रविवार 23 जुमादा-1 1446 - 24 नवंबर 2024
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जिसने एहराम की हालत में निषिद्ध कामों में से कोई निषिद्ध काम इस बात को न जानते हुए कर लिए कि उस पर क्या निष्कर्षित होता है

प्रश्न

जिसने एहराम की हालत में निषिद्ध चीज़ों में से कोई निषिद्ध काम कर लिया, जबकि वह इस बात से अनभिज्ञ है कि यदि उसने उस निषिद्ध काम को कर लिया तो उसके ऊपर क्या कफ्फारा अनिवार्य है ॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

यहाँ पर हमारे लिए यह चेतावनी देना उचित है कि बहुत से हाजियों और उम्रा करने वालों का हज्ज के अहकाम (नियमों और प्रावधानों) से अनभिