रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
हिन्दी

इस्लाम ने पुरूष एंव स्त्री की समलैंगिकता को क्यों वर्जित किया है ?

10050

प्रकाशन की तिथि : 20-01-2010

दृश्य : 29290

प्रश्न

समलैंगिकता (Homosexuality and Lesbianism) को इस्लाम में हराम (वर्जित) क्यों समझा जाता है ? मैं जानता हूँ कि यह हराम (निषिद्ध) है, किन्तु इसका कारण क्या है? और क़ुर्आन और हदीस में इसके बारे में क्या वर्णन हुआ है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

1- मुसलमान के लिए इस तथ्य में एक पल भी सन्देह करना उचित नहीं है कि अल्लाह तआला की शरीअत तत्वदर्शीऔर बुद्धि पूर्ण है, और इस बात को अच्छी तरह जान लेना उचित है कि अल्लाह तआला ने जिस चीज़ का आदेश दिया है और जिस चीज़ से मना किया है उसके अंदर संपूर्ण और व्यापक हिकमत (तत्वदर्शिता) है, और वही सीधा पथ और इस बात का एक मात्र रास्ता है कि मनुष्य सुरक्षा और सन्तुष्टि के साथ जीवन यापन करे, उसकी इज़्ज़त व आबरू (सतीत्व), बुद्धि और स्वास्थ्य की सुरक्षा हो, और वह उस प्रकृति (स्वभाव) के अनुरूप हो जिस पर अल्लाह तआला ने लोगों को पैदा किया है।

कुछ विधर्मी और स्वधर्मभ्रष्ट लोगों ने इस्लाम और उसके प्रावधानों और नियमों पर हमला करने का प्रयास किया है, अत: उन्होंने तलाक़, बहु-विवाह की निंदा की है और शराब की अनुमति दी है, और जो आदमी उनके समाज की स्थितियों को देखेगा उसे उस दयनीय स्थिति और दुर्दशा का पता चल जायेगा जहाँ वे समाज पहुँच चुके हैं।

जब उन्हों ने तलाक़ को अस्वीकार कर दिया : तो उसका स्थान हत्या ने ले लिया, जब उन्हों ने बहु-विवाह को अस्वीकार कर दिया : तो उसके बदले में रखैल (मिस्टरेस) रखने की प्रथा चल पड़ी, और जब उन्हों ने शराब को वैध ठहरा लिया : तो सभी रंग रूप की बुराईयाँ और अनैतिक कार्यों का फैलाव हुआ।

वे दोनों अर्थात् पुरूष समलैंगिकता और स्त्री समलैंगिकता अल्लाह तआला की उस प्राकृतिक स्वभाव के विरूद्ध हैं जिस पर अल्लाह तआला ने मनुष्यों को -बल्कि पशुओं को भी- पैदा किया है कि पुरूष, स्त्री का और स्त्री, पुरूष का इच्छुक होती है, और जिस ने इस का विरोध किया उसने फित्रत (स्वभाविक प्रकृति) का विरोध किया।

पुरूष और स्त्री समलैंगिकता के फैलाव ने ढेर सारी बीमारियों को जन्म दिया है जिनके अस्तित्व का पूर्व और पश्चिम के लोग इंकार नहीं कर सकते, यदि इस विषमता (विकृति) के परिणामों में से केवल "एड्स" की बीमारी ही होती जो मनुष्य के अंदर प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट कर देती है, तो बहुत काफी है।

इसी प्रकार यह परिवारों के विघटन और उनके टुकड़े-टुकड़े हो जाने और काम-काज तथा पढ़ाई-लिखाई को त्याग कर इस प्रकार के अप्राकृतिक कृत्यों में व्यस्त हो जाने का कारण बनता है।

चूंकि इसका निषेध उसके पालनहार की ओर से आया है, अत: मुसलमान को इस बात की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि चिकित्सा विज्ञान अल्लाह तआला के वर्जित किये हुये अपराध को करने वाले की छति और नुक़सान को सिद्ध करे, बल्कि उस का इस तथ्य में दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि अल्लाह तआला केवल उसी चीज़ को वैध करता है जिसमें लोगों का हित और कल्याण हो, और यह आधुनिक खोज अल्लाह तआला की महान हिकमत और तत्वदर्शिता के प्रति उसके संतोष और विश्वास को बढ़ाते हैं।

इब्ने क़ैयिम रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :

"इन दोनों में से प्रत्येक -अर्थात् व्यभिचार और समलैंगिकता - में ऐसी भ्रष्टता, खराबी और बुराई है जो सृष्टि रचना और आज्ञा में अल्लाह तआला की हिकमत (तत्वदर्शिता) के विरूद्ध और विपरीत है, क्योंकि समलैंगिकता (गुदा मैथुन) में इतनी बुराईयाँ हैं जो गिन्ती और गणना से बाहर हैं, और जिस के साथ ऐस किया जा रहा है (अर्थात् निष्क्रिय समलैंगिक) उसे क़त्ल कर दिया जाना उसके लिए इस बात से श्रेष्ठ है कि उसके साथ यह कुकर्म किया जाये, क्योंकि वह इतना भ्रष्ट हो जाता है कि उसके बाद उसके लिए कभी सुधरने की आशा नहीं होती, तथा उसकी सारी भलाई और अच्छाई नष्ट हो जाती है, और धरती उसके चेहरे से शर्म व हया के पानी को चूस लेती है फिर वह इसके बाद अल्लाह से हया करता है न उसकी सृष्टि से। और सक्रिय (समलैंगिक) का वीर्य उसके हृदय और आत्मा में ऐसा कार्य करता है जो कार्य विष (ज़हर) शरीर के अंदर करता है। और क्या निष्क्रिय समलैंगिक (जिसके साथ यह कुकर्म किया गया है) स्वर्ग में जायेगा ? इस बारे में विद्वानों के बीच दो कथनों पर मतभेद है। मैं ने शैखुल इस्लाम (इब्ने तैमिय्या) रहिमहुल्लाह को दो कथन बयान करते हुये सुना है।

(अल-जवाबुल काफी पृ0 संख्या : 115)

2- स्त्री की समलैंगिकता (Lesbianism) का अर्थ : यह है कि एक महिला दूसरी महिला के साथ ऐसा ही (संबंध) करे जिस तरह कि एक पुरूष एक महिला के साथ (संबंध) करता है।

पुरूष समलैंगिकता (Homosexuality) का अर्थ : पुरूष के पिछले मार्ग (गुदा) में संबध करना है। जो कि अल्लाह के ईश्दूत लूत अलैहिस्सलाम की समुदाय के शापित (मलऊन) लोगों की कार्रवाई है। इस्लामी शरीअत की शब्दावली में : (पुरूष के गुदा में लिंग को प्रवेष करना) समलैंगिकता कहलाता है।

क़ुर्आन और हदीस में इन दोनों के विषय में वर्णित बातें निम्नलिखित हैं :

(1) अल्लाह तआला का फरमान है :

"और (हम ने) लूत (अलैहिस्सलाम) को (भेजा) जब कि उन्हों ने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम ऐसा बुरा काम करते हो जिसे तुम से पहले किसी ने सारी दुनिया में नहीं किया ? तुम महिलाओं को छोड़ कर पुरूषों के साथ सम्भोग करते हो, बल्कि तुम तो हद (सीमा) से गुज़र गये हो।" (सूरतुल आराफ : 80, 81)

(2) तथा फरमाया :

"बेशक हम ने उन पर पत्थर की बारिश करने वाली हवा भेजी, सिवाय लूत के परिवार वालों के, उन्हें सुबह के वक़्त हम ने मुक्ति प्रदान कर दी।" (सूरतुल क़मर : 34)

(3) तथा फरमाया :

"और लूत (अलैहिस्सलाम) की भी (चर्चा करो) जब कि उन्हों ने अपनी क़ौम से कहा कि तुम तो उस बेहयाई पर उतर आये हो जिसे तुम से पहले पूरी दुनिया में किसी ने भी नहीं किया।" (सूरतुल अनकबूत : 28)

(4) तथा फरमाया :

"और हम ने लूत को भी हिक्मत और ज्ञान प्रदान किया, और उसे उस बस्ती से नजात दिया जहाँ के लोग गन्दे कामों में लिप्त थे और वास्तव में वे बुरे गुनहगार लोग थे।" (सूरतुल अम्बिया : 74)

(5) तथा फरमाया :

"और लूत की (चर्चा कर) जबकि उस ने अपनी क़ौम से कहा कि देखने-भालने के बावजूद भी तुम कुकर्म (बदकारी) कर रहे हो ? यह क्या बात है कि तुम औरतों को छोड़कर मर्दों के पास काम वासना (शह्वत) से आते हो ? सच यह है कि तुम बड़ी जिहालत कर रहे हो। (इस पर) उनकी क़ौम का जवाब इस कहने के अलावा दूसरा कुछ न था कि लूत के परिवार वालों को अपने नगर से निकाल दो, यह लोग तो बड़ी पाकी दिखा रहे हैं। और हम ने उसे और उसके परिवार को, उसकी पत्नी के सिवाय, सब को बचा लिया, इसका अंदाज़ा तो हम बाक़ी रह जाने वालों में लगा चुके थे। और उन के ऊपर एक (खास तरह की) बारिश कर दी, इसलिए उन डराये गये लोगों पर बुरी बारिश हुई।" (सूरतुन नम्ल : 54-58)

यह तो उस सज़ा का वर्णन था जो लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम पर उतरी, जहाँ तक उन के अहकाम के बारे में वर्णित चीज़ का संबंध है तो इस विषय में :

(6) अल्लाह तआला का फरमान है :

"और तुम में से जो दो इंसान ऐसा काम कर लें, तो उन्हें तकलीफ दो, अगर वह माफी माँग लें और सुधार कर लें, तो उन से मुँह फेर लो। बेशक अल्लाह तआला तौबा क़बूल करने वाला और रहम करने वाला है।" ((सूरतुन निसा : 16)

इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :

और अल्लाह तआला का फरमान :और तुम में से जो दो इंसान ऐसा काम कर लें, तो उन्हें तकलीफ दो। अर्थात् : जो दो आदमी बदकारी (कुकर्म) करें उन्हें तकलीफ दो। इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा और सईद बिन जुबैर और इनके अलावा अन्य लोगों का क्थन है : अर्थात् उनकी निंदा और उन्हें बुरा-भला कह कर, उन्हें लज्जित करके और जूतों से मार कर तकलीफ पहुँचाओ, इस कुकर्म का (इस्लाम के आरम्भ में) यही प्रावधान था यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने इसे निरस्त करके कोड़े लगाने या पत्थर मारने का प्रावधान लागू किया। इक्रमा, अता, हसन और अब्दुल्लाह बिन कसीर कहते हैं कि : यह आयत व्यभिचार करने वाले पुरूष और महिला के बारे में उतरी। और सुद्दी कहते हैं : युवाओं के बारे में उतरी जो शादी करने से पूर्व यह कुकर्म कर बैठें। और मुजाहिद का कहना है : दो आदमियों के बारे में उतरी जब वे दोनों स्पष्ट रूप से इस कुकर्म को कर लें, गोया वह इस से समलैंगिकता मुराद लेते हैं। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ जानता है।

तफ्सीर इब्ने कसीर (1/463)

(7) जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "मुझे अपनी क़ौम पर सब से अधिक लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम के काम (समलैंगिकता) का भय है।" तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1757), इब्ने माजा (हदीस संख्या : 2653) इस हदीस को शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने सहीहुल जामिअ (हदीस संख्या : 1552) में सहीह कहा है।

(8) इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :"... वह आदमी मलऊन (शापित) है जिस ने किसी पशु से सम्भोग किया, तथा वह आदमी मलऊन (शापित) है जिस ने लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम का काम (समलैंगिकता) किया।" (अहमद) इस हदीस को शैख अल्बानी ने सहीहुल जामिअ (हदीस संख्या : 5891) में सहीह कहा है।

(9) इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से ही वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म ने फरमाया : "जिसे तुम लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम का काम (समलैंगिकता) करते हुये पाओ तो करने वाले और जिसके साथ किया जा रहा है दोनों को क़त्ल कर दो।" (तिर्मिज़ी हदीस संख्या : 1456, अबू दाऊद हदीस संख्या : 4462, इब्ने माजा हदीस संख्या : 2561) इस हदीस को शैख अल्बानी ने सहीहुल जामिअ (हदीस संख्या :6589) में सहीह कहा है।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ जानने वाला है।

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद