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निषिद्ध वक़्तों में नमाज़ की कज़ा करना

20013

प्रकाशन की तिथि : 25-09-2013

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प्रश्न

कुछ लोगों ने मुझसे कहा है कि : हमारे लिए अस्र की नमाज़ के तुरंत बाद नमाज़ की क़ज़ा करना संभव नहीं है। आप से अनुरोध है कि मेरी सहायता करते हुए, मेरे लिए इस कथन से संबंधित विस्तृत उत्तर उल्लेख करें।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम : कुछ ऐसे औक़ात हैं जिनमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नमाज़ पढ़ने से मना फरमाया है, और वे यह हैं :

1- सुबह की नमाज़ के बाद यहाँ तक कि सूरज उग आए और एक भाले के बराबर ऊँचा हो जाए, अर्थात लगभग पंद्रह मिनट का समय बीत जाए। अश्शर्हुल मुम्ते (4/162).

2- सूरज के आकाश के बीचो बीच होने के समय, यह ज़ुहर की नमाज़ के समय के प्रवेश करने से पहले एक संछिप्त समय है। जो लगभग एक चौथाई या एक तिहाई घंटा के बराबर होता है। फतावा शैख इब्ने बाज़ (11/286). जबकि कुछ विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि यह इससे भी अधिक संछिप्त समय है। इब्ने क़ासिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया : यह एक सूक्ष्म समय है जो किसी नमाज़ के लिए काफी नहीं होता है, परंतु उसमें तक्बीर तहरीमा पढ़ना संभव है। अंत हुआ।

हाशिया इब्ने क़ासिम अला अर्रौज़ अल-मुरबे (2/245).

3- अस्र की नमाज़ के बाद से सूरज डूबने तक।

इन औक़ात के बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बहुत सी हदीसें वर्णित हैं जो इनमें नमाज़ पढ़ने से रोकती हैं, उन्हीं हदीसों में से कुछ निम्नलिखित हैं :

1- बुख़ारी (हदीस संख्याः 586) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 728) ने अबू सईद अल-खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: ‘‘अस्र की नमाज़ के बाद कोई नमाज़ नहीं यहाँ तक कि सूरज डूब जाए, और फज्र की नमाज़ के बाद कोई नमाज़ नहीं यहाँ तक कि सूरज निकल आए।''

2- मुस्लिम (हदीस संख्याः 832) ने अम्र बिन अंबसा अस्सुलमी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के नबी ! अल्लाह ने आप को जो कुछ सिखाया है और मैं उससे अवगत नहीं हूँ उसके बारे में मुझे सूचना दीजिए, मुझे नमाज़ के बारे में बतलाइए। तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘तुम सुबह – फज्र - की नमाज़ पढ़ो, फिर नमाज़ से रूक जाओ यहाँ तक कि सूरज उगकर ऊँचा हो जाए . . . फिर तुम नमाज़ पढ़ो क्योंकि नमाज़ में फरिश्तों की उपस्थिति और हाज़िरी होती है यहाँ तक कि नेज़े का साया समाप्त हो जाए (यानी ज़मीन पर उसका साया बाक़ी न रहे) - और यही सूरज के आसमान के बीचो बीच होने का समय है - फिर नमाज़ से रूक जाओ क्योंकि उस समय जहन्नम को भड़काया (दहकाया) जाता है, फिर जब साया आ जाए - और यह ज़ुहर की नमाज़ का प्राथमिक समय है - तो नमाज़ पढ़ो क्योंकि नमाज़ में फरिश्तों की उपस्थिति होती है यहाँ तक कि तुम अस्र की नमाज़ पढ़ लो, फिर नमाज़ से रूक जाओ यहाँ तक की सूरज डूब जाए . . .’’

दूसरा :

नमाज़ की क़ज़ा से अभिप्राय नमाज़ को उसका समय निकल जाने के बाद पढ़ना है, और कज़ा की जाने वाली नमाज़ या तो फर्ज़ होगी, या नफ्ल होगी।

जहाँ तक फर्ज़ नमाज़ की बात है : तो मुसलमान पर अनिवार्य है कि वह नमाज़ की उसके उस समय पर पाबंदी करे जिसे अल्लाह तआला ने उसके लिए निर्धारित किया है, अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया है :

إِنَّ الصَّلاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَوْقُوتًا [النساء : 103]

''निःसंदेह नमाज़ ईमान वालों पर एक निर्धारित समय पर अनिवार्य है।'' (सूरत निसा : 103)

अर्थात उसका एक निर्धारित समय है।

नमाज़ को अकारण विलंब करना यहाँ तक कि उसका समय निकल जाए, हराम है। और वह बड़े गुनाहों में से है।

यदि मुसलमान के सामने कोई उज़्र हो, जैसे नींद या भूलचूक का होना, और वह नमाज़ को उसके समय पर न पढ़ सके, तो उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह उस कारण के समाप्त होते ही नमाज़ की क़ज़ा करे, चाहे वह निषिद्ध औक़ात में से ही कोई वक़्त क्यों न हो। यही जमहूर विद्वानों का कथन है। देखिए : अल-मुग़नी (2/515).

इसका प्रमाण नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है :

´´जो व्यक्ति किसी नमाज़ से सो जाए या उसे भूल जाए तो उसे चाहिए कि उसको याद करते ही उसे पढ़ ले।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 597) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 684) ने रिवायत किया है।

जहाँ तक नफ्ल नमाज़ों का संबंध है तो: निषिद्ध वक़तों में उसकी क़ज़ा के बारे में विद्वानों के बीच मतभेद है, और सही बात यह है कि उसे क़ज़ा किया जायेगा, यही इमाम शाफई रहिमहुल्लाह का मत है। देखिए: अल-मजमूअ (4/170). तथा शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह ने इसे चयन किया है जैसाकि फतावा (23/127) में है। और इस बात पर कई हदीसें तर्क स्थापित करती हैं :

उन्हीं में से वह हदीस है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 1233) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 834) ने उम्मे सलमह रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अस्र के बाद दो रक्अतें पढ़ीं, तो मैं ने आप से उनके बारे में पूछा : तो आप ने फरमाया : ''मेरे पास अब्दुल क़ैस के कुछ लोग आये थे, तो उन्हों ने मुझे ज़ुहर के बाद की दोनों रक्अतों से व्यस्त कर दिया था तो ये वही दोनों रक्अतें हैं।''

उन्हीं में से : वह हदीसे भी है जिसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1154) ने क़ैस बिन अम्र से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक आदमी को फज्र की नमाज़ के बाद दो रक्अतें पढ़ते हुए देखा। तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''क्या सुबह की नामज़ दो बार पढ़ रहे हो ?´´ तो उस आदमी ने आपसे कहा : मैं ने फज्र से पहले की दोनों रक्अतें नहीं पढ़ी थी, तो मैं ने उन्हें (अब) पढ़ी है। वह कहते हैं कि तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस पर खामोश रहे।'' इसे अल्बानी ने सहीह इब्ने माजा (हदीस संख्या : 948) में सही कहा है। इब्ने क़ुदामा ने फरमाया : ''नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का खामोश रहना इसके जायज़ होने को इंगित करता है।'' अंत हुआ। अल-मुग़नी (2/532).

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है, तथा अल्ल तआला हमारे ईश्दूत मुहम्मद पर दया व शांति अवतरित करे।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद