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उसके कुछ साथियों ने उसके सतीत्व पर आरोप लगाया है तो उनकी क्या सज़ा है? और वह उनके साथ किस तरह व्यवहार करे?

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प्रकाशन की तिथि : 27-11-2024

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प्रश्न

मैं एक सैन्य क्षेत्र से जुड़ा हूँ, जिसमें मुझे काम करते हुए लगभग तेरह साल होगए। सहसा एक दिन मैं आश्चर्यचकित और हैरान रह जाता हूँ, और मैं कांपने लगता हूँ और जो कुछ मेरे चारों ओर चल रहा था उस पर मुझे विश्वास नहीं होता है। वह यह कि मेरे बारे में यह अफवाह फैलाई गई थी – जिससे मैं महान अल्लाह की पनाह चाहता हूँ, और इस बात से कि मैं उन लोगों में से हूँ – जिसका आशय यह है कि : (मैं हिजड़ा हूँ )!! ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह ! दिन और महीने गुज़रते गए, मैं कुछ भी नहीं कर सका। क़सम है महान अल्लाह की! कि मैं हर पल अपने ऊपर अफसोस करता हूँ, और इस बात पर कि मेरी इमेज (प्रतिष्ठा) कहाँ पहुँच चुकी है जो मेरे जीवन में सबसे बड़ी चीज़ थी। ज्ञात रहे कि दिन प्रति दिन अफवाह फैलती ही जा रही है, और इस स्तर तक बढ़ती जा रही है कि मैं दूसरों के साथ बात नहीं कर सकता, वला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह! मुझे इसका समाधान कहाँ मिल सकता है? मैं जब भी किसी से बात करता हूँ वह कहता है कि : तुम सब्र से काम लो, या जवाब न दो। क्या किया जाए? जबकि ज्ञात होना चाहिए कि मेरी उमर 33 वर्ष है, और मैं शादीशुदा हूँ और मेरे बच्चे भी हैं, . . . मैं अल्लाह की क़सम खाता हूँ ऐसी क़सम जिस पर क़ियामत के दिन मेरा हिसाब होगा कि मैं इन सबसे बरी और बेगुनाह हूँ और जो कुछ मैं कह रहा हूँ उसपर अल्लाह गवाह है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

कुछसलफ का कहना हैकि : ‘‘धरती पर कोईअन्य चीज़ ऐसी नहींहै जो ज़ुबान सेअधिक क़ैद (बांधकररखने) की ज़रूरतमंदहो।’’ जबकि वास्तविकतायह है कि वह मुँहके अंदर, दाँतोंके फाटक के अंदरबंद है, और उसकेऊपर दो अन्य फाटकदोनों होंठ भीबंद हैं! इसके बावजूदवह उस कड़ी पहरेदारीके होते हुए आदमीको पाप में गिरादेती है और कभीकभार कुफ्र मेंढकेल देती है।

तथाउत्कृष्ट बु़द्धिकी बातों में सेयह है कि : बात तुम्हाराबंदी है, परंतुजब वह तुम्हारीज़ुबान से निकलजाए तो तुम उसकेबंदी बन जाते हो।’’

तथाज़ुबान को अल्लाहतआला की हराम कीहुई चीज़ों – लोगोंकी मान मर्यादा, सतीत्व के बारेमें लिप्तकरने, गीबत (पिशुनता), चुगलखोरी, गाली गलूज, अल्लाह पर बिनाजानकारी के बातकहने, और ज़ुबानके सामान्य अपराधोंऔर अवज्ञाओं मेंबेलगाम छो़ड़ देनेपर चेतवानी आईहै।

अल्लाहतआला का फरमानहै:

مَا يَلْفِظُ مِنْ قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ

سورة ق : 18

”कोईबात उसकी ज़बानपर नहीं आतीमगर एक निरीक्षकउसके पासतैयार रहता है।” (सूरतक़ाफ: 18)

तथासहल बिन सअद सेवर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाहके पैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : ‘‘जो व्यक्ति अपनेदोनों जबड़ों केबीच और अपने दोनोंपैरों के बीच कीचीज़ों (अर्थातज़ुबान औरशरमगाह) की रक्षाकी गारन्टी देदे तो मैं उसकेलिए स्वर्ग कीगारन्टी देता हूँ।’’ इसे बुखारी (हदीससंख्या : 6109) ने रिवायतकिया है।

तथाअबू हुरैरा रज़ियल्लाहुअन्हु ने नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमसे रिवायत कियाहै कि आप ने फरमायाः

‘‘आदमी अल्लाहतआला की प्रसन्नताकी कोई बात कहताहै जिसे वह कोईमहत्व नहीं देताहै उसके द्वाराअल्लाह तआला उसेकई पद ऊँचा कर देताहै, तथा बंदा अल्लाहके क्रोध की बातकरता है जिसे वहकोई महत्व नहींदेता है उसके कारणवह नरक में गिरताजाता है।’’ इसे बुखारी(हदीस संख्या: 6113)ने रिवायत कियाहै।

जहाँतक ऐ प्रश्न करनेवालेभाई! आपके सतीत्व परलांछन लगाने कीबात है : तो इस बातको जान लीजिए किअल्लाह तआला अत्याचारीको ढील देता है, यहाँ तक कि जब उसेपकड़ता है तो उसेछोड़ता नहीं है, तथा आपको आपकेसब्र करने और कष्टको सहन करने परपुरस्कृतकिया जायेगा औरस्वयं वही लोगपापी होंगे औरआपके ऊपर झूठाआरोप लगाने परदुनिया में शरईहद (दण्ड) के पात्रहोंगे, तथा आखिरतमें यातना के पात्रबनेंगे। तथा वेलोग उन मुफलिसों(दरिद्रों) मेंसे हैं जिनकी नेकियाँलेकर मज़लूम कोदे दी जायेंगींऔर उसके गुनाहोंको लेकर उनके ऊपरडाल दिया जायेगा, सिवाय इसके किअल्लाह तआला उन्हेंक्षमा प्रदान करदे।

अतःउन लोगों ने जोआप को अनैतिकतासे आरोपित कियाहै वह एक घृणितबात और झूठ है, और उन्हों ने कईबड़े-बड़े गुनाहकिए हैं, जिनमेंसे सबसे प्रमुखलांछना, मिथ्यादोषारोपण, कुकर्म का आरोपलगाना और गीबत है,और ये सब के सब जघन्यअपराधों में सेहैं:

1- बोहतान : इस पर चेतावनीदेते हुए अल्लाहतआला ने फरमाया:

وَالَّذِينَ يُؤْذُونَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ بِغَيْرِ مَا اكْتَسَبُوافَقَدِ احْتَمَلُوا بُهْتَاناً وَإِثْماً مُبِيناً

الأحزاب : 58

‘‘जो लोग ईमानवाले पुरूषों औरईमान वाली महिलाओंको कष्ट पहुँचातेहैं बिना उनकेकिसी किए हुए अपराधके, तो उन्होंने बोहतान (मिथ्यारोपण) और खुलेहुए गुनाह काबोझ उठाया है।’’ (सूरतुल अहज़ाब: 58).

तथाअबू हुरैरा रजियल्लाहुअन्हु से वर्णितहै कि अल्लाह केपैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : ‘‘क्या तुम जानतेहो कि गीबत क्याहै? लोगोंने कहा : अल्लाहऔर उसके पैगंबरइस बात को सबसेअधिक जानते हैं।आप ने फरमाया : तुम्हाराअपने भाई का चर्चाऐसी चीज़ के द्वाराकरना जिसे वह नापसंदकरता है। कहा गया: आपका क्या विचारहै यदि मेरे भाईके अंदर वह चीज़पाई जाती है जिसकामैं चर्चा कह रहाहूँ? आप ने फरमाया :यदि उसके अंदरवह चीज़ पाई जातीहै जिसका तुम चर्चाकर रहे हो तो तूने उसकी गीबत कीहै , और यदिउसके अंदर वह चीज़नहीं है तो तू नेउसपर झूठा आरोपलगाया है।” इसेमुस्लिम (हदीससंख्या : 2598)रिवायत कियाहै।

