हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
संपत्ति का प्रबंधन करने और उसे किराए पर देने का काम करना, किराए के एक प्रतिशत के बदले में या एक निश्चित राशि (एकमुश्त राशि) के बदले में, जायज़ है। यह एजेंसी (अभिकर्तृत्व) या ब्रोकरेज (दलाली) का एक अनुमेय अनुबंध है।
बुखारी रहिमहुल्लाह ने अपनी सहीह में फरमाया : “अध्याय : दलाली का पारिश्रमिक लेना। इब्ने सीरीन, अता, इब्राहीम और अल-हसन ब्रोकर (दलाल) को पारिश्रमिक देने में कुछ भी हर्ज नहीं समझते थे। इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने कहा : इसमें कोई हर्ज नहीं कि आदमी (किसी से) यह कहे : इस कपड़े को बेच दो और इतने पैसे से जो कुछ अधिक होगा, वह तुम्हारा है। इब्ने सीरीन ने कहा : यदि वह कहता है : इसे इतने में बेचो। और जो कुछ भी लाभ होता है वह तुम्हारा है, या वह तुम्हारे और मेरे बीच विभाजित हो जाएगा, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मुसलमान अपनी (निर्धारित की हुई) शर्तों पर क़ायम रहेंगे।” उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से किसी किराएदार के लिए दुकान या फ्लैट (अपार्टमेंट) तलाश करने के हुक्म के बारे में पूछा गया, जिसके बदले में वह (किराएदार) उस व्यक्ति को पारिश्रमिक भुगतान करेगा जिसने उसके अनुरोध को पूरा किया है।
तो उन्होंने उत्तर दिया : “इसमें कुछ भी हर्ज नहीं है। क्योंकि यह एक पारिश्रमिक है, जिसे प्रयत्न (दौड़-धूप) का शुल्क कहा जाता है। तथा आपको उस उपयुक्त दुकान को खोजने के लिए भरपूर प्रयास करना चाहिए जिसे वह व्यक्ति किराए पर लेना चाहता है। यदि आप इसमें उसकी मदद करते हैं और उसके लिए एक उपयुक्त जगह की तलाश करते हैं और उसकी मकान मालिक के साथ किराया पर समझौता करने में मदद करते हैं, तो इन शा अल्लाह इन सब चीज़ों में कुछ भी हर्ज नहीं है, लेकिन इस शर्त पर कि कोई विश्वासघात या धोखेबाजी नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे ईमानदारी और सच्चाई के साथ किया जाना चाहिए। यदि आप सच्चाई से काम लेते हैं और जो वह चाह रहा है उसे तलाश करने में ईमानदारी अपनाते हैं, उसके साथ या संपत्ति के मालिक के साथ धोखा या अन्याय नहीं करते हैं, तो इन शा अल्लाह आप अच्छाई पर क़ायम हैं।”
“फतावा अश-शैख इब्ने बाज़” (19/358) से उद्धरण समाप्त हुआ।
पारिश्रमिक का प्रतिशत होने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, क्योंकि इस मामले में (पारिश्रमिक की) अज्ञानता अंततः ज्ञात हो जाएगा और इससे कोई विवाद नहीं पैदा होगा।
“फतावा अल-लज्नह अद्-दाईमह” (13/131) में आया है : “दलाल (ब्रोकर) के लिए, अपनी दलाली के काम के बदले, उस क़ीमत का एक निश्चित (ज्ञात) प्रतिशत पारिश्रमिक लेना जायज़ है, जिस (मूल्य) पर सामान का सौदा तय हो जाता है। और वह उस राशि को, समझौते के अनुसार, विक्रेता या खरीदार से, बिना बोझ डाले या नुकसान के, वसूल करेगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
इस मध्यस्थता (दलाली) के लिए यह शर्त निर्धारित किया जाता है कि वह हराम (निषिद्ध) चीज़ पर मदद करना न हो, जैसे कि कोई अचल संपत्ति किसी सूदी बैंक को, या किसी ऐसे व्यक्ति को किराए पर देने में मध्यस्थता करना, जो ससे चर्च के रूप में या शराबख़ाना (बार) के रूप में उपयोग करेगा। क्योंकि पाप और अवज्ञा में किसी का सहयोग करना हराम है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَى وَلا تَعَاوَنُوا عَلَى الأِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ المائدة: 2
“नेकी और तक़्वा (धर्मपरायणता) के कामों में एक-दूसरे का सहयोग किया करो तथा पाप और अत्याचार में एक-दूसरे का सहयोग न करो, और अल्लाह से डरते रहो, नि:संदेह अल्लाह तआला कठोर यातना देनेवाला है।” (सूरतुल मायदा : 2)
तथा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिसने किसी मार्गदर्शन की ओर लोगों को आमंत्रित किया, तो उसे उसका पालन करनेवालों के समान अज्र व सवाब (पुण्य) मिलेगा, इससे उनके अज्र व सवाब में कुछ भी कमी नहीं होगी। और जिसने किसी पथभ्रष्टता की ओर आमंत्रित किया तो उसके ऊपर उसका पालन करनेवालों के समान पाप होगा, इससे उनके पापों में कुछ भी कमी नहीं होगी।'' इसे मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 4831) में रिवायत किया है।
दूसरी बात :
तथाकथित बंधक (रेहन) के माध्यम से घर या कुछ और खरीदना जायज़ नहीं है; क्योंकि यह एक स्पष्ट और घृणित रिबा (सूद, ब्याज) है। इसका वर्णन प्रश्न संख्या : (159213) के उत्तर में किया जा चुका है।
लेकिन जिस व्यक्ति ने इस सूदी ऋण के साथ घर खरीदा है : तो वह शरीयत के दृष्टकोण से उसका मालिक बन गया है, जबकि उसे उस सूद का पाप मिलेगा जिसमें वह लिप्त हुआ है। और उसपर अनिवार्य है कि उससे तौबा (पश्चाताप) करे। तथा उसके लिए उस घर से, उसमें रहकर या उसे किराए पर देकर या किसी अन्य चीज़ के द्वारा, लाभ उठाने की अनुमति है।
इसके आधार पर : आपके लिए, पहले से ही बंधक (रेहन) के माध्यम से खरीदी गई संपत्ति को किराए पर देने में मध्यस्थता करने में, कोई हर्ज (पाप) नहीं है। और यह तथ्य आपको कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा कि मालिक आपको आपका प्रतिशत सूदी क़र्ज़ का मासिक भुगतान करने के बाद ही देता है, जब तक कि आपने इस ऋण में भाग नहीं लिया है और इसमें मदद नहीं की है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।