हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
ये तरल पदार्थ और स्राव जो औरत से निकलते हैं विद्वान लोग इसे योनि की नमी (गीलापन) का नाम देते हैं। यह पारदर्शी स्राव होते हैं, कभी कभार महिला को इनके निकलने का एहसास नही होता है, और औरतें इस बारे में कमी व बेशी के एतिबार से भिन्न-भिन्न होती हैं।
उसके हुक्म के बारे में राजेह बात यह है कि वह पाक (पवित्र) है ; क्योंकि उस नमी के अशुद्ध होने पर कोई प्रमाण नहीं है।
इस आधार पर, उस कपड़े और शरीर को धोना अनिवार्य नहीं जिसमें यह तरल पदार्थ लग जाते हैं।
जहाँ तक उसके द्वारा वुज़ू टूटने के एतिबार से उसके हुक्म का संबंध है : तो इब्ने हज़्म रहिमहुल्लाह इस बात की ओर गए हैं कि यह नमी वुज़ू को नहीं तोड़ती है।
जबकि जम्हूर विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि यह वुज़ू को तोड़ देती है, सिवाय इसके कि वह औरत के साथ निरंतर बनी रहे, तो ऐसी अवस्था में वह हर नमाज़ के लिए उसका समय शुरू होने के बाद वुज़ू करेगी। इसके बाद तरल पदार्थ का निकलना उसे नुक़सान नहीं पहुँचायेगा। इस तरह ऐसी महिला का हुक्म, उज़्र वाले लोगों के हुक्म के समान है, जैसे वह व्यक्ति जिसे सलसुल-बौल (निरंतर पेशाब आने) की बीमारी है, तथा इस्तिहाज़ा वाली औरत और इनके समान अन्य लोग जिनकी नापाकी स्थायी होती है।
तथा कुछ लोग इस बात की ओर गए हैं कि निरंतर अपवित्रता (नापाकी) वाले के लिए हर नमाज़ के लिए वुज़ू करना ज़रूरी नहीं है। सिवाय इसके कि वह उस नापाकी जो उसके साथ निरंतर बनी हुई है, के अलावा किसी दूसरी नापाकी में मुब्तला हो जाय। इसके अलावा स्थितियों में उसके लिए वुज़ू करना मुस्तहब है, उसके ऊपर अनिवार्य नहीं है।
इब्ने अब्दुल बर्र फरमाते हैं : इमाम मालिक के निकट उसके ऊपर वुज़ू करना मुस्तहब है, अनिवार्य नहीं है . . .
वह कहते हैं : और जिन लोगों ने कहा है कि इस्तिहाज़ा वाली औरत पर वुज़ू वाजिब नहीं है उनमें : रबीअह, इकरिमा, मालिक, अययूब और एक समूह है।देखिए ''अत्-तमहीद'' (16/98), ''फत्हुल बारी ले-इब्ने रजब'' (2/73).
और यही कथन शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह का वह अंतिम चयन है जिस पर वह क़ायम रहे।
देखिए : ''अश्-शर्हुल मुम्ते अला ज़ादिल मुस्तक़्नेअ'' (1/503)
यहाँ तक कि अगर उसके द्वारा वुज़ू टूटने की बात को मान भी लिया जाए : तो अगर आप इस बात को नहीं जानती थीं कि इन तरल पदार्थों से वुज़ू टूट जाता है और आप कई नमाज़ें एक ही वुज़ू से पढ़ती थीं, तो राजेह कथन के अनुसार आपके ऊपर पिछली नमाज़ों को दोहराना अनिवार्य नहीं है; क्योंकि आप जानकारी न होने की वजह से क्षम्य (माज़ूर) हैं।
तथा प्रश्न संख्या (102504) का उत्तर देखें।
जहाँ तक भविष्य का संबंध है तो, इस मुद्दे में मतभेद से बचते हुए, आपका हर नमाज़ के लिए वुज़ू करना सबसे बेहतर है। अतः आदमी को इस तरह के मामलों में एहतियात (सावधानी) से काम लेना चाहिए। क्योंकि वुज़ू के अनिवार्य होने की बात कहने वालों के कथन के आधार पर : अगर ऐसा नहीं हुआ तो इबादत बातिल (अमान्य) हो जायेगी। तथा यहाँ तक कि जो लोग वुज़ू के अनिवार्य होने की बात नहीं करते हैं, वह भी इसे मुस्तहब समझते हैं।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।