े उसने तोड़ दिए हैं।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं:
‘‘हमारे अनुयायियों (शाफेइया) का कहना है : रोज़ा तोड़ने की अनुमति की शर्त यह है कि : उसे रोज़े से ऐसी कष्ट व कठिनाई पहुँचती हो जिसको सहन करना कठिन हो। रही बात साधारण बीमारी की जिससे कोई प्रत्यक्ष कठिनाई न पहुँचती हो : तो हमारे यहाँ बिना किसी मतभेद के उसके लिए रोज़ा तोड़ना जायज़ नहीं है।''अंत हुआ। ‘‘अलम-मजमूअ’’ (6/257)
इब्न क़ुदामा अल-मक़दसी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
‘‘रोज़ा तोड़ने को अनुमेय ठहराने वाली बीमारी वह है जो सख्त (गंभीर) हो, जो रोज़ा रखने से बढ़ती हो या उसके देरे से ठीक होने का भय हो।
इमाम अहमद से कहा गया : बीमार आदमी कब रोज़ा तोड़ देगा? उन्हों ने कहा : जब वह सक्षम न हो। कहा गया : उदाहरण के तौर पर बुखार?उन्हों ने कहा : बुखार से अधिक सख्त बीमारी कौन है?’’ अंत हुआ।
‘‘अल-मुगनी’’ (3/88)
तथा शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
‘‘बीमार आदमी के लिए रमज़ान के महीने में रोज़ा न रखना धर्मसंगत है यदि रोज़ा उसे नुक़सान पहुँचाता है या उसके ऊपर कठिन है, या उसे दिन के दौरान कई प्रकार की खाने और पीने जाने वाली गोलियों और सीरप आदि से दिन के दौरान इलाज की ज़रूरत है। क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान का कथन है:
فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ [البقرة:184].
''अतः तुम में से जो बीमार हो या यात्रा पर हो, तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे।’’ (सूरतुल बकरा : 184)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है : ‘‘अल्लाह तआला इस बात को पसंद करता है कि उसकी रियाअतों (रूख्सतों) को अपनाया जाए जिस तरह कि वह इस बात को नापसंद करता है कि उसकी अवज्ञा की जाए।’’ तथा एक दूसरी रिवायत में है कि : ‘‘जिस तरह कि वह इस बात को पसंद करता है कि उसके कर्तव्यों और अनिवार्य चीज़ों का पालन किया जाए।’’
‘‘फतावा इस्लामिया’’ (2/139) .
तथा शैख इब्न उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
‘‘अगर बीमार व्यक्ति रमज़ान में फज्र उदय होने के बाद दवा पी ले, तो उसका रोज़ा सही नहीं है ; क्योंकि उसने जानबूझकर रोज़ा तोड़ा है और उसके लिए उस दिन के बाक़ी हिस्से में खाने पीने से रूक जाना अनिवार्य है, सिवाय इसके कि उसके ऊपर बीमारी की वजह से खाने पीने से रूकना कठिन हो, तो ऐसी स्थिति में वह बीमारी की वजह से रोज़ा तोड़ सकता है, और उसके ऊपर क़ज़ा अनिवार्य है ; क्योंकि उसने जानबूझकर रोज़ा तोड़ा है।
तथा बीमार आदमी के लिए रमज़ान में रोज़े की हालत में दवा लेना वैध नहीं सिवाय इसके कि कोई ज़रूरत पड़ जाए, उदाहरण के तौर पर हमें उसके ऊपर मृत्यु का भय हो तो हम इस खतरे को कम करने के लिए उसे गालियाँ देंगे। इस स्थिति में उसका रोज़ा टूट जायेगा और बीमारी की उपस्थिति में रोज़ा तोड़ने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।’’ अंत हुआ।
‘‘फतावा इब्न उसैमीन’’ (19/प्रश्न संख्या 76)
यदि आपकी बीमारी पुरानी है और बराबर जारी है, इस प्रकार कि आप उसके होते हुए क़ज़ा नहीं कर सकते हैं, तो आपके ऊपर न तो रोज़ा रखना अनिवार्य है और न ही क़ज़ा करना। बल्कि आपके ऊपर अनिवार्य यह है कि रमज़ान के जितने भी दिनों का रोज़ा आप तोड़ देते हैं उनमें से हर दिन के बदले एक मिसकीन को दूपहर या शाम का खाना खिलाएं।
शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
एक आदमी दिल की बीमारी से पीड़ित है, और उसका केवल एक मामूली हिस्सा काम करता है जिसे निरंतर दवा की ज़रूरत होती है। अर्थात हर आठ या छह घंटे पर। तो क्या उससे रोज़ा समाप्त हो जायेगा?
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
‘‘जी हाँ, उससे रोज़ा समाप्त हो जायेगा, और वह हर दिन के बदले एक मिसकीन को खाना खिलायेगा, चाहे वह मिसकीनों को प्रति मिसकीन एक चौथाई साअ (एक चौथाई साअ अर्थात एक मुद्द यानी लगभग 510 ग्राम) के बराबर चावल दे दे, और उसके साथ गोश्त भी शामिल कर दे तो बहुत अच्छा है, और यदि वह चाहे तो रमज़ान की अंतिम रात में उन्हें रात का खाना खिला दे, या गैर रोज़ा के दिनों में किसी दिन उन्हें दूपहर का खाना खिला दे। हर एक जायज़ है।’’ अंत हुआ।
‘‘फतावा इब्न उसैमीन’’ (19/ प्रश्न संख्या : 87) .
तथा बीमारी की हालतों के बारे में : प्रश्न संख्या (38532) का उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।