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क्या इब्लीस (शैतान) अभी भी जीवित है ?

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प्रकाशन की तिथि : 31-03-2010

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प्रश्न

यदि जिन्नात जीते और मरते हैं, तो क्या इस का मतलब यह है कि इबलीस मर गया ? या वह अभी भी जीवित है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

मानव जाति की रचना में अल्लाह तआला की यह परंपरा रही है कि वह उसे आज़माता और उस का परीक्षण करता है, ताकि उसे शुद्ध और पाक साफ कर दे। सर्वशक्तिमान अल्लाह का फरमान है : "(इन सब चीज़ों का उद्देश्य) अल्लाह तआला को तुम्हारे सीनों के अन्दर का इम्तेहान लेना था और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उस से पाक करना था, और अल्लाह तआला दिलों के भेद को अच्छी तरह जानने वाला है।" (सूरत आल इम्रान : 154)

अल्लाह तआला ने जिन चीज़ों के द्वारा हमारा परीक्षण किया है उन में से एक इब्लीस -उस पर अल्लाह तआला का श्राप उतरे- भी है, अत: अल्लाह तआला ने उसे एक ज्ञात समय तक छूट और मोहलत दे दिया है कि वह लोगों को भलाई से रोकता है, और बुराई का आदेश देता है, और अच्छे कार्य से मना करता और बुरे काम का हुक्म देता है, चुनाँचि कुछ लोगों ने उस को सच्चा माना, और आदम की सन्तान में से बहुत से लोग उस के अनुयायी बन गये, वह स्वयं पथ भ्रष्ट हुआ और दूसरों को भी पथ भ्रष्ट किया, और इबलीस (शैतान) ने ऐसा करना का वचन दिया था : अल्लाह तआला का फरमान है : "और जब हम ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सज्दा करो तो इबलीस के सिवाय सब ने सज्दा किया, उस ने कहा कि क्या मैं उसे सज्दा करूँ जिसे तू ने मिट्टी से बनाया है। अच्छा देख ले उसे तू ने मुझ पर फज़ीलत तो दी है लेकिन अगर तू ने मुझे क़ियामत तक मौक़ा दिया तो मैं इस की औलाद को बहुत कम लोगों के सिवाय अपने वश में कर लूँगा। हुक्म हुआ कि जा, उन में से जो भी तेरा पैरोकार हो जाये गा तो तुम सब की सज़ा नरक है, जो पूरा बदला है। उन में से तू जिसे भी अपनी बात से बहका सके बहका ले और उन पर अपने सवार और पैदल चढ़ा ला, और उस के माल और औलाद में से अपना भी साझा लगा और उन्हें (झूठा) वादा दे ले।उन से जितने भी वचन (वादे) शैतान के होते हैं, सब के सब पूरा धोखा हैं। मेरे सच्चे बन्दों पर तेरा कोई क़ाबू और वश नहीं, और तेरा रब बड़ा कारसाज़ काफी है।" (सूरतुल इस्रा : 61 - 65)

तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "और हम ने तुम को पैदा किया, फिर तुम्हारी शक्ल बनाई, फिर हम ने फरिशतों से कहा कि आदम को सज्दा करो, तो सभी ने सज्दा किया सिवाय इब्लीस के, कि वह सज्दा करने वालों में शामिल नहीं हुआ। (अल्लाह ने) कहा कि जब मैं ने तुझे सज्दा करने का हुक्म दिया तो किस चीज़ ने तुझे सज्दा करने से रोक दिया ? उस ने कहा मैं इस से अच्छा हूँ, तू ने मुझे आग से पैदा किया और इसे मिट्टी से पैदा किया है। (अल्लाह तआला ने) हुक्म दिया कि तू आकाश से उतर, तुझे कोई हक़ नहीं कि आकाश में रह कर घमण्ड करे, इसलिए निकल, निःसन्देह तू अपमानितों में से है। उस (इबलीस) ने कहा कि मुझे उस दिन तक मोहलत दीजिये जब लोग दुबारा ज़िन्दा किये जायेंगे। (अल्लाह ने) कहा कि तुझे मोहलत दे दी गई। उस (इबलीस) ने कहा तेरे मुझे धिक्कारने के कारण मैं उनके लिए तेरे सीधे रास्ते पर बैठूंगा। फिर उनके सामने से और पीछे से और दायें और बायें से हमला करूंगा और आप इन में से अधिकतर को शुक्रगुज़ार नहीं पायेंगे। (अल्लाह ने) कहा, तू इस से (यहां से) अपमानित होकर निकल जा, जो उन में से तेरी पैरवी करेगा, मैं तुम सभी से जहन्नम को अवश्य भर दूंगा।" (सूरतुल आराफः 11 - 18)