तथा‘‘अल-मौसूअतुलफिक़्हिय्या’’ (21/279) में है :

अल-बोहतान : अरबी भाषामें : झूठाआरोप लगाने औरझूठ गढ़ने को कहतेहैं, और वह इस्मेमस्दर (क्रियार्थकसंज्ञा) है, उसकी क्रिया : ‘ब-ह-त’है, और उसका बाब(मापन) ‘न-फ-अ’ है।

तथाशरीअत की इस्तिलाह(शब्दावली) में: यह है कि किसी मसतूरहाल (छिपीहुई
स्थितिवाले) आदमी के पीछेऐसी बात बोले जोउसके अंदर नहींहै।

अंतहुआ।

तथा(31/330, 331) में है कि:

बोहतानअरबी भाषा में: झूठा आरोप लगानेऔर झूठ गढ़ने कोकहते हैं …, और इस्तिलाहमें : तुम्हाराअपने भाई के बारेमें ऐसी बत कहनाजो उसमें नहींहै।

तथागीबत और बोहतानमें अंतर यह हैकि : गीबत कहते हैइन्सान का उसकीअनुपस्थिति मेंऐसी चीज़ के साथचर्चा करना जिसेवह नापसंद करताहै, और बोहतान: कहते हैं उसकावर्णन ऐसी चीज़के साथ करना जोउसमें नहीं है, चाहे वह उसकी अनुपस्थितिमें हो या उसकीउपस्थिति में।

अंतहुआ।

2- रही बातमिथ्यारोप की :तो वह बड़े गुनाहोंमें से है, और उसकेबारे में अस्सीकोड़ों का दण्डहै। अल्लाह तआलाने फरमाया:

وَالَّذِينَيَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَأْتُوا بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاءَفَاجْلِدُوهُمْ ثَمَانِينَ جَلْدَةً وَلَا تَقْبَلُوا لَهُمْ شَهَادَةً أَبَدًاوَأُولَئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَإِلَّاالَّذِينَ تَابُوا مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ وَأَصْلَحُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌرَحِيمٌ [النور:4-5]

”और जो लोगपाक दामन औरतोंपर (व्यभिचार का)आरोप लगाएँ फिर(अपने दावे पर) चारगवाह पेश न करेंतो उन्हें अस्सीकोड़े मारो और फिरकभी उनकी गवाहीक़बूल न करो और (यादरखो कि) ये लोग स्वयंबदकार(अवज्ञाकारी) हैं।सिवायउन लोगों केजो इसके पश्चाततौबा कर लेंऔर सुधार करलें, तोनिश्चय हीअल्लाह बहुतक्षमाशील,अत्यन्तदयावान है।” (सूरतुन्नूर: 4-5)

इब्नेकसीर रहिमहुल्लाहने फरमाया:

अल्लाहतआला ने आरोप लगानेवाले पर यदि वहअपनी बात के सहीहोने पर सबूत नस्थापित कर सकेतीन अहकाम(प्रावधान) अनिवार्यकिए हैं : उनमेंसे एक यह है कि : उसेअस्सी कोड़े लगाएजाएं। दूसरा : हमेशाके लिए उसकी गवाहीको रद्द कर दियाजाए। और तीसरायह कि : वह फासिक़हो जायेगा, न्यायप्रिय नहीं रहजायेगा, न तो अल्लाहके निकट और न हीलोगों के निकट।

तफ्सीरइब्ने कसीर (3/292).

तथाइब्ने हजर रहिमहुल्लाहने फरमाया : इस बातपर सर्वसम्मत सिद्धहो चुका है कि पवित्रचरित्र वाले पुरूषोंपर मिथ्यारोप काहुक्म वही है जोपवित्राचारिणीमहिलाओं पर मिथ्यारोपका हुक्म है।

‘‘फत्हुलबारी’’ (12/188)

तथाअबू हुरैरा रज़ियल्लाहुअन्हु से रिवायतहै कि अल्लाह केपैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : ‘‘क्या तुम जानतेहो मुफलिस (दरिद्र)कौन है? लोगोंने कहा : हमारे बीचमुफलि वह व्यक्तिहै जिसके पास दिर्हमहो न दीनार और नकोई सामान हो।तो आप ने फरमाया: मेरी उम्मत कामुफलिस वह है जोक़ियामत के दिननमाज़, रोज़ा औरज़कात लेकर आयेगा, तथा वह इस हाल मेंआयेगा कि उसनेइसे गाली दी होगी, इस पर आरोप लगायाहोग, इसका मालखाया होगा, इसका खून बहायाहोगा और इसे माराहोगा। तो उसे इसकीनेकियाँ दे दीजायेंगी और इसेउसकी नेकियाँ देदी जायेंगी। यदिउसके ऊपर जो कुछअनिवार्य है उसकाफैसला करने सेपहले उसकी नेकियाँसमाप्त हो गईं, तो उन लोगों कीगलतियों को लेकिरउसके ऊपर डाल दियाजायेगा, फिर उसेजहन्न में डालदिया जायेगा।”इसे मुस्लिम (हदीससंख्या : 2581) ने रिवायतकिया है।

3- जहाँतक गीबत की बातहै : तो उसका निषिद्धहोना अल्लाह तआलाकी किताब और नबीसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम की सुन्नतमें स्पष्ट रूपसे वर्णित है।

शैखअब्दुल अज़ीज़ बिनबाज़ रहिमहुल्लाहसे पूछा गया :

मेराएक दोस्त है जोअक्सर लोगों कीमान-मर्यादा (सतीत्व)के बारे में बातकरता रहता है, मैं ने उसे नसीहतकी लेकिन कोई फायदानहीं, ऐसा लगताहै कि यह उसकी आदतबन गई, और कभीकभी उसका लोगोंके बारे में बातकरना अच्छी नीयतसे होती है, तो क्या उसे छोड़ना(अर्थात उसकाबहिष्कार करना)जायज़ है?

तो उन्होंने उत्तर दिया:

मुसलमानोंके सतीत्व के बारेमें ऐसी बात करनाजिसे वे नापसंदकरते हैं : एक महानबुराई है, और निषिद्धगीबत (चुगली) मेंसे है, बल्किबड़े गुनाहों मेंसे है। क्योंकिअल्लाह तआला काकथन है :

وَلَايَغْتَبْ بَعْضُكُمْ بَعْضًا أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَنْ يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِمَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ رَحِيمٌ

سورة الحجرات : 12

”और तुममेंसे कोई किसीदूसरे की ग़ीबत(पीठ पीछे बुराई)न करे, क्यातुम में सेकोई इसको पसन्द करेगाकि वह अपने मरेहुए भाई कामांस खाए?तुम तो उससेअवश्य घृणाकरोगे। औरअल्लाह का डररखो। निश्चयही अल्लाहतौबा क़बूलकरनेवाला,अत्यन्त दयावान है।” (सूरतुलहुजुरात : 12).

तथाइस लिए भी कि मुस्लिमने अपनी सहीह मेंअबू हुरैरा रज़ियल्लाहुअन्हु से रिवायतकिया है कि नबीसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम ने फरमाया: ”क्या तुम जानतेहो कि गीबत क्याहै? लोगों ने कहा: अल्लाह और उसकेपैगंबर इस बातको सबसे अधिक जानतेहैं। आप ने फरमाया: तुम्हारा अपनेभाई का चर्चा ऐसीचीज़ के द्वाराकरना जिसे वह नापसंदकरता है। कहा गया: आपका क्या विचारहै यदि मेरे भाईके अंदर वह चीज़पाई जाती है जिसकामैं चर्चा कह रहाहूँ? आप ने फरमाया :यदि उसके अंदरवह चीज़ पाई जातीहै जिसका तुम चर्चाकर रहे हो तो तुमने उसकी गीबत कीहै, और यदि उसकेअंदर वह चीज़ नहींहै तो तुम ने उसपरझूठा आरोप लगायाहै।”

तथानबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमसे प्रमाणित हैकि ‘‘जब आप को मेराजमें आसमान पर लेजाया गया तो आपका गुज़र ऐसे लोगोपर हुआ जिनकेतांबे के नाखूनथे जिनके द्वारावे अपने चेहरोंऔर सीनों को खरोंचरहे थे। तो आप नेफरमाया : ऐ जिब्रील!ये कौन लोग हैं? तो उन्होंने कहा : ये वो लोगहैं जो लोगों केगोश्त खाया करतेथे और उनके सतीत्वव सम्मान की चीज़ोंमें बात करते थे।”इसे अहमद और अबूदाऊद ने जैयिदसनद के साथ अनसरज़ियल्लाहु अन्हुसे रिवायत कियाहै। अल्लामा इब्नेमुफलेह कहते हैं: उसकी इसनाद सहीहै, औरफरमाया : तथा अबूदाऊद ने हसन इसनादके साथ अबू हुरैरासे मरफूअन रिवायतकिया है कि ”मनुष्यका किसी मुसलमानभाई की इज़्ज़तके बारे में बिनाअधिकार के जुबानचलाना बड़े गुनाहोंमें से है।”

आपकेऊपर और आपके अलावाअन्य मुसलमानोंपर अनिवार्य यहहै कि मुसलमानोंकी गीबत-चुगलीकरने वालों केसाथ न बैठें, साथही साथ उसे नसीहतकरें और उसकी निंदाकरें। क्योंकिनबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : ”तुममें से जो आदमीकिसी बुराई कोदेखे तो उसे अपनेहाथ से बदल डाले, यदि वह ऐसा नहींकर सकता तो अपनीज़ुबान से, यदि ऐसाकरने पर भी सक्षमनहीं है तो अपनेदिल से, और यह सबसेकमज़ोर ईमान है।”इसे मुस्लिम नेअपनी सहीह मेंरिवायत किया है।यदिवह बात नहीं मानताहै : तो आप उसके साथउठना-बैठना त्यागदें, क्योंकियह उसका खण्डनकरने की पूर्तिमें से है।” फतावाइब्ने बाज़ (5/401, 402).

हम आपको जो नसीहत करतेहैं और जिस चीज़की सलाह देते हैंवह यह है कि : आप अल्लाहके पास इस आपदासे अज्र व सवाबकी आशा रखें, तथा जिनलोगों ने यहबात सुनी हैउनके सामने अपनेआप के इससेबरी होने काप्रकटीकरण करकेऔर उन झूठ गढ़नेवालोंकी झूठ और मिथ्यारोपका पर्दाफाश करकेअपने आप की रक्षाऔर बचाव करें।हम समझते हैं किआपका अपने कार्यके स्थान से दूररहना और उनके झूठकेस्पष्टीकरणसे चुप रहना, आपकेबहुत से साथियोंके निकट उनके बातकी प्रामाणिकताको सुनिश्चितकर देगा। यदि आपअपनी बेगुनाहीको बयान कर और उनकेझूठ व मिथ्यारोपको स्पष्ट कर अपनेकाम के स्थान सेस्थानांतरित होनाचाहते हैं तो आपऐसा कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करनेसे पहले वहाँ सेस्थानांतरति नहों। तथा हम आपकोयह भी सलाह देतेहैं कि आप शरई न्यायपालिकाके सामने उनकेआप के ऊपर झूठाआरोप लगाने कोसिद्ध करें औरउनके ऊपर शरई दण्डलागू करने की मांगकरें।

शैखअब्दुल्लाह बिनजिब्रीन से प्रश्नकिया गया :

दो व्यक्तियोंने एक दूसरे कीगीबत की, ताकि दोषउसके ऊपर आए औरअपने आपको दूसरोंके सामने बरी करसके, लेकिनदूसरा व्यक्तिगीबत के पापोंका अल्लाह से डररखता है, उदाहरणके तौर पर पति औरपत्नी ने झगड़ाकिया, और आपसमें मतभेद पैदाहो गया, चुनाँचेपत्नी अपने घरवालों के यहाँचली गई और उसकेपति से जो कुछ हुआथा और उसने जो कुछकिया था उसके बारमें अपने घर वालोंके सामने उसकीगीबत की। फिर उसकेघर वाले उठकर अपनीबारी पर उस आदमी- अपनी बेटी के पति- की दूसरों के सामनेगीबत करते हैं, इसी तरह वे करतेहैं यहाँ तक किउस आदमी को बदनामव रूसवा कर देतेहैं, चाहे उसकेअंदर वह चीज़ पाईजाती हो या न पाईजाती हो। परंतुजब उस आदमी-महिलाके पति ने अपनीपत्नी और उसकेघर वालों की ओरसे लोगों के सामनेहोने वाली गीबतऔर अन्याय के बारेमें सुना : तो उसनेउसी के समान चीज़के द्वारा अपनाबचाव करना चाहा, और यह इरादा कियाकि उस(महिला-पत्नी) सेहोने वाली चीज़ोंको लोगों से बतादे, लेकिन उसेगीबत और ज़ुल्मके गुनाहों सेअल्लाह का डर लगताहै, तो क्या वहचुप रहे और अपनेमामले को अल्लाहके हवाले सौंपदे, और जो कुछहुआ है उसकी परवाहन करे?

तो उन्होंने उत्तर दिया:

इसमेंकोई शक नहीं किगीबत हराम है, और वह आपका अपनेभाई का चर्चा ऐसीचीज़ के द्वाराकरना है जिसे वहनापसंद करता है, भले ही आप जो कुछकह रहे हैं उसमेंआप सच्चे हों।लेकिन यदि आप नेउसके ऊपर झूठ बातलगाई है जो उसकेअंदर पाई नहींजाती है : तो यह बहुतबड़ा बोहतान औरमहा अन्याय है, और उसका पाप गीबतके पाप से भी बढ़करहै। इस आधार परपति के लिए जायज़है कि वह अपने आपकोउस चीज़ से बरी ठहराएजो उन्होंने उसकेऊपर लोगों के सामनेझूठ बाँधा है, ताकि आम लोगोंको पता चल जाए किउसके बारे मेंजो कुछ कहा गयाहै वह सही नहींहै, और वह बरीहो जाए औ झूठ सेउसकी मर्यादा कीरक्षा हो सके।क्योंकि यदि वहचुप रहता है : तोलोग उस चीज़ को सहीमान लेंगे जिससेउसे आरोपित कियागया है, और उसकोसच समझेंगे, और उसकी बदनामीफैल जायेगी। इसीतरह जो व्यक्तिइससे अवज्ञत हैउसे चाहिए कि वहपत्नी और उसकेघर वालों को मात्रगीबत-चुगलखोरी, झूठ और मिथ्यारोपसे तथा पति पत्नीके बीच रहस्योंका पर्दाफाश करनेसे बचने की नसीहतकरे, और उन्हेंयह बतलाए कि यहगुमान (भ्रांति)में से है, और भ्रांतिसबसे झूठी बातहै। इसी तरह उनदोनों के बीच सुधारकरने, एकजुटकरने और दिलोंके अंदर जो द्वेष, घृणा और दुश्मनीहै उसे दूर करनेका प्रयास करनाचाहिए, आशा हैकि स्थिति सुधरजाए और संगत बहालहो जाए जिस तरहकि पहले थी।

‘‘अल्लू-लुउलमकीन मिन फतावाअश्शैख इब्न जिब्रीन’’ (अन्निकाह/प्रश्न359)

और अल्लाहतआला ही सबसे अधिकज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर