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मैं एक मुसलमान हूं जो इस्लामी मूल्यों और प्रतिष्ठित नैतिकता पर बड़ा हुआ है, और अभी भी मैं दूसरों के सामने ऐसा ही हूँ। लेकिन हाय मेरा दुर्भाग्य! मैं बहुत कमजोर हो जाता हूँ और लोगों की दृष्टि से छुपकर मोबाइल पर अश्लील (कामोद्दीपक) चीज़ें तथा अनैतिक चित्र और वीडियो खोलता हूँ। मैं जानता हूँ कि अल्लाह मुझे देखता है, लेकिन हर बार मैं यह अपमानजनक कृत्य कर बैठता हूँ। तथा केवल मैं देखता ही नही हूँ बल्कि हस्तमैथुन भी करता हूँ। मैं विवाहित हूँ और मेरे बच्चे हैं, और मुझे पता है कि जो कुछ मैं कर रहा हूँ वह मेरे और अल्लाह के बीच जानवरों का कार्य है। मुझे यह भी पता है कि यह कृत्य अच्छे कर्मों को मिटा देता बल्कि उनका विनाश कर देता है। मैं नमाज़ पढ़ता हूँ और पश्चाताप करता हूँ, और एक या दो दिन धैर्य रखता हूँ, और फिर दोबारा पलट आता हूँ। मैं अपने दिल में दृश्यों और वीडियो को खोलने के लिए, और अश्लील (कुकर्म) करने के लिए एक विचित्र एवं तीव्र आह्वान पाता हूँ। मुझे नहीं पता कि मैं क्या करूँॽ मै जानता हूँ कि अगर मेरे पालनहार ने मुझे मृत्यु दे दी तो मैं नरक में जाऊंगा। मैं अपने आप पर शक्ति नहीं रखता। मुझे पकड़ लो, मुझे बचालो। अल्लाह आप पर दया करे।
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हमारे प्रतिष्ठित भाई, आप पापों के करने और उन्हें दोहराने के कारण जिस मानसिक पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं हम उसे समझते हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है कि आपका दिल एक रोगी पक्ष रखने के साथ-साथ एक स्वस्थ व उचित पक्ष पर भी आधारित है।
قُلْ يَاعِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
]الزمر :53[
"आप कह दीजिए कि ऐ मेरे बंदो! जिन्हों ने अपनी जानों पर अत्याचार किया है अल्लाह की रहमत (दया) से निराश न हो, निःसन्देह अल्लाह तआला सभी गुनाहों को माफ़ कर देता है।" (सूरतुज़्-जुमर : 53)
وَالَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ يَلْقَ أَثَامًا * يُضَاعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِ مُهَانًا * إِلَّا مَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَأُولَئِكَ يُبَدِّلُ اللَّهُ سَيِّئَاتِهِمْ حَسَنَاتٍ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا * وَمَنْ تَابَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَإِنَّهُ يَتُوبُ إِلَى اللَّهِ مَتَابًا
]سورة الفرقان: 68-71]
"और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को नहीं पुकारते और न उस प्राण को जिसे अल्लाह ने वर्जित किया है बिना अधिकार के क़त्ल करते हैं, और न ही वे व्यभिचार करते हैं और जो ऐसा करेगा वह पाप का सामना करेगा। प्रलय के दिन उसके लिए यातना दुगनी कर दी जाएगी तथा वह अपमानित होकर सदैव उसी में रहेगा। सिवाय उन लोगों के जो तौबा करें और ईमान लायें और नेक कार्य करें, ऐसे लोगों के गुनाहों को अल्लाह तआला नेकियों से बदल देता है, अल्लाह बहुता क्षमा करने वाला, दया करने वाला है। और जो व्यक्ति तौबा करे और नेक कार्य करे वह तो (वास्तव में) अल्लाह की तरफ सच्चा पलटने वाला है।" (सूरतुल फुरक़ान: 68-71).
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने “अल-जवाबुल काफ़ी” (पृष्ठ 165) में फरमायाः
“अल्लाह सर्वशक्तिमान की तत्वदर्शिता न्याय व उपकार के स्वरूप निर्धारित हो चुकी है किः “पाप से पश्चाताप करनेवाला उस व्यक्ति के समान है जिसने कोई पाप ही न किया हो!!”
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने शिर्क, हत्या और व्यभिचार से पश्चाताप करने वाल के लिए इस बात की गारंटी दी है कि उसके पापों को नेकियों से बदल देगा। और यह पाप से पश्चाताप करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक सामान्य नियम है।
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
قُلْ يَاعِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
]الزمر :53[
अतः इस सामान्य नियम से कोई भी पाप बाहर नहीं है, लेकिन यह खासकर पश्चाताप करने वालों के बारे में है।’’ उद्धरण का अंत हुआ।
وَسَارِعُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ * الَّذِينَ يُنْفِقُونَ فِي السَّرَّاءِ وَالضَّرَّاءِ وَالْكَاظِمِينَ الْغَيْظَ وَالْعَافِينَ عَنِ النَّاسِ وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ * وَالَّذِينَ إِذَا فَعَلُوا فَاحِشَةً أَوْ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللَّهَ فَاسْتَغْفَرُوا لِذُنُوبِهِمْ وَمَنْ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا اللَّهُ وَلَمْ يُصِرُّوا عَلَى مَا فَعَلُوا وَهُمْ يَعْلَمُونَ * أُولَئِكَ جَزَاؤُهُمْ مَغْفِرَةٌ مِنْ رَبِّهِمْ وَجَنَّاتٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ
[سورة آل عمران: 133-136] .