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क्या रेहन (गिरवी) मांगने वाले के लिए रेहन रखी हुई चीज़ से लाभ उठाना जाइज़ है ?

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प्रकाशन की तिथि : 04-02-2010

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प्रश्न

एक आदमी ने मेरे पास तीन वर्ष की अवधि के लिए ज़मीन का एक टुकड़ा रेहन रखा था,  और इन वर्षों के दौरान मैं ने उस की जोताई और खेती की, तो क्या उस से प्राप्त होने वाला लाभ सूद (व्याज़) समझा जायेगा ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

रेहन की मांगकरने वाले आदमीके लिए, रेहन रखनेवाले आदमी की अनुमतिके बिना रेहन रखीहुई चीज़ से लाभउठाना किसी भीहालत में जाइज़नहीं है, क्योंकिनबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमका फरमान है : “किसीभी आदमी का धन उसकी मर्ज़ीके बिनाहलाल -वैध- नहींहै।” इसे अहमद ने(हदीस संख्या : 20172 के तहत)वर्णन किया है, और शैखअल्बानी ने इर्वाउल-गलील(5/279) मेंइसे सहीह कहा है।

तथा नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके इस फरमान केआधार पर भी वैधनहीं है कि: “हरमुसलमान का दूसरेमुसलमान पर उसकाखून, उस का धन औरउस की इज़्ज़त वआबरू हराम है।”(सहीह मुस्लिमहदीस संख्या : 2564)

दूसरा

:

अगर रेहनरखने वाला, रेहनकी मांग करने वालेको रेहन रखी हुईचीज़ से लाभ उठानेकी अनुमति दे देताहै तो यदि वह उधार,क़र्ज़ लेने की वजहसे (ऋण का उधार) है,तब भी रेहन मांगनेवाले आदमी के लिएरेहन से लाभ उठानाजाइज़ नहीं है, यद्यपिरेहन रखने वालेने अनुमति दे दीहै, क्योंकि यह ऐसाक़र्ज़ है जो लाभको जन्म देता है,अत: वहसूद है।

इमाम बैहक़ीरहिमहुल्लाह सुननअस्सुग्रा (4/353) मेंकहते हैं :

हमें फज़ालाबिन उबैद से वर्णनकिया गया कि उन्होंने कहा : हर वह क़र्ज़जो लाभको जन्म देता हैवह सूद का एक रूपहै। तथा हमें इब्नेमसऊद, इब्ने अब्बास,अब्दुल्लाहबिन सलामरज़ियल्लाहुअन्हुम वगैरा सेइसी के अर्थ मेंवर्णन किया गयाहै। तथा उमर औरउबै बिन कअब रज़ियल्लाहुअन्हुमा से भीवर्णित है।”

तीसरा:

अगर वह ऋणजिस में ज़मीन रेहनरखी गयी है क़र्ज़न हो, जैसे कि किसीबेचे गये सामानका मूल्य या घरका किराया इत्यादिहो और रेहन का मालिक(क़र्ज़ दार) रेहनमांगने वाले (क़र्ज़देनेवाले) के लिए रेहनरखी हुई चीज़ सेलाभ उठाने की अनुमतिप्रदान कर दे,तो उसपर इस में कोई आपत्तिकी बात नहीं हैं।

मुदव्वना(4/149) मेंवर्णित है कि :

“मैं ने कहा: आप का इस बारे मेंक्या विचार हैकि क्या रेहन कीमांग करने वालारेहन रखी हुई चीज़से लाभ उठाने कीकोई शर्त लगा सकताहै ? उन्हों ने कहा: यदि वह बिक्रीसे है तो ऐसा करनाजाइज़ है, और अगरऋण, क़र्ज की वजहसे है तो ऐसा करनाजाइज़ नहीं है, क्योंकियह ऐसा उधार होजाता है जो लाभको जन्म देता है।मैं ने कहा : क्यायह मालिक का कथनहै ? उन्हों ने कहा: हाँ …”

इब्ने क़ुदामारहिमहुल्लाह कहतेहैं :

“जिस रेहनमें खर्च (व्यय)की आवश्यकता नहींहोती है, जैसे किघर और सामान वगैरा,तो रेहनमांगने वाले केलिए रेहन रखनेवाले की अनुमतिके बिना उस से लाभउठाना किसी भीहालत में जाइज़नहीं है। हम इसबारे में किसीका मतभेद नहींजानते ; क्योंकिरेहन रखी हुई चीज़रेहन रखने वालेकी संपत्ति है,तो इसीतरह उस का विकासऔर उस का लाभ भीउसी का है, अत: उसकी अनुमति के बिनाकिसी और के लिएउसे लेना जाइज़नहीं है। अगर रेहनरखने वाला, रेहनमांगने वाले केलिए बिना किसीछतिपूर्ति के रेहनसे लाभ उठाने कीअनुमति प्रदानकर दे, और रेहन काऋण, क़र्ज़ की वजह से होतो जाइज़ नहीं है; क्योंकि वह ऐसाक़र्ज़ प्राप्त करताहै जो लाभ को जन्मदेता है, और यह हरामहै। इमाम अहमदकहते हैं : मैं घरका क़र्ज़ नापसंद करताहूँ, वह निरा सूदऔर व्याज़ है। अर्थात्: यदि घर किसी क़र्ज़में गिरवीरखा हो जिस से रेहनमांगने वाला लाभउठाता हो।

और अगर रेहनकिसी बिक्री कियेगये सामान का मूल्य,या किसीघर का किराया,या क़र्जके अलावा कोई अन्यऋण है, और रेहन रखनेवाला उसे लाभ उठाने(प्रयोग करने) कीअनुमति दे दे,तो उसके लिए रेहन सेलाभ उठाना जाइज़है।” (इब्ने क़ुदामारहिमहुल्लाह कीबात समाप्त हुई).

“अल-मुग़नी”(4/250)

चौथा:

पीछे वर्णिततरीक़े पर, रेहनसे लाभ उठाने केलिए यह शर्त हैकि यह लाभ उठानाक़र्ज़ की अदायगीकी अवधि में विलंबकरने के बदले मेंन हो, अगर उस का रेहनसे लाभ उठाना इसके बदले में हैतो रेहन की मांगकरने वाले के लिएरेहन से लाभ उठानाजाइज़ नहीं है,क्योंकिऐसी स्थिति मेंवह लाभ को जन्मदेने वाले क़र्ज़के अध्यायसे हो जाता है।

इफ्ता कीस्थायी समिति सेप्रश्न किया गया:

एक आदमी केऊपर एक दूसरे आदमीका क़र्ज़ है, क़र्ज़दार ने उस के बदलेमें ज़मीन का एकटुकड़ा रेहन रखाहै, तो क्या क़र्ज़के मालिक (क़र्ज़देनेवाले) के लिए उसगिरवी रखी हुईज़मीन से उसकी खेतीकरके या उसे किरायेपर देकर या इसीके समान किसी अन्यढंग से लाभ उठानाजाइज़ है ?

तो समितिने उत्तर दिया:

“अगर गिरवीरखी हुई चीज़ ऐसीनहीं है जिस केलिए खर्च करनेऔर देख रेख की आवश्यकताहोती है, जैसे किसामान और अचल संपत्तिज़मीन और घर आदि,और वहक़र्ज़ के ऋण के अलावाकिसी अन्य ऋण मेंगिरवी रखी गयीहो, तो रेहन की मांगकरने वाले के लिएरेहन रखने वालेकी अनुमति के बिनाउस में खेती करकेया उसे किरायापर देकर लाभ उठानाजाइज़ नहीं है,क्योंकिवह रेहन रखने वालेकी संपत्ति हैतो उस से विकसितचीज़ भी उसी की होगी, अगर रेहनरखने वाला, रेहनमांगने वाले कोइस ज़मीन से लाभउठाने की अनुमतिदे दे और वह ऋण क़र्ज़का ऋण न हो तो रेहनमांगने वाले केलिए उस से लाभ उठानाजाइज़ है भले हीवह बिना किसी मुआवज़ाके हो, किन्तु इसशर्त के साथ किवह उस क़र्ज़ की अदायगीकी अवधि में विलंबकरने के बदले मेंन हो, अगर उस का रेहनसे लाभ उठाना इसके बदले में हैतो रेहने की मांगकरने वाले के लिएउस से लाभ उठानाजाइज़ नहीं है।

किन्तु अगरयह गिरवी रखी हुईज़मीन, क़र्ज़ के ऋणमें गिरवी रखीगयी है, तो रेहन कीमांग करने वालेके लिए रेहन सेबिल्कुल लाभ उठानाजाइज़ नहीं है,क्योंकिवह ऐसा क़र्ज़ है जो लाभको जन्म देता है,और हरवह क़र्ज़ जो लाभ को जन्मदे, वह विद्वानोंकी सर्व सहमति(इत्तिफाक़) से सूदहै।”

“फताव अल्लज्नाअद्दाईमा” (स्थायीसमिति के फत्वे14/176-177)

पाँचवां:

अगर रेहनसे लाभ उठाना उसके मालिक की अनुमतिके बिना है, या उसके मालिक ने अनुमतिदे दी है किन्तुउन दोनों के बीचजो उधार है वह क़र्ज़के रूप में है,जैसाकि इस का वर्णनहो चुका, या क़र्ज़की अदायगीकी अवधि में विलंबकरने के बदले मेंहै : तो इस ज़मीन कीफसल (उपज) से कुछभी लेना, या उस कीआय से कुछ भी लाभउठाना जाइज़ नहींहै।

और अगर रेहनमांगने वाले ने-जिस के हाथ मेंरेहन है- उस ज़मीनकी जोताई और खेतीकी है, तो उस की उपजऔर फल से वह उस कीजोताई और खेतीका किराया हिसाबकर के ले लेगा,और उसमें से जो कुछ बाक़ीबचेगा उसे वह उसके मालिक पर लौटादेगा या उस के क़र्ज़में सेकाट देगा।

और अल्लाहतआला ही सर्वश्रेष्ठज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर