रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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औरत का महिलाओं के समूह में बिना महरम के हज्ज करना

प्रश्न

एक औरत कहती है : मैं सऊदी राज्य मे अपनें काम करने के कारण यहाँ निवास करती हूँ। मैं पिछले वर्ष हज्ज के लिए गई थी, और मेरे साथ मेरी दो सहेलियाँ भी थीं जबकि हमारे साथ कोई महरम (अर्थात् ऐसा पुरुष जिसके साथ उसका विवाह हमेशा के लिए हराम हो) नहीं था। तो इसका क्या हुक्म है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

शैख मुहम्मद इब्न उसैमीन -रहिमहुल्लाह- ने फरमाया : यह काम और वह बिना महरम के हज्ज करना है : इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस के आधार पर हराम है,उन्हों ने कहाः मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना जबकि आप भाषण दे रहे थे : “औरत महरम के साथ ही यात्रा करे।” तो एक आदमी खड़ा हुआ और फरमाया : ऐ अल्लाह के पैगंबर ! मेरी पत्नी हज्ज करने के लिए निकली है और मैं ने फलाँ युद्ध में जाने के लिए नाम लिखवा रखा है,तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जाओ अपनी पत्नी के साथ हज्ज करो।” इसे बुखारी (हदीस संख्या: 3006) और मुस्लिम (हदीस संख्या: 1341) ने रिवायत किया है।

अतः औरत के लिए बिना महरम के यात्रा करना जाइज़ नहीं है,और महरम: वह आदमी है जिस पर वह नसब के द्वारा या किसी वैध कारण के द्वारा हमेशा के लिए हराम और निषिद्ध है,तथा उसके अंदर इस बात की शर्त है कि वह बालिग और बुद्धिमान (समझदार) हो,चुनाँचे छोटा बच्चा महरम नहीं हो सकता है,तथा बुद्धिहीन व्यक्ति भी महरम नहीं हो सकता है,तथा महिला के साथ महरम के होने की तत्वदर्शिता (हिक्मत) उसकी सुरक्षा और रक्षा है ताकि जो लोग अल्लाह से भय नहीं रखते हैं और अल्लाह के बंदो पर दया नहीं करते हैं, उनकी ख्वाहिशें उनके साथ खिलवाड़ न करें।

तथा इस बात के बीच कोई अंतर नहीं है कि उसके साथ औरतें हैं या नहीं हैं,या वह सुरक्षित होगी या सुरक्षित नहीं होगी,यहाँ तक कि यदि वह अपने घर वालों की औरतों के साथ जाए और वर अतयंत सुरक्षा में हो,तब भी उसके लिए जाइज़ नहीं है कि वह बिना महरम के यात्रा करे,क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब आदमी को अपनी पत्नी के साथ हज्ज करने का आदेश दिया तो उस से यह नहीं पूछा कि उसके साथ अन्य औरतें होंगी या नहीं होंगी और क्या वह सुरक्षित होगी या नहीं,तो जब आप ने उसके बारे में पूछताछ नहीं कि तो इससे पता चला कि इसके बीच कोई अंतर नहीं है,और यही बात सही है।

हमारे वर्तमान समय में कुछ लोगों ने लापरवाही से काम लिया है और इस बात को जाइज़ ठहरा लिया है कि औरतें बिना महरम के हवाई जहाज़ में सफर करें,इसमें कोइ संदेह नहीं कि यह प्रत्यक्ष सामान्य प्रमाणों के विपरीत है,और हवाई जहाज़ के द्वारा सफर करना अन्य माध्यमों के समान ही है और खतरे से पीड़ित होने की संभावना है।

चुनांचे हवाई जहाज़ के द्वारा यात्रा करने वाली औरत को जब उसका महरम हवाई अड्डे पर रूख्सत कर देता है तो वह उसके मात्र प्रतीक्षा कक्ष में प्रवेश करते ही वापस लौट जाता है,और वह अकेले ही बिना महरम के होती है, और हवाई जहाज़ समय पर उड़ान भर सकता है और विलंब भी हो सकता है। तथा हो सकता है कि वह निर्धारित समय पर उडान भर ले लेकिन उसे कोई समस्या पेश आ जाए जिसके कारण उसे वापस लौटना पड़े,या वह जिस हवाई हड्डे के लिए उड़ान भरा है उसके अलावा किसी अन्य हवाई अड्डे पर उतरे,इसी प्रकार हो सकता है कि वह उसी हवाई अड्डे पर उतरे जिस की ओर वह जा रहा है परंतु किसी कारण निर्धारित समय के बाद उतरे,और यदि मान लिया जाये कि वह निर्धारित समय पर उतर गया तो हो सकता है कि वह महरम जो उसे लेने के लिए आ रहा है किसी कारण निर्धारित समय पर आने से विलंब हो जाए,चाहे नींद की वजह से या गाड़ियों की भीड़भाड़ के कारण,या उसकी गाड़ी में खराबी आ जाने से या इसके अलावा अन्य ज्ञात कारणों से,फिर यदि मान लिया जाए कि वह निर्धारित समय पर उपस्थित होता है और उसको ले लेता है तो जो व्यक्ति हवाई जहाज़ में उसके बगल में होगा हो सकता है कि वह ऐसा आदमी हो जो औरत के साथ छल करे और उस से उसका दिल लग जाए और औरत का दिल उसके साथ लग जाए।

सारांश यह है कि औरत को चाहिए कि अल्लाह तआला से भय रखे और डरे,अतः वह कोई भी यात्रा चाहे वह हज्ज की यात्रा हो या उसके अलावा अन्य यात्रा किसी महरम के साथ ही सफर करे जो बालिग और बु़द्धिमान हो। और अल्लाह तआला ही सहायक है।” अंत

स्रोत: संदर्भ के लिए : किताब दलीलुल अख्ता अल्लती यक़ओ फीहा अल-हाज्जो वल मोतमिरो।