इन आयतों और इन के अलावा अन्य आयतों के प्रत्यक्ष अर्थ से पता चलता है कि इब्लीस -उस पर अल्लाह तआला का श्राप उतरे- को अल्लाह तआला ने एक समय तक के लिए मोहलत दिया है, अर्थात अल्लाह तआला ने उस के मामले को एक ऐसे समय तक के लिए विलंब कर दिया है जो अल्लाह को मालूम है, उस के अलावा उसे कोई नहीं जानता, और स्वयं इब्लीस ने अल्लाह तआला से मांग किया था कि अल्लाह उसे मोहलत प्रदान कर दे, अल्लाह तआला का फरमान है : "(इबलीस) कहने लगा कि हे मेरे रब! मुझे लोगों के उठ खड़े होने के दिन तक मोहलत प्रदान कर। (अल्लाह तआला ने) कहा कि तू मोहलत दिये जाने वालों में से है। मुक़र्रर वक़्त के दिन तक।" (सूरत साद् : 79-81)

विद्वानों ने अल्लाह तआला के फरमान (मुक़र्रर वक़्त के दिन तक) के बारे में मतभेद किया है :

कुछ विद्वानों ने कहा है कि : इस से अभिप्राय पुनर्जीवित होने का दिन है, जिस वक़्त दूसरी बार नरसिंघा में फूँका जाये गा।

और कुछ विद्वानों ने कहा है कि : इस से अभिप्राय इब्लीस की मृत्यु का लिखा हुआ समय है।

जबकि अधिकांश विद्वानों का विचार यह है कि : मुक़र्रर वक़्त के दिन से अभिप्राय सभी प्राणियों के मरने और नष्ट हो जाने का दिन है जब कि पहली बार नरसिंघा में फूँका जाये गा, इस से दूसरी फूँक मुराद नहीं है, उन्हों ने इस का कारण बताते हुआ कहा है कि : इसलिए कि पुनर्जीवित होने के बाद – यानी नरसिंघा में दूसरी बार फूँके जाने के बाद- किसी की मृत्यु नहीं होगी, अल्लाह तआला का फरमान है : "और सूर (नरसिंघा) फूँक दिया जायेगा तो आकाशों और धरती वाले सभी बेहोश होकर गिर पड़ेंगे लेकिन जिसे अल्लाह चाहे, फिर दुबारा सूर फूँका जायेगा तो वे अचानक खड़े होकर देखने लग जायेंगे।" (सूरतुज़्ज़ुमर : 68)

बैज़ावी अपनी तफसीर में कहते हैं : "मुक़र्रर वक़्त के दिन तक : जिस में अल्लाह के पास तेरी मृत्यु का समय निर्धारित है, या सभी मानव जाति के समाप्त हो जाने के दिन तक और वह विद्वानों की बहुमत के निकट पहली बार सूर में फूँके जाने का समय है।" (तफसीरुल बैज़ावी 3/ 370)

तथा क़ुर्तुबी रहिमहुल्लाह इस आयत की व्याख्या में फरमाते हैं : "इब्ने अब्बास कहते हैं कि : इस से अभिप्राय पहली फूँक है। अर्थात जिस समय सभी जीव मर जायेंगे। तथा एक कथन यह है कि : मुक़र्रर वक़्त से अभिप्राय वह वक़्त है जिसे अल्लाह तआला अपने ज्ञान के साथ विशिष्ट कर लिया है और उस से इब्लीस अनभिज्ञ है, अत: इब्लीस मर जायेगा फिर पुनर्जीवित किया जायेगा ; अल्लाह तआलस का फरमान है : "धरती पर जो कुछ भी हैं सब नश्वर (फानी) हैं।" (सूरतुर्रहमान : 26)तफसीर क़ुर्तुबी (10/27)

तथा तबरी ने अपनी तफसीर में सुद्दी से रिवायत किया है कि : "(इब्लीस) कहने लगा कि हे मेरे रब! मुझे लोगों के उठ खड़े होने के दिन तक मोहलत प्रदान कर। (अल्लाह तआला ने) कहा कि तू मोहलत दिये जाने वालों में से है। मुक़र्रर वक़्त के दिन तक।" (सूरत साद् : 79 -81) : तो अल्लाह तआला ने उसे पुनर्जीवन के दिन तक मोहलत नहीं दिया, किन्तु उसे मुक़र्रर वक़्त के दिन तक मोहलत दिया, और यह वह दिन है जिस दिन पहली बार सूर (नरसिंघा) में फूंक मारी जायेगी, तो आकाशें और धरती वाले सभी बेहोश होकर गिर पड़ेंगे और मर जायेंगे।" (8/132)

इमाम शैकानी इन आयतों की व्याख्या में कहते हैं : " . . . (मुक़र्रर वक़्त के दिन तक) : जिसे अल्लाह तआला ने प्राणियों के विनाश के लिए निर्धारित कर दिया है, और वह दूसरी बार नरसिंघा में फूँक मारे जाने का समय है, और यह भी कहा गया है कि : वह पहली फूँक का समय है। कहा जाता है कि इब्लीस ने पुनर्जीवन के दिन तक के लिए मोहलत इस लिए मांगी थी ताकि वह मृत्यु से छुटकारा पा जाये, क्योंकि अगर उसे पुनर्जीवन के दिन तक मोहलत दे दी जाती तो वह पुनर्जीवन के समय से पहले नहीं मरता, और पुनर्जीवन के समय कोई भी नहीं मरेगा, तो ऐसी स्थिति में वह मृत्यु से बच जाता, अत: उसे ऐसा उत्तर दिया गया जिस से उसका मुराद खण्डित हो गया और उस का उद्देश्य टूट गया, और वह एक मुक़र्रर वक़्त के दिन तक मोहलत दिया जाना है, जिसे केवल अल्लाह तआला जानता है उस के अलावा उसे कोई नहीं जानता।" फत्हुल क़दीर (4/446).

इस से पता चलता है कि इब्लीस -उस पर अल्लाह तआला का श्राप उतरे- अभी भी ज़िन्दा है, और वह निरन्तर घरती पर फसाद और उपद्रव कर रहा है और लोगों को अल्लाह के मार्ग से भटका रहा है। तथा वह क़ियामत के दिन तक बाक़ी नहीं रहेगा, बल्कि उस के लिए एक समय निर्धारित है जिस में वह मर जायेगा, और उस समय को अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ जानता है, अल्लाह तआला का फरमान है : "हर प्राणी को मौत का मज़ा चखना है।" (सूरत आल इम्रान : 185) तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "धरती पर जो कुछ भी हैं सब नश्वर (फानी) हैं। केवल तेरे रब का चेहरा (अस्तित्व) जो महान और बाइज़्ज़त है, बाक़ी रह जायेगा।" (सूरतुर्रहमान : 26 – 27)

तथा ऐसे सबूत भी हैं जिन से पता चलता कि इब्लीस -उस पर अल्लाह की लानत हो- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में जीवित था :

