हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
फज्र की नमाज़ का समय दूसरी फज्र (फ़ज्रे सादिक़) के उदय होने से शुरू होता है। इससे अभिप्राय क्षितिज में दाएँ और बाएँ फैली हुई सफेदी (उजाला) है। और इसका समय सूरज के उगने तक रहता है।
प्रश्न संख्याः (26763) के उत्तर में, हमने उस त्रुटि को स्पष्ट किया है जो बहुत से लोग करते हैं कि वे फ़ज्र की नमाज़ के समय को निर्धारित करने के लिए कैलेंडर पर भरोसा करते हैं। और यह कि इनमें से अधिकांश कैलेंडर फ़ज्रे सादिक़ के सही समय को निर्धारित नहीं करते हैं। यह बात एक से अधिक विद्वानों द्वारा कही गई है।
समकालीन विद्वानों ने इस त्रुटि की मात्रा के बारे में मतभेद किया है। उनमें से कुछ का मानना है कि यह पाँच मिनट से अधिक नहीं है, जबकि उनमें से कुछ इस बात की ओर गए हैं कि यह लगभग तीस मिनट है।
हमें नहीं पता कि आपके देश में क्या स्थिति है, लेकिन प्रत्येक देश के लोगों को, फ़ज़्र का समय पता लगाने, तथा इसके बारे में लोगों को सूचित करने और कैलेंडर की समय सारिणी गलत साबित होने पर उन्हें उसका पालन करने से सावधान करने के लिए, भरोसेमंद विद्वानों का एक समूह नियुक्त करना चाहिए।
किसी भी व्यक्ति को बिना सबूतों के यह दावा करने का अधिकार नहीं है कि नमाज़ समय के प्रवेश करने से पहले हुई है, खासकर जब फ़ज्र का वास्तविक समय पता लगाना शहरों और आबादी वाले देशों के भीतर बहुत मुश्किल है, क्योंकि सुबह की सफेदी (उजाला) शहर की रोशनी के साथ मिश्रित होती है।
शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से एक ऐसे समूह के बारे में पूछा गया जो फ़ज्र का समय नहीं जानते और वे किसी ऐसे व्यक्ति की सूचना (ख़बर) के आधार पर नमाज़ पढ़ते हैं जिस पर वे भरोसा करते हैं, लेकिन उनमें से कुछ को संदेह है।
तो उन्होंने उत्तर दिया : “जब तक वे उसके प्रति आश्वस्त हैं और जानते हैं कि इस आदमी को (नमाज़ के) समय के प्रवेश करने का ज्ञान है, तो उन पर कुछ भी आपत्ति नहीं है; क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि उन्होंने समय शुरू होने से पहले नमाज़ पढ़ी थी। अतः यदि वे नहीं जानते थे और उन्होंने इस आदमी की बात स्वीकार कर ली जिस पर वे भरोसा करते हैं, तो उन पर कोई दोष नहीं है। लेकिन आदमी को संदेह की स्थिति में सावधानी बरतनी चाहिए। इसलिए उसे तब तक नमाज़ नहीं पढ़ना चाहिए जब तक कि वह उसे सबसे अधिक संभावित नहीं समझता या सुनिश्चित नहीं हो जाता है।
तथा उसे चाहिए कि उस मंडली को सचेत करे, उन्हें सलाह दे और कहे किः पाँच मिनट या दस मिनट प्रतीक्षा करें। और इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा, क्योंकि मनुष्य का दस मिनट या पंद्रह मिनट इंतज़ार करना, एक मिनट भी समय से पहले नमाज़ पढ़ने से बेहतर है।” फतावा अश-शैख इब्ने उसैमीन” भाग-12, प्रश्न संख्याः 146 से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरी बात यह है कि :
आपको इस मस्जिद के लोगों को सलाह देनी चाहिए कि वे नमाज़ में देरी करें यहाँ तक कि उन्हें इस बात की अधिक संभावना हो जाए कि नमाज़ का समय शुरू हो गया है। यदि वे इस बात को स्वीकार कर लें, तो अल्लाह का शुक्र है।
लेकिन अगर वे उसी पर अटल रहें जिस पर वे स्थापित हैं - और आप सोचते हैं कि वे नमाज़ का समय शुरू होने से पहले नमाज़ पढ़ते हैं - तो आप कोई अन्य मस्जिद तलाश करें जिसमें नमाज़ देरी से आयोजित की जाती है। यदि आप ऐसी मस्जिद नहीं पाते हैं, तो हम आपको सलाह देते हैं कि आप उनके साथ मस्जिद में नमाज़ पढ़ें, ताकि आपका मस्जिद में फज्र की नमाज़ न पढ़ना आपके प्रति बुरी सोच रखने का कारण न बने, और यह कि आप नमाज़ से सोए रहते हैं, और ताकि आप खुद को मस्जिद में जाने के सवाब (पुण्य) से वंचित न करें, और ताकि आप बाद में नमाज़ पढ़ने में आलस न करें। फिर आप घर वापस जाएँ और समय प्रवेश करने के बाद मंडली में अपने परिवार के साथ नमाज़ दोहराएँ। यही सलाह शैख अलबानी रहिमहुल्लाह ने दी थी, जब उनसे पूछा गया था कि : क्या आप मुझे फज्र की फर्ज़ नमाज़ मस्जिद में या घर पर पढ़ने की सलाह देते हैंॽ [क्योंकि मस्जिद के लोग फज़्र की नमाज़ फज्र के उदय होने से पहले अदा करते हैं।]
तो उन्होंने जवाब दिया:
“मैं एक साथ दोनों चीजों की सलाह देता हूँ, जो यह है कि : वह मस्जिद में जाए और अगर वे वास्तविक समय से पहले फर्ज़ नमाज़ पढ़ते हैं, तो यह उसके लिए नफ्ल नमाज़ हो जाएगी। फिर वह घर वापस आए और समय पर फर्ज़ नमाज़ पढ़े, और विशेष रूप से अपने परिवार के साथ नमाज़ पढ़े।
लेकिन यहाँ एक ऐसी चीज़ है जो सबसे अधिक अनिवार्य है, लेकिन इस दायित्व को हर कोई पूरा नहीं कर सकता है, और वह मस्जिद के लोगों को इस गंभीर मामले से सचेत करना है . . . उद्धरण समाप्त हुआ।
“सिलसिलतुल-हुदा वन्-नूर” टेप संख्या (767), मिनट (32)।
और अल्लाह तआला ही सबसे बेहतर जानता है।