हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हमारे प्रतिष्ठित भाई, आप पापों के करने और उन्हें दोहराने के कारण जिस मानसिक पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं हम उसे समझते हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है कि आपका दिल एक रोगी पक्ष रखने के साथ-साथ एक स्वस्थ व उचित पक्ष पर भी आधारित है।
इस रोग का मूल उपचार केवल इस प्रकर हो सकता है कि आपको अल्लाह की अवज्ञा करने की ओर ले जानेवाले प्रत्येक दरवाजे को बंद कर दिया जाए, तथा हर उस दरवाजे को बंद कर दिया जाए जो आपके लिए अल्लाह की दया से निराशा का कारण बनता है। अल्लाह तआला का फरमान हैः
قُلْ يَاعِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
]الزمر :53[
"आप कह दीजिए कि ऐ मेरे बंदो! जिन्हों ने अपनी जानों पर अत्याचार किया है अल्लाह की रहमत (दया) से निराश न हो, निःसन्देह अल्लाह तआला सभी गुनाहों को माफ़ कर देता है।" (सूरतुज़्-जुमर : 53)
तथा अल्लाह तआला ने फरमायाः
وَالَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ يَلْقَ أَثَامًا * يُضَاعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِ مُهَانًا * إِلَّا مَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَأُولَئِكَ يُبَدِّلُ اللَّهُ سَيِّئَاتِهِمْ حَسَنَاتٍ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا * وَمَنْ تَابَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَإِنَّهُ يَتُوبُ إِلَى اللَّهِ مَتَابًا
]سورة الفرقان: 68-71]
"और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को नहीं पुकारते और न उस प्राण को जिसे अल्लाह ने वर्जित किया है बिना अधिकार के क़त्ल करते हैं, और न ही वे व्यभिचार करते हैं और जो ऐसा करेगा वह पाप का सामना करेगा। प्रलय के दिन उसके लिए यातना दुगनी कर दी जाएगी तथा वह अपमानित होकर सदैव उसी में रहेगा। सिवाय उन लोगों के जो तौबा करें और ईमान लायें और नेक कार्य करें, ऐसे लोगों के गुनाहों को अल्लाह तआला नेकियों से बदल देता है, अल्लाह बहुता क्षमा करने वाला, दया करने वाला है। और जो व्यक्ति तौबा करे और नेक कार्य करे वह तो (वास्तव में) अल्लाह की तरफ सच्चा पलटने वाला है।" (सूरतुल फुरक़ान: 68-71).
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने “अल-जवाबुल काफ़ी” (पृष्ठ 165) में फरमायाः
“अल्लाह सर्वशक्तिमान की तत्वदर्शिता न्याय व उपकार के स्वरूप निर्धारित हो चुकी है किः “पाप से पश्चाताप करनेवाला उस व्यक्ति के समान है जिसने कोई पाप ही न किया हो!!”
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने शिर्क, हत्या और व्यभिचार से पश्चाताप करने वाल के लिए इस बात की गारंटी दी है कि उसके पापों को नेकियों से बदल देगा। और यह पाप से पश्चाताप करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक सामान्य नियम है।
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
قُلْ يَاعِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
]الزمر :53[
"आप कह दीजिए कि ऐ मेरे बंदो! जिन्हों ने अपनी जानों पर अत्याचार किया है अल्लाह की रहमत (दया) से निराश न हो, निःसन्देह अल्लाह तआला सभी गुनाहों को माफ़ कर देता है।" (सूरतुज़-जुमर : 53)
अतः इस सामान्य नियम से कोई भी पाप बाहर नहीं है, लेकिन यह खासकर पश्चाताप करने वालों के बारे में है।’’ उद्धरण का अंत हुआ।
अल्लाह ने अपनी पुस्तक में “मुत्तक़ियों” (परहेज़गारों) की यह विशेषता वर्णन की है कि जब वे बड़े-बड़े पाप कर बैठते हैं, या छोटे-छोटे पापों के द्वारा अपने आप पर अत्याचार कर बैठते हैं, तो वे सर्वशक्तिमान, महाक्षमावान अल्लाह को याद करते हैं। चुनाँचे वे अपने पापों के लिए क्षमा याचना करते हैं, उनपर जमे नहीं रहते हैं और न ही वे अवज्ञा पर हठ करते हैं।
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमायाः
وَسَارِعُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ * الَّذِينَ يُنْفِقُونَ فِي السَّرَّاءِ وَالضَّرَّاءِ وَالْكَاظِمِينَ الْغَيْظَ وَالْعَافِينَ عَنِ النَّاسِ وَاللَّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ * وَالَّذِينَ إِذَا فَعَلُوا فَاحِشَةً أَوْ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللَّهَ فَاسْتَغْفَرُوا لِذُنُوبِهِمْ وَمَنْ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا اللَّهُ وَلَمْ يُصِرُّوا عَلَى مَا فَعَلُوا وَهُمْ يَعْلَمُونَ * أُولَئِكَ جَزَاؤُهُمْ مَغْفِرَةٌ مِنْ رَبِّهِمْ وَجَنَّاتٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ
[سورة آل عمران: 133-136] .
‘‘और अपने पालनहार की क्षमा की तरफ और उस जन्नत की ओर दौड़ो जिसकी चौड़ाई आसमानों और ज़मीन के बराबर है, जो परहेज़गारों के लिए तैयार की गई है। जो लोग आसानी में और तकलीफ़ में (भी अल्लाह कि राह में) खर्च करते हैं, गुस्से को पी जाते हैं, और लोगों को माफ़ करने वाले हैं। और अल्लाह उपकारियों से प्यार करता है। जब उन से कोई बड़ा पाप हो जाए या वे अपने आप पर अत्याचार कर बैठें तो जल्द ही अल्लाह को याद करते और अपने गुनाहों के लिए क्षमा याचना करते हैं, और वास्तव में अल्लाह के सिवाय कौन गुनाहों को क्षमा कर सकता है, और वे जानते हुए अपने किए पर अटल नहीं रहते हैं। उन्हीं का बदला उनके पालनहार की ओर से क्षमा और ऐसे बाग (स्वर्ग) हैं जिनके नीचे नहरें बह रही हैं, जिनमें वे हमेशा रहेंगे और नेक कार्य करने वालों का यह कितना अच्छा बदला है।” (सूरत आल इम्रान : 133 - 136)
पापों पर अटल रहनेवाला व्यक्ति : वह है जो पाप करता है और बिना पश्चाताप और क्षमा याचना किए उसे बार-बार दोहराता रहता है।
परंतु जिस व्यक्ति ने पाप किया, फिर उससे शुद्ध और सच्चा पश्चाताप कर लिया, उसके बाद फिर वह कमज़ोर हो गया और उसने दोबारा पाप कर लिया, फिर उससे शुद्ध पश्चाताप कर लिया। और इसी तरह उसका मामला पाप और अवज्ञा, तथा पश्चाताप, पछतावा और अति दयालु व दयावान अल्लाह की ओर पलटने के बीच रहता है; तो यह व्यक्ति, इन शा अल्लाह, अल्लाह की ओर से क्षमा के स्थान पर है, और आशा है कि अल्लाह उसके विचलन (चूक) को माफ़ कर देगा और उसकी त्रुटि को क्षमा कर देगा।
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं : मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “एक बंदे ने गुनाह किया, तो उसने कहा: ऐ मेरे पालनहार, मैंने पाप किया है, अतः तू मेरे पाप को क्षमा कर दे।
तो उसके पालनहार ने फरमाया : क्या मेरे बंदे को पता है कि उसका एक पालनहार है जो पाप को क्षमा कर देता है और उस पर पकड़ (भी) करता हैॽ मैं ने अपने बंदे को क्षमा कर दिया!!
फिर वह ठहरा रहा जितना अल्लाह ने चाहा, फिर उसने दुबारा पाप किया तो कहा : हे मेरे पालनहार, मैंने दूसरा पाप किया है, अतः तू इसे क्षमा कर दे।
तो उसके पालनहार ने फरमाया : क्या मेरे बंदे को पता है कि उसका एक पालनहार है जो पाप को क्षमा कर देता है और उस पर पकड़ (भी) करता हैॽ मैं ने अपने बंदे को क्षमा कर दिया!!
फिर जितना अल्लाह ने चाहा वह (पाप से) रुका रहा, इसके बाद उसने फिर पाप किया तो उसने कहा : हे मेरे पालनहार, मैंने एक और पाप कर लिया है, अतः तू उसे मेरे लिए क्षमा कर दे।
तो (उसके पालनहार ने) फरमाया : क्या मेरे बंदे को पता है कि उसका एक पालनहार है जो पाप को क्षमा कर देता है और उस पर पकड़ (भी) करता हैॽ मैं ने अपने बंदे को, तीनों बार, क्षमा कर दिया, तो वह अब जो चाहे कार्य करे।”
इसे बुखारी (हदीस संख्या : 7507) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2758) ने रिवायत किया है।
नववी रहिमहुल्लाह ने “शर्ह सहीह मुस्लिम” (17/75) में फरमायाः
"यदि पाप सौ बार, या हज़ार बार, या इससे अधिक बार होता रहे, और वह हर बार पश्चाताप करता रहे; तो उसका पश्चाताप स्वीकार किया जाएगा, और उसके पाप समाप्त हो जांएगे।
अगर वह सभीं पापों को करने के बाद उन सभी से एक ही बार तौबा कर ले, तो उसकी तौबा सही है।
अल्लाह सर्वशक्तिमान का बार-बार पाप करने वाले से यह कहनाः “तू जो भी चाहे कार्य कर, मैंने तुझे क्षमा कर दिया।”, इसका अर्थ यह है किः जब तेरी यह स्थिति है कि तू पाप करता है फिर उससे पश्चाताप कर लेता है, तो मैंने तुझे क्षमा कर दिया।” अंत हुआ।
अतः आप प्रत्येक पाप के बाद पश्चाताप करते रहें, तथा सच्चा पश्चाताप करें, आप से जो पाप पहले हो चुके हैं उनपर लज्जित व दुखी हों, उन्हें हमेशा के लिए छोड़ने का संकल्प करें।
फिर निम्न चीज़ों के द्वारा अपने पश्चाताप को परिपूर्ण करने का कड़ा प्रयास करें :
आप उन रास्तों को बंद कर दें जो आपको इस पाप की ओर ले जाते हैं, और वह इस प्रकार कि आप अकेले और एकांत में न रहें। आप हमेशा लोगों, अपनी पत्नी और अपने बच्चों के संपर्क में रहें। अगर आप अपनी पत्नी से दूर (परदेश में) रहते हैं, तो उसे अपने साथ रखने की कोशिश करें। अपनी पत्नी से दूर परदेश में मत रहें, उसके द्वारा अपने सतीत्व की रक्षा करें और अपने द्वारा उसके सतीत्व की रक्षा करें।
यदि आप अपने परिवार के क़रीब हैं, उनके साथ रह रहे हैं, तो उनसे दूर न रहें, और उनसे प्यार दिखाएं, और अपनी ज़रूरत को उनके साथ पूरी करें। जब भी आपका मन किसी चीज़ को देखने के लिए प्रवृत्त हो, या आपकी दृष्टि किसी चीज़ पर पड़ जाए, तो आप शैतान को अनुमति न दें कि वह आपको हराम वासना के अधिकोष में डाल दे, बल्कि हलाल की तरफ़ पहल करें।
तथा हमेशा अपने आपको दुनिया या आखिरत के कार्यों में से किसी भी उपयोगी काम में व्यस्त रखें। क्योंकि खालीपन मनुष्य के लिए अति हानिकारक है।
फोन से नेट को स्थायी रूप से बंद कर दें, तथा हो सकता है कि यह आपको अधिक उपयोगी लगे कि आप अपना फोन बदल लें और एक ऐसे फोन का उपयोग करें जो नेट पर प्रवेश नहीं करता है।
अपने दिल में विश्वास को मजबूत करें, अल्लाह का डर और उसका कठोर हिसाब अनुभव करें, तथा इस बात को अपने मन में उपस्थित रखें कि अल्लाह आपसे अवज्ञत है और आपको देख रहा है।
अधिक से अधिक क़ुरआन करीम का पाठ करें और नफ़्ल नमाज़ें, विशेष रूप से रात के समय नमाज़ें पढ़ें।
ज़्यादा से ज़्यादा मार्गदर्शन की दुआ करें, क्योंकि बंदे द्वारा की जाने वाली सबसे उपयोगी दुआः “इह्दिनस्सिरातल मुस्तक़ीम” (हमें सीधा मार्ग निर्देशित कर) है।
हम अल्लाह से अपने लिए और आपके लिए मार्गदर्शन और स्थिरता का प्रश्न करते हैं।
और अल्लाह ही उस चीज़ की तौफ़ीक प्रदान करने वाला है जिससे वह सर्वशक्तिमान प्यार करता और प्रसन्न होता है।