- बद्र की लड़ाई के दिन इबलीस का सुराक़ा बिन मालिक के स्वरूप में प्रकट होना, अल्लाह तआला का फरमान है : "और जब कि उन के अमलों (कामों) को शैतान उन्हें सुशोभित दिखा रहा था और कह रहा था कि इंसानों में से कोई भी आज तुम पर गालिब नहीं हो सकता, मैं खुद तुम्हारा समर्थक (हिमायती) हूँ, लेकिन जब दोनों गुट प्रकट हुए तो वह अपनी ऐड़ियों के बल पलट गया और कहने लगा कि मैं तुम से अलग हूँ, मैं वह देख रहा हूँ जो तुम नहीं देख रहे, मैं अल्लाह से डरता हूँ, और अल्लाह अताला सख़्त अज़ाब वाला है।" (सूरतुल अंफाल : 48)

इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह इस आयत की तफसीर में कहते हैं : "उस ने -उस पर अल्लाह की लानत हो- उन के लिए उस चीज़ को अच्छा और सुन्दर बना दिया जिस के लिए वे आये थे और जिस के अभिलाषी थे, और उन के अन्दर यह आशा पैदा कर दिया आज के दिन कोई भी इंसान उन्हें पराजित नहीं कर सकता, और वे अपने घरों पर अपने दुश्मन बनू बक्र के आक्रमण करने का जो भय प्रतीक कर रहे थे उस को उस ने दूर करते हुये कहा कि मैं तुम्हारा समर्थक हूँ, और वह इस प्रकार कि वह उस क्षेत्र के एक महान व्यक्ति बनू मुदलज के सरदार सुराक़ा बिन मालिक बिन जोशुम के रूप में उन के सामने प्रकट हुआ। ये सारी चीज़ें उस की ओर से मात्र ऐसे ही थीं जैसा कि अल्लाह तआला ने उस के बारे में फरमाया है : "वह उन से वादे करता रहेगा और हरे बाग दिखाता रहेगा (लेकिन याद रखो) शैतान के जो वादे उन से हैं वे पूरी तरह से धोखा हैं।" (सूरतुन निसा : 120)

इब्ने जुरैज कहते हैं कि : इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस आयत के बारे में फरमाया : जब बद्र की लड़ाई का दिन था तो इब्लीस अपना झण्डा और अपने सैनिकों को लेकर मुशरिकों के साथ गया और मुशरिकों के दिलों में यह बात डाल दी कि कोई भी उन्हें परास्त नहीं कर सकता और मैं तुम्हारा समर्थक हूँ, लेकिन जब उन की मुठभेड़ हुई और शैतान ने फरिश्तों की मदद (आपूर्ति) को देखा तो वह अपनी ऐड़ियों के बल -पीठ फेर कर- पलट गया और कहा कि मैं ऐसी चीज़ देख रहा हूँ जो तुम नहीं देख रहे हो . .आयत के अन्त तक।" तफसीर इब्ने कसीर (2/318)

- इसी प्रकार उस का - उस पर अल्लाह की लानत हो - उहुद की लड़ाई के दिन प्रकट होना, आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से सहीह हदीस में वर्णित है कि उन्हों ने कहा : "जब उहुद की लड़ाई का दिन था तो मुशरिकों को पराजय का सामना करना पड़ा, तो इब्लीस चींखा कि : ऐ अल्लाह के बन्दो अपने पीछे देखो, तो उन के आग्रमी लोग वापस पलट गये और वे और उन के पीछे के लोग लड़ने लगे, हुज़ैफा ने देखा तो अपने पिता अल- यमान को पाया, तो कहा : ऐ अल्लाह के बन्दो! मेरे पिता मेरे पिता हैं, तो अल्लाह की क़सम वे लोग नहीं रूके यहाँ तक कि उन्हें क़त्ल कर दिया, तो हुज़ैफा ने कहा अल्लाह तुम्हें क्षमा करे। उरवा कहते हैं : तो हुज़ैफा के अन्दर उस से निरन्तर अवशेष भलाई बाक़ी रही यहाँ तक कि वे अल्लाह से जा मिले।" (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 3047)

- तथा सहीह हदीसों के अन्दर आया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इब्लीस को देखा है, सहीह हदीस में अबुद्दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (नमाज़ पढ़ाने के लिए) खड़े हुये तो हम ने आप को फरमाते हुये सुना : "मैं तुझ से अल्लाह की पनाह में आता हूँ", फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तीन बार फरमाया कि : "मैं तुझ पर अल्लाह के अभिशाप के साथ शाप करता (ला'नत भेजता) हूँ", और आप ने अपना हाथ इस तरह फैलाया जैसे आप कोई चीज़ पकड़ रहे हों, जब आप नमाज़ से फारिग़ हुये तो हम ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! हम ने आप को नमाज़ के अंदर एक ऐसी चीज़ कहते हुये सुना है जिसे हम ने इस से पहले आप को कहते हुये नहीं सुना, तथा हम ने आप को अपना हाथ फैलाते हुये देखा, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह का दुश्मन इब्लीस आग का एक अंगारा (शो'ला) लेकर आया ताकि उसे मेरे चेहरे पर फेंक दे तो मैं ने तीन बार कहा कि मैं तुझ से अल्लाह की पनाह में आता हूँ", फिर मैं ने कहा: "मैं तुझ पर अल्लाह की सम्पूर्ण ला'नत भेजता (शाप करता) हूँ, (तीन बार) पर वह पीछे नहीं हटा, तो मैं ने उसे पकड़ने का इरादा किया, और अल्लाह की क़सम! अगर हमारे भाई सुलैमान अलैहिस्सलाम की दुआ न होती तो सुबह वह बंधा हुआ होता मदीना के बच्चे उस से खेलते।" (मुस्लिम हदीस संख्याः 843, नसाई हदीस संख्या : 1200)

तथा अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णति है कि : अल्लाह के पैगंबर सल्लाहु अलैहि व सल्लम खड़े हुए और फज्र की नमाज़ पढ़ाई और वह आप के पीछे थे, आप ने क़िराअत की तो क़िराअत आप पर सन्दिग्ध हो गई, जब आप नमाज़ से फारिग हुये तो फरमाया : "अगर तुम मुझे और शैतान को देखते, मैं ने अपने हाथ से उसे पछाड़ा और निरन्तर उस का गला गूंठे रहा यहाँ तक कि मैं ने उस के लार की ठण्डक अपनी इन दोनों अंगुलियों अंगूठे और उस से मिली हुई अंगुली के बीच अनुभव की, और अगर अपने भाई सुलैमान अलैहिस्सलाम की दुआ न होती तो वह मस्जिद के खम्भों में से किसी खम्भे में बंधा हुआ होता उस से मदीना के बच्चे खेलते। अत: तुम में से जो आदमी इस बात पर सक्षम हो कि उस के और उस के क़िब्ला के बीच कोई रूकावट न बने तो उसे ऐसा अवश्य करना चाहिए।" इसे अहमद ने रिवायत किया है (हदीस संख्या : 11354)

- तथा जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्हों ने कहा : मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : "इब्लीस (शैतान) की गद्दी समुद्र पर है, जहाँ से वह अपनी टोलियों को भेजता है और वे लोगों को फित्नों (उपद्रव और विद्रोह) से दो चार करते हैं, उन में से उस के निकट सब से महान वह होता है जो सब से बड़ा फित्ना (विद्रोह) पैदा करने वाला हो।" इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 5031)और अहमद (हदीस संख्या : 1427)ने रिवायत किया है।

अत: इब्लीस उस पर अल्लाह का शाप हो अभी भी ज़िन्दा है, और वह उस मुक़र्रर वक़्त पर जिस की अल्लाह तआला ने उसे मोहलत दी है मर जायेगा, और विद्वानों के शुद्ध कथन के अनुसार वह पहली बारे सूर (नरसिंघा) में फूँक मारे जाने का दिन है। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद