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मुझे इस बात की जानकारी है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (आप पर अल्लाह की दया और शान्ति अवतरित हो) ने शक के दिन रोज़ा रखने से रोका है, इसी तरह रमज़ान के महीने से एक दो दिन पहले रोज़ा रखने से भी मना किया है। किन्तु, क्या मेरे लिए इन दिनों में पिछले रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करना जायज़ है?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
जी हाँ, शक के दिन और रमज़ान से एक या दो दिन पहले़, पिछले रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करना जायज़ है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह बात प्रमाणित है कि आप ने शक के दिन (अर्थात् 30 शाबान को) रोज़ा रखने से रोका है। तथा आप ने रमज़ान शुरू होने से एक या दो दिन पहले ही से रोज़ा रखने से भी मना किया है। किन्तु यह निषेध उस समय है जब आदमी की उन दिनों में रोज़ा रखने की कोई आदत न हो, क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है किः "रमज़ान से एक या दो दिन पहले रोज़ा न रखो, सिवाय उस आदमी के जो - इन दिनों में - कोई रोज़ा रखता रहा हो तो उसे चाहिए कि वह रोज़ा रखे।" (सहीह बुख़ारी हदीस संख्या : 1914, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 1082)
अत: यदि किसी इंसान की - उदाहरण के तौर पर - सोमवार को रोज़ा रखने की आदत है और वह दिन शाबान के अन्तिम दिन को पड़ जाए, तो ऐसी स्थिति में उसके लिए उस दिन स्वैच्छिक (नफ्ली) रोज़ा रखना जायज़ है और उसे उस दिन रोज़ा रखने से रोका नहीं जायेगा।
जब - शक के दिन - नियमित रूप से रखा जाने वाला नफ्ली (स्वैच्छिक) रोज़ा रखना जायज़ है, तो रमज़ान की क़ज़ा का रोज़ा रखना तो और अधिक जायज़ है, क्योंकि यह वाजिब (अनिवार्य) है। तथा इस लिए भी कि - पिछले रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की - क़ज़ा को अगले रमज़ान के बाद तक विलंब करना जायज़ नहीं है।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह अपनी किताब "अल-मजमू" (6/399) में कहते हैं :
"हमारे असहाब का कहना है : बिना किसी मतभेद के शक के दिन रमज़ान का रोज़ा रखना सही नहीं है . . . यदि वह उस दिन क़ज़ा या नज़्र (मन्नत) या कफ़्फ़ारा (परायश्चित) का रोज़ा रखता है तो वह उसके लिए पर्याप्त होगा, क्योंकि जब उसमें कोई ऐसा नफ्ली (स्वैच्छिक) रोज़ा जिसका कोई कारण हो, रखना जायज़ है तो फर्ज़ (अनिवार्य) रोज़ा रखना तो और अधिक जायज़ होगा, उस वक़्त के समान जिसमें नमाज़ पढ़ने से रोका गया है, (परन्तु उसमें कोई कारण वाली नमाज़ पढ़ना जायज़ है)। तथा इसलिए भी कि यदि उसके ऊपर - पिछले - रमज़ान के एक दिन के रोज़े की क़जा करना बाक़ी है, तो उसपर (उस शक के दिन में) रोज़ा रखना निश्चित रूप से अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि उसके क़ज़ा करने का समय तंग (सीमित) हो गया।" (इमाम नववी की बात समाप्त हुई।)