हम आशा करते हैं कि आप साइट का समर्थन करने के लिए उदारता के साथ अनुदान करेंगे। ताकि, अल्लाह की इच्छा से, आपकी साइट – वेबसाइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर - इस्लाम और मुसलमानों की सेवा जारी रखने में सक्षम हो सके।
एक आदमी जमाअत के साथ मस्जिद में नमाज़ पढ़ता है, किन्तु वह अकेले नमाज़ पढ़ता है, बावजूद इसके कि सफों में खाली जगहें होती हैं जिनमें वह नमाज़ पढ़ सकता है, तो इस नमाज़ का क्या हुक्म है ? ज्ञात रहे कि वह हमेशा ऐसा ही करता है।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जमाअत की नमाज़ हमारे धर्म के महान प्रत्यक्ष प्रतीकों में से है। तथा इस बात का उल्लेख किया जा चुका है कि उसके अनिवार्य होने का कथन ही राजेह है जो प्रमाणों के अपेक्षाकृत है। (प्रश्न संख्या 120 देखिए).
जहाँ तक सफ के पीछे अकेले व्यक्ति की नमाज़ का संबंध है जबकि सफ में उसके लिए जगह हो, तो इसके शुद्ध होने के बारे में विद्वानों ने मतभेद किया है। इमाम तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ''विद्वानों के एक समूह ने इस बात को नापसंद किया है कि आदमी सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़े, तथा उन्हों ने कहा है कि यदि उसने सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ी है तो वह नमाज़ को दोहरायेगा, यही कथन अहमद और इसहाक़ का भ है।''
फिर इसे हम्माद बिन अबू सुलैमान, इब्ने अबी लैला और वकीअ से वर्णन किया है।
उन्हों ने कहा : ''तथा विद्वानों के एक समूह ने कहा है कि : यदि उसने सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ी है तो यह उसके लिए किफायत करेगी, और यही कथन सुफ्यान सौरी, इब्नुल मुबारक और शाफई का है।''
और इस संबंध में राजेह वही है जिसकी ओर इमाम अहमद और उनके अलावा विद्वान गए हैं कि अकेले व्यक्ति का सफ के पीछे नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है यदि वह उसमें दाखिल होने पर सक्षम है। यदि उसने ऐसा किया तो उसकी नमाज़ बातिल (अमान्य) है, और उसके ऊपर नमाज़ दोहराना अनिवार्य है।
इस पर वह हदीस भी दलील है जिसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 682) और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 230) वगैरह ने रिवायत किया है कि एक आदमी ने सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ी, तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे नमाज़ को दोहराने का हुक्म दिया। (इसे अल्बानी ने इर्वाउल-गलील में सही कहा है).
अल्लामा मुबारकपूरी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : इसमें इस बात पर प्रमाण है कि सफ़ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ना सही नहीं है, और यह कि जिसने सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ी तो उसके ऊपर उसे दोहराना अनिवार्य है। अंत हुआ।
तथा इसका प्रमाण वह हदीस भी है जिसे अहमद (हदीस संख्या : 15862) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1003) ने रिवायत किया है कि अली बिन शैबान एक वफ़द में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए, वह कहते हैं : तो हम ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे नमाज़ पढ़ी, तो आप ने अपनी किनखियों से एक आदमी को देखा जो रूकूअ और सज्दे में अपनी पीठ को सीधी नहीं रखता था। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पलटे तो फरमाया : ''हे मुसलमानों की जमाअत ! निःसंदेह उस आदमी की नमाज़ नहीं होती है जो रूकूअ और सज्दे में अपनी पीठ को सीधी नहीं रखता है।'' इसी तरह उन्हों ने कहा : ''तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक आदमी को सफ़ के पीछे नमाज़ पढ़ते हुए देखा, तो आप ठहर गए यहाँ तक कि वह आदमी नमाज़ से फारिग हो गया। तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘तुम अपनी नमाज़ को फिर से शुरू करो ; क्योंकि सफ के पीछे अकेले व्यक्ति की नमाज़ नहीं है।'' इसे अल्बानी ने सहीह इब्ने माजा में सहीह कहा है।
अल्लामा सिंधी रहिमहुल्लाह ने इब्ने माजा पर अपने हाशिया में फरमाया : हदीस का प्रत्यक्ष अर्थ यही है कि ऐसा करने वाले की नमाज़ व्यर्थ और अमान्य है।
अल्लामा सनआनी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
इस हदीस के अंदर सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ने वाले की नमाज़ के बातिल और अमान्य होने पर प्रमाण है,, क्योंकि हदीस में निषेद्ध प्रत्यक्ष रूप से सही होने का निषेद्ध है।
तथा इसके बातिल होने की बात नखई और अहमद ने कही है, और शाफई इस हदीस को कमज़ोर ठहराते थे और कहते थे : यदि यह हदीस साबित होती तो मैं इसके अनुसार बात कहता। तथा बैहक़ी ने फरमाया : पसंदीदा बात तो यही है कि इससे बचा जाए क्योंकि उपर्युक्त हदीस साबित है। अंत हुआ।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ने का क्या हुक्म है ?
तो आप रहिमहुल्लाह ने उत्तर दिया : ‘‘राजेह कथन के अनुसार सफ के पीछे अकेले व्यक्ति की नमाज़ जायज़ नहीं है, और यही इमाम अहमद रहिमहुल्लाह का प्रसिद्ध मत है, यद्यपि उनसे एक कथन यह भी वर्णन किया गया है वह सही है। और यही (अर्थात सफ के पीछे अकेले व्यक्ति की नमाज़ के सही होने का कथन) तीनों इमामों : मालिक, अबू हनीफा और शाफई का भी मत है।
लेकिन राजेह बात यही है कि सफ के पीछे अकेले व्यक्ति की नमाज़ सही नहीं है, सिवाय इसके कि सफ में खड़ा होना दूभर हो ; इस प्रकार कि सफ पूरी हो गई हो, तो ऐसी स्थिति में वह इमाम के अधीन रहते हुए सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ेगा ; क्योंकि वह उज़्र वाला है, और विवशता तथ असमर्थता के साथ अनिवार्य का हुक्म नहीं रह जाता है जैसाकि विद्वानों ने कहा है।'' (फतावा शैख इब्ने उसैमीन 15/193).
यह व्यक्ति, जिसके बारे में आप प्रश्न कर रहे हैं, जो कुछ कर रहा है उसकी गंभीरता को जानने कि लिए, आपका इस बात से अवगत होना उचित है कि कुछ विद्वान सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ने वाले की नमाज़ के सामान्य रूप से बातिल होने की ओर गए हैं ; अर्थात अगरचे उसे सफ मे जगह न मिले (फिर भी उसकी नमाज़ बातिल होगी)।
स्थायी समिति के फतावा में आया है कि : ‘‘जब आदमी मस्जिद में दाखिल हो, और नमाज़ खड़ी हो चुकी हो, और सफ भर गई हो, तो वह सफ में दाखिल होने का प्रयास करेगा। अगर उसके लिए ऐसा करना संभव नहीं होसका तो वह इमाम के साथ प्रवेश करेगा और उसके दाहिने ओर खड़ा हो जायेगा। यदि उसके लिए ऐसा करना भी संभव नहीं है तो वह प्रतीक्षा करेगा यहाँ तक कि कोई उपस्थित हो और उसके साथ सफ बनाए। यदि कोई भी उपलब्ध न हो तो जमाअत खत्म होने के बाद वह अकेले नमाज़ पढ़े।''
तथा उक्त विस्तार ही समिति के एक दूसरे उत्तर में भी वर्णित हुआ है, और उसके अंदर यह है कि इस बारे में बच्चों की सफबंदी काफी नहीं है यदि वे समझबूझ रखने वाले नहीं हैं, उसका कहना है : (... रही बात बच्चों की सफबंदी की, तो यदि वे समझबूझ वाले हैं तो उनकी सफबंदी सही है ... , और अगर वे समझबूझ वाले नहीं हैं, तो उसका हुक्म सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ने वाले का हुक्म है, और सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़नेवाले की नमाज़ सही नहीं है ; इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : ''सफ के पीछे अकेले व्यक्ति की नमाज़ नहीं है।'' (देखिए : फतावा स्थायी समिति 8/6-7)
इस बात में कोई संदेह नहीं कि वह रूप जिसके बारे में आप ने प्रश्न किया है जमाअत की नमाज़ से शरीअत की हिक्मत के बिल्कुल विपरीत है, और हर वह व्यक्ति जिसे शरीअत की हिक्मतों और उसके उद्देश्यों की मामूली भी जानकारी है वह इसका खण्डन करेगा। शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह तआला ने उन दोनों हदीसों का उल्लेख करने के बाद जिनसे सफ के पीछे अकेले नमाज़ पढ़ने वाले की नमाज़ के सही न होने पर दलील पकड़ी गई है, फरमाया :
(... इन दोनों हदीसों को हदीस के इमामों में से कई एक ने सही कहा है, और उन दोनों की सनदें ऐसी हैं जिनसे तर्क स्थापित होता है, बल्कि इन दोनों के विरोधी लोग बहुत से मुद्दों में इन दोनों से कमज़ोर सनद वाली हदीसों पर भरोसा करते हैं, तथा इन दोनों हदीसों में कोई ऐसी बात नहीं है जो सिद्धांतों के विरूद्ध है, बल्कि इनमें ऐसी बात है जो प्रसिद्ध नुसूस और निर्द्धारित सिद्धान्तों की अपेक्षाओं के अनुसार है ; क्योंकि जमाअत की नमाज़ का नाम जमाअत इस लिए रखा गया है क्योंकि नमाज़ी लोग इसकी अदायगी में एक ही स्थान और समय पर एकत्रित होते हैं। यदि वे एकत्र होने के स्थान या समय में गड़बड़ी कर दें, उदाहरण के तौर पर आगे बढ़ जाएं, या कुछ लोग इमाम से आगे बढ़ जायें और बिना किसी कारण के उससे बहुत अधिक पीछे रह जाएं, तो वह इमामों की सर्वसहमति के साथ निषिद्ध होगा। इसी तरह अगर वे तितर बितर हों संगठित न हों, उदाहरण के तौर पर यह उसके पीछे हो और यह उसके पीछे हो, तो यह बड़े निंदित और घृणित कामों में से होगा, बल्कि उन्हें सफबंदी करने का आदेश दिया गया है, बल्कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें सफों को सीधी करने, उन्हें बराबर करने, सफों में एक दूसरे से मिलकर खड़े होने, सफों के बीच की खाली जगहों को बंद करने, और सबसे पहले पहली सफ को ठीक करने फिर उसके बाद वाली सफ को ठीक करने का आदेश दिया है ; यह सब उनके यथासंभव सबसे अच्छे ढंग से एकत्रित होने को संपन्न करने में बढ़ा चढ़ाकर काम लेने के तौर पर है। और यदि सफबंदी करना अनिवार्य न होता तो एक का दूसरे के पीछे खड़ा होना जायज़ होता, और यह उन चीज़ों में से है जिसे प्रत्येक व्यक्ति सामान्य रूप से जानता है कि यह मुसलमानों की नमाज़ नहीं है, और अगर यह जायज़ चीज़ों में से होती तो मुसलमान इसे अवश्य करते चाहे एक बार ही सही। बल्कि इसी तरह अगर उन्हों ने सफ को असंगठित कर दिया : जैसे कि यह उससे आगे बढ़ जाए, और यह उससे पीछे रहे, तो यह ऐसी चीज़ है जिससे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मनाही करना सर्वज्ञात है, और निषेद्ध करना उसके हराम ठहराने की अपेक्षा करता है। बल्कि यदि वे इमाम के आगे नमाज़ पढ़ें तो यह इस तरह की चीज़ों से बेहतर होगा। यदि जमहूर विद्वान इमाम के आगे नमाज़ पढ़ने को सामान्य रूप से या बिना किसी कारण के सही नहीं मानते हैं, तो फिर बिना सफबंदी के नमाज़ कैसे सहीह हो सकती है ? अतः सिद्धान्तों का माप (उसूलों का क़ियास) सफबंदी करने की अनिवार्यता की अपेक्षा करता है, और यह कि अकेले वयक्ति की नमाज़ सही नहीं है जैसा कि इन दोनों हदीसों में आया है। विद्वानों में से जिसने इसका विरोध किया है तो बेशक उसे यह हदीसें ऐसे तरीक़े से नहीं पहुँची हैं जिस पर उसे भरोसा हो, बल्कि हो सकता है कि उसने इसे सुना ही न हो, और ऐसा भी हो सकता है कि उसने यह समझा हो कि यह हदीस ज़ईफ है, जैसाकि उनमें से कुछ ने इसका उल्लेख किया है .. )मजमूओ फतावा शैखुल इस्लाम 23/393 - 395.
अतः हे सम्मानित भाई, आप अपने उस भाई को जो ऐसा करता है, खूब नसीहत करें और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत से और आप के इस तरह करने से निषेद्ध करने से अवगत कराएं। लेकिन इस शर्त के साथ कि आपका उसे नसीहत करना नर्मी और आसानी के साथ हो। तथा आप ऐसी हालत का चयन करें जिसमें उसके आपकी नसीहत को क़बूल करने की आशा हो। अल्लाह तआला हमें और आपको उस चीज़ की तौफीक़ प्रदान करे जिसे वह पसंद करता है और उससे प्रसन्न होता है।