हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अगर आदमी अपनी पत्नी को तीसरी तलाक़ दे दे तो वह उसके लिए उस समय तक हलाल नहीं होगी जब तक कि वह किसी दूसरे पति से निकाह न कर ले, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
فَإِنْ طَلَّقَهَا فَلا تَحِلُّ لَهُ مِنْ بَعْدُ حَتَّى تَنْكِحَ زَوْجاً غَيْرَهُ
[البقرة : 230]
”फिर यदि वह उसको (दो तलाक़ों के पश्चात तीसरी बार) तलाक़ दे दे, तो अब वह उसके लिए हलाल (वैध) नहीं जब तक कि वह स्त्री उसके अतिरिक्त किसी दूसरे पति से निकाह न कर ले।” (सूरतुल बक़रा : 230)
तथा इस निकाह में, जो उसे उसके पहले पति के लिए हलाल (जायज़) कर सकता है, यह शर्त है कि वह एक सही निकाह हो। अतः कुछ सीमित समय के लिए निकाह करना (जिसे निकाहे मुत्आ कहा जाता है), या महिला को उसके पहले पति के लिए हलाल करने के उद्देश्य से निकाह करना (जिसे निकाहे हलाला कहा जाता है), ये दोनों निकाह आम विद्वानों के कथन के अनुसार हराम (निषिद्ध) और बातिल (व्यर्थ) हैं, और इसके द्वारा औरत अपने पहले पति के लिए हलाल नही होगी।
देखिए : ”अल-मुग़्नी” (10/49-55).
तथा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से निकाहे हलाला को हराम (वर्जित) ठहराने वाली कई हदीसें वर्णित हैं।
अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2076) ने रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :”हलाला करने वाले (मुहल्लिल) और हलाला करवाने वाले (मुहल्लल् लहू) व्यक्ति पर अल्लाह की लानत (धिक्कार) हो।”
शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने ‘सहीह सुनन अबू दाऊद’ में इस हदीस को सहीह कहा है।
मुहल्लिल : वह व्यक्ति है जो औरत से इस लिए निकाह करे ताकि उसे उसके पहले पति के लिए हलाल कर दे।
मुहल्लल लहू : औरत का पहला पति है (यानी जिसके लिए हलाला किया गया है)।
तथा इब्ने माजा (हदीस संख्या : 1936) ने उक़बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ”क्या मैं तुम्हें किराए पर लिए गए सांड के बारे में न बतलाऊँ? (कि वह कौन होता है) लोगों ने कहा : क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल! आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : वह हलाला करने वाला व्यक्ति है, अल्लाह तआला हलाला करने वाले और हलाला करवाने वाले पर लानत (अभिशाप) करे।” शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने ”सहीह सुनन इब्ने माजा” में इस हदीस को हसन कहा है।
और अब्दुर्रज़्ज़ाक़ (6/265) ने उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने लोगों को भाषण देते हुए फरमाया : ”अल्लाह की क़सम मेरे पास हलाला करने वाला और हलाला करवाने वाला व्यक्ति लाया जाए तो मैं उन्हें रज्म (पत्थरों से मार-मार कर हलाक) कर दूँगा।”
तथा निकाह के समय, चाहे उसने अपने उद्देश्य को स्पष्ट किया हो और उन्हों ने उस पर यह शर्त रखी हो कि जब वह उसे उसके पहले पति के लिए हलाल कर देगा, तो उसे तलाक़ दे देगा, या उन्हों ने यह शर्त न रखी हो, बल्कि केवल उसने अपने हृदय में इसका इरादा किया हो, इस मामले में ये दोनों चीज़ें बराबर हैं।
इमाम हाकिम ने नाफे से रिवायत किया है कि एक आदमी ने इब्ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से कहा : मैं ने एक औरत से शादी की है ताकि मैं उसे उसके पहले पति के लिए हलाल कर दूँ, जबकि उस आदमी ने न तो मुझे इसका आदेश दिया है और ना ही उसको इसका ज्ञान है। आप ने फरमाया : नहीं, सिवाय इच्छा पूर्ण निकाह के, यदि वह तुम्हें पसंद है तो तुम उसे रोक रखो, और अगर वह नापसंद है तो उसे छोड़ दो। आप ने फरमाया : निःसंदेह हम लोग इसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग में ज़िना (व्याभिचार) शुमार करते थे। और फरमाया : वे दोनों निरन्तर ज़ानी (व्याभिचारी) हैं, यद्यपि वे दोनों बीस वर्षों तक एक साथ रहें।”
इमाम अहमद रहिमहुल्लाह से पूछा गया कि : एक आदमी किसी औरत से शादी करता है और उसके दिल में यह बात है कि वह उस औरत को उसके पहले पति के लिए हलाल करेगा, जब्कि औरत को इस बात का ज्ञान नहीं है। इस पर इमाम अहमद रहिमहुल्लाह ने उत्तर देते हुए बताया कि : वह मुहल्लिल अर्थात हलाला करने वाला है, जब वह हलाला करने का इरादा करे तो वह मलऊन (अभिशापित) है।
इस आधार पर, आपका उस औरत से शादी करना जायज़ नही है जबकि आप इसके द्वारा उसे उसके पहले पति के लिए हलाल करने का इरादा रखते हैं। ऐसा करना महा पाप है, तथा यह निकाह भी सही नहीं होगा, बल्कि यह ज़िना है। अल्लाह हमें इस से सुरक्षित रखे।