हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।दाढ़ी को बढ़ाने के विषय में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन और कृत्य दोनों वर्णित है। चुनांचे अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दाढ़ी को बढ़ाने, उसे ज़्यादह करने और उसे पूरी तरह छोड़ देने का आदेश साबित है, बुखारी और मुस्लिम वगैहर ने अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मूंछों को बारीक करो और दाढ़ियों को बढ़ाओ।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 5443) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 600) ने रिवायत किया है। और एक रिवायत में है कि “मुशरिकों का विरोध करो, मूंछों को बारीक करो और दाढ़ियाँ बढ़ाओ।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 602) ने रिवायत किया है। तथा मुस्लिम (हदीस संख्या : 383) ने ही अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मूँछों को छाँटो और दाढ़ियाँ छोड़ दो, मजूसियों का विरोध करो।”
तथा स्थायी समिति के फतावा (5/136) में आया है कि :
तथा दाढ़ी को बढ़ाने का मतलब यह है कि उसे छोड़ दिया जाए काटा न जाए यहाँ तक कि वह बढ़ जाए अर्थात अधिक हो जाए। यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन में तरीक़ा था, जहाँ तक कृत्य में आपके तरीक़े का संबंध है तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित नहीं है कि आप ने अपनी दाढ़ी से कुछ काटा हो, रही बात उस हदीस की जिसे तिर्मिज़ी ने अम्र बिन शुऐब अन अबीही अन जद्दिही के तरीक़ से रिवायत किया है कि : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनदी दाढ़ी की लंबाई और चौड़ाई से काटते थे।” और तिर्मिज़ी ने कहा है कि यह हदीस (2912) गरीब है, तो इस हदीस की सनद में उमर बिन हारून हैं और वह मतरूक रावी हैं जैसाकि हाफिज़ इब्ने हजर ने अत्तक़रीब में कहा है। इस से पता चलता है कि यह हदीस सही नहीं है और इसके द्वारा उन सही हदीसों के खिलाफ हुज्जत क़ायम नहीं हो सकती है जो दाढ़ी बढ़ाने, उसे अधिक करने और छोड़ देने की अनिवार्यता पर तर्क स्थापित करती हैं। जहाँ तक कुछ लोगों की बात है जो दाढ़ी को मूँडते या उसकी लंबाई या चौड़ाई में से कुछ काटते हैं तो यह जाइज़ नहीं है, क्योंकि यह रसूल सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम के तरीक़े और उसे बढ़ाने के आदेश के खिलाफ है। और आदेश अनिवार्यता की अपेक्षा करता है यहाँ तक कि उसे उसके असल से फेरने वाली कोई दलील आ जाए और हम कोई चीज़ नहीं जानते हैं जा उसे इससे फेरने वाली हो।” अंत हुआ।
शैख मुहम्मद अल-उसैमीन - रहिमहुल्लाह- ने फरमाया : दाढ़ी काटना नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उस आदेश के विपरीत है जिसका आप ने अपने इस कथन में हुक्म दिया है: ‘‘दाढ़ी को अधिक करो।” , “दाढ़ी बढ़ाओ” , “दाढ़ी को छोड़ दो” अतः जो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आदेश का पालन करना, और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीक़े का अनुसरण करना चाहता है, वह उसमें से कोई चीज़ न काटे, क्योंकि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा यह है कि आप अपनी दाढ़ी से कोई चीज़ नहीं काटते थे, इसी तरह आप से पूर्व ईश्दूतों का भी यही तरीक़ा थ।
फतावा इब्ने उसैमीन (11/126)
कुछ विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि एक मुट्ठी से अधिक दाढ़ी को काटना जाइज़ है, उन्हों ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा के कृत्य से दलील पकड़ी है, चुनाँचे बुखारी (हदीस संख्या : 5892) ने रिवायत किया है: ‘‘इब्ने उमर जब हज्ज या उम्रा करते तो अपनी दाढ़ी को पकड़ते और जो उससे अधिक होती उसे काट देते थे।” शैख इब्ने बाज़ ने फरमाया : जिसने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा के कृत्य से दलील पकड़ी है कि वह हज्ज में एक मुट्ठी से अधिक दाढ़ी को काटते थे। तो इसके अंदर कोई प्रमाण नहीं है, क्योंकि यह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा का इजतिहाद है, और दलील उनकी रिवायत में है उनके इजतिहाद में नहीं है। और विद्वानों ने इस बात को स्पष्टता के साथ वर्णन किया है कि सहाबा और उनके बाद के रावी की रिवायत जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित है, वही हुज्जत और प्रमाण है, और वह उसकी राय पर प्राथमिकता रखती है यदि वह सुन्नत के विपरीत है।
फतावा व मक़ालात शैख इब्ने बाज़ : (8/370)
तथा शैख अब्दुर्रहमान बिन क़ासिम अपनी पुस्तिका “तहरीम हल्क़िल लुहा” पृष्ठ : 11 में फरमाया : “कुछ विद्वानों ने इब्ने उमर की कृत्य के कारण एक मुट्ठी से अधिक दाढ़ी को काटने की रूख्सत दी है, जबकि अधिकतर विद्वान उसे नापंसद करते हैं, और यही बात पिछली दलीलों के कारण सबसे प्रत्यक्ष और स्पष्ट है। नववी ने कहा : पसंदीदा यह है कि उसे उसकी हालत पर – वैसै ही - छोड़ दिया जाये, और उसे कुछ भी न काटा जाये . . . तथा अद्दुर्रूल मुख्तार में फरमाया : जहाँ तक एक मुट्ठी से छोटी दाढ़ी से काटने का हुक्म है तो इसे किसी ने जाइज़ नहीं ठहराया है।” संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।