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अबू उमामह अल-बाहिली रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में, जिसे इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : “क़ुरआन पढ़ो, क्योंकि वह क़ियामत के दिन अपने पढ़ने वालों के लिए सिफ़ारिशी बनकर आएगा। दो प्रकाशमान् सूरतें : सूरतुल बक़रह और सूरत आल इमरान पढ़ो...” इसमें “पढ़ो” का क्या अर्थ है - क्या इसका मतलब उसे कंठस्थ करना है या मात्र पाठ करना हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन “इक़रऊ अल-क़ुरआन” (क़ुरआन पढ़ो) में आदेश सामान्यता पढ़ने को इंगित करता है, चाहे वह पढ़ना मुस-हफ़ (क़ुरआन) से देखकर हो या कंठस्थ करके (स्मृति से) पढ़ा जाए।
“(अपने साथियों के लिए सिफ़ारिशी) अर्थात अपने पढ़ने वालों के लिए।”
अल-मुनावी की “अत-तैसीर शर्ह अल-जामिउस्सगीर” (1/193) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इससे अभिप्राय निरंतरता के साथ और नियमित रूप से पढ़ना है। इस बात का संकेत हदीस के शब्द : (अपने साथियों के लिए) से मिलता है, क्योंकि साथी वह है जो निरंतर (नियमित रूप से) आपके साथ रहता है।
“फ़तावा अल-लज्नह अद्-दाईमह – द्वितीय संग्रह” (3/125) में आया है :
“इसमें कोई संदेह नहीं कि जो व्यक्ति क़ुरआन पढ़ता है, उसके अपेक्षानुसार काम करता है, उसके प्रावधानों को लागू करता है, उसका पाठ करने में महारत हासिल करता है और उसे निरंतरता के साथ तथा नियमित रूप से पढ़ता है, तो वह अल्लाह की प्रसन्नता और उसके स्वर्ग को प्राप्त करेगा और सम्मानित कुलीन फरिश्तों के साथ स्वर्ग के सर्वोच्च स्थानों तक पहुँच जाएगा। तथा यह क़ुरआन अपने उन पाठकों के लिए सिफारिशी और झगड़ने वाला होगा जो उसके अनुसार कार्य करते हैं, चाहे वह क़ुरआन को कंठस्थ करने वाला (हाफ़िज़) हो, या उसे कंठस्थ किए बिना मुस-ह़फ़ (क़ुरआन) से देखकर पढ़े। इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे इमाम मुस्लिम और अहमद ने अबू उमामह अल-बाहिली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “क़ुरआन पढ़ो, क्योंकि वह क़ियामत के दिन अपने पढ़ने वालों के लिए सिफ़ारिशी बनकर आएगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
क़ुरआन को केवल पढ़ना, उसके द्वारा शफाअत प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। बल्कि उसका पाठ करने के साथ-साथ उसके अनुसार कार्य करना आवश्यक है। इसका प्रमाण दूसरी हदीस में है जिसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 805) ने रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “क़ुरआन को क़ियामत के दिन लाया जाएगा तथा उसके उन साथियों को भी जो उसके अनुसार कार्य करते थे। सूरतुल बक़रह और आले इमरान उसके आगे-आगे होंगी, जैसे कि वे दो बादल के टुकड़े हैं, या दो काले-काले सायबान (कैनोपी) हैं जिनके बीच एक प्रकाश है, या पंक्तिबद्ध चिड़ियों के दो झुंड हैं, वे दोनों सूरतें अपने साथियों की ओर से बहस करेंगी।”
“मिर्क़ातुल मफ़ातीह शर्ह मिश्कातुल-मसाबीह” (4/1461) में आया है :
“जो उसके अनुसार कार्य करते थे” यह इंगित करता है कि जो लोग क़ुरआन पढ़ते हैं, लेकिन उसके अनुसार कार्य नहीं करते हैं, वे “अह्ले क़ुरआन” (क़ुरआन वालों) में से नहीं होंगे, और क़ुरआन उनके लिए सिफ़ारिश करने वाला नहीं होगा, बल्कि क़ुरआन उनके खिलाफ सबूत (हुज्जत) होगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा :
“नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन : “क़ुरआन पढ़ो, क्योंकि वह क़ियामत के दिन अपने पढ़ने वालों के लिए सिफ़ारिशी बनकर आएगा।” इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह में उल्लेख किया है। उसके साथियों से अभिप्राय : वे लोग हैं जो उसके अनुसार कार्य करने वाले हैं, जैसा कि दूसरी हदीस में आया है : और वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है : “क़ुरआन को क़ियामत के दिन लाया जाएगा तथा उसके उन साथियों को भी जो उसके अनुसार कार्य करते थे...”
“मजमूओ फतावा इब्ने बाज़” (8/156) से उद्धरण समाप्त हुआ।
ऊपर जो कुछ उल्लेख किया गया है, उसका मतलब यह नहीं है कोई व्यक्ति क़ुरआन को याद करने के लिए लालायित न हो। क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं कि क़ुरआन के हाफ़िज़ को दूसरों पर उत्कृष्टता प्राप्त है, जैसा कि धार्मिक ग्रंथों से इसका पता चलता है। इसके संबंध में अधिक जानकारी के लिए, प्रश्न संख्या : (14035) और प्रश्न संख्या : (20803) के उत्तर देखें।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।