हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति से भागने का आदेश दिया है, जैसा कि अहमद (हदीस संख्या : 9720) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “तुम कोढ़ी से उसी तरह भागो जिस तरह तुम शेर से भागते हो।” शुऐब अल-अरनऊत ने इसे अल-मुसनद की तहक़ीक़ में सहीह कहा है, और बुखारी ने अपनी सहीह में इसे मुअल्लक़ के रूप में रिवायत किया है। (मुअल्लक़ हदीस : वह है जिसकी संचरण की श्रृंखला के शुरू से एक या अधिक वर्णनकर्ता को हटा दिया गया हो।)
यह बीमारी और क्षति के कारणों से दूर रहने के अध्याय से है। क्योंकि कुष्ठ रोग कभी-कभी अल्लाह के हुक्म से एक स्वस्थ व्यक्ति को स्थानांतरित हो जाता है और कभी यह स्थानांतरित नहीं होता है। इसलिए एहतियात (सावधानी) इससे दूर रहना ही है।
इसीलिए फ़ुक़हा (धर्म शास्त्रियों) का फैसला यह है कि कुष्ठ रोगियों को स्वस्थ लोगों के साथ, उनकी अनुमति के बिना, घुलने-मिलने से रोका जाना चाहिए।
उन्होंने “कश्शाफुल क़िनाअ” (6/126) में कहा : “कुष्ठरोगियों के लिए सामान्य रूप से स्वस्थ लोगों के साथ घुलना-मिलना, या किसी निश्चित स्वस्थ व्यक्ति के साथ उसकी अनुमति के बिना घुलना-मिलना जायज़ नहीं है। तथा शासकों को चाहिए कि उन्हें स्वस्थ लोगों के साथ घुलने-मिलने से रोकें, इस प्रकार कि वे एक अलग-थलग जगह में रहें। और यदि शासक ऐसा करने से उपेक्षा करता है या कुष्ठरोगी इसे नहीं मानता है : तो वह दोषी (पापी) होगा। और यदि वह कर्तव्य (वाजिब) को, उसका ज्ञान रखने के बावजूद, छोड़ने पर अटल रहता है : तो वह अवज्ञाकारी है।” इसे (शैखुल इस्लाम ने) ने “अल-इख़्तियारात” में कहा है। तथा उन्होंने कहा : जैसा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके ख़ुलफा (उत्तराधिकारियों) की सुन्नत में वर्णित है, और जैसा कि विद्वानों ने उल्लेख किया है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
तथआ “अल-मौसूअतुल फ़िक़्हिय्यह” (15/131) में आया है : “मालिकिय्यह, शाफेइय्यह और हनाबिलह इस बात की ओर गए हैं कि : हदीस : “तुम कोढ़ी से उसी तरह भागो जिस तरह तुम शेर से भागते हो।” के आधार पर, ऐसा कोढ़ी जिससे लोगों को कष्ट और तकलीफ़ होती है, (उसे) स्वस्थ लोगों के साथ घुलने-मिलने और लोगों के साथ मिलने-बैठने से रोका जाएगा।”
तथा हनाबिलह ने कहा : किसी कोढ़ी के लिए एक स्वस्थ आदमी के साथ उसकी अनुमति के बिना घुलने-मिलने की अनुमति नहीं है। यदि स्वस्थ व्यक्ति किसी कुष्ठ रोगी को अपने साथ घुलने-मिलने की अनुमति प्रदान कर दे : तो उसके लिए ऐसा करना जायज़ है। क्योंकि हदीस में है : “प्राकृतिक रूप से कोई संक्रमण प्रभावी नहीं है, न कोई बुरा शकुन है।”
हमने इस मुद्दे में हनफिय्यह का कोई पाठ नहीं देखा।
अगर कुष्ठ रोगियों की संख्या अधिक हो जाए, तो अधिकांश लोगों का कहना है : उन्हें आदेश दिया जाएगा कि वे लोगों से अलग-थलग जगहों में रहें और उन्हें अपनी आवश्यकताओं के निपटान से नहीं रोका जाएगा।
तथा यह भी कहा गया है कि : अकेले रहना ज़रूरी नहीं है।
अगर किसी गाँव के लोगों को जिसमें कुष्ठ रोगी पाए जाते हैं, उनके साथ पानी निकालने में घुलने-मिलने की वजह से नुकसान पहुँचता है, तो अगर वे बिना किसी नुकसान के पानी खींचने में सक्षम हैं, तो उन्हें इसका आदेश दिया जाएगा, अन्यथा दूसरे लोग उनके लिए पानी निकालेंगे, या किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त कर देंगे, जो उनके लिए पानी निकालेगा। अन्यथा उन्हें इससे रोका नहीं जाएगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा : “शासक को चाहिए कि कुष्ठ रोगियों को स्वस्थ लोगों से अलग कर दे। अर्थात् उन्हें संगरोध (क्वारंटाइन) में रखे। और ऐसा करना अत्यावश्यक है और यह उनके साथ अन्याय नहीं है। बल्कि यह उनकी बुराई से बचने के अध्याय से है; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “तुम कोढ़ी से उसी तरह भागो जिस तरह तुम शेर से भागते हो।”
इस हदीस का प्रत्यक्ष अर्थ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : “प्राकृतिक रूप से कोई संक्रमण प्रभावी नहीं है, न कोई बुरा शकुन है।” के विरुद्ध है। और इसके बारे में कोई संदेह नहीं है। क्योंकि जब संक्रमण नहीं होता है, तो अगर हमारे बीच में कोढ़ी है, तो हमें उससे क्या नुकसान होगाॽ
लेकिन विद्वानों ने - अल्लाह उन पर दया करे – यह उत्तर दिया है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जिस संक्रमण (छूत) का इनकार किया है, यह वह संक्रमण है जो अज्ञानता (पूर्व-इस्लामिक) काल के लोगों का मानना था। उनका मानना था कि संक्रमण अनिवार्य रूप से होता है। यही कारण है कि जब देहाती आदमी ने कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर, कैसे कोई संक्रमण या छूत नहीं है, जबकि रेत में ऊँट हिरण की तरह होता है, - अर्थात उसमें कोई रोग नहीं होता है – फिर उसके पास खारिशज़दा ऊँट आता है, तो उसे भी ख़ारिशज़दा कर देता हैॽ! तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : पहले ऊँट को किसने संक्रमित कियाॽ
इसका उत्तर यह है कि : जिसने उसमें खुजली पैदा की है वह अल्लाह है। अतः जो संक्रमण खुजली वाले ऊँट से स्वस्थ ऊँटों तक संचरित हुआ है, वह (भी) सर्वशक्तिमान अल्लाह की आज्ञा से था। इसलिए सब अल्लाह के आदेश से होता है।
जहाँ तक आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान : “कोढ़ी से भागो।” का संबंध है, तो यह क्षति के कारणों से बचने का आदेश है; क्योंकि इस्लामी शरीयत मनुष्य को अपने आपको विनाश में डालने से रोकती है।
इसलिए यदि अल्लाह सर्वशक्तिमान पर भरोसा मज़बूत है, तो कुष्ठ रोगी के साथ घुलने-मिलने में कोई बुराई नहीं है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन एक कोढ़ी का हाथ पकड़ा और उससे कहा : “अल्लाह के नाम से खाओ।” [इसे अबू दाऊद और तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है], आपने उसे अपने साथ खाने में शामिल किया, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अल्लाह पर तवक्कुल (भरोसा) बहुत मज़बूत था। और यह कुष्ठ रोग संक्रमण में कितना भी प्रभावी हो, अगर अल्लाह उसे रोक दे, तो उसका संक्रमित होना संभव नहीं है।”
“अश-शर्हुल मुम्ते” (11/120) से उद्धरण समाप्त हुआ।
इसके द्वारा यह स्पष्ट हो गया कि जो व्यक्ति कोढ़ी के साथ मिश्रण करता है, असके लिए कोई आपत्ति की बात नहीं है, खासकर अगर उसका अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल) मज़बूत है, विशेष रूप से ऐसी परिस्थिति में जब ऐसा करने की ज़रूरत पड़ जाए, जैसे कि यदि कोढ़ी को उसकी जरूरत हो, जैसे डॉक्टर आदि, और जो उससे मिश्रण करता है, वह संक्रमण के मामले के लिए, संभावित चिकित्सा सुरक्षा के कारणों को अपनाकर, सावधानी बरते।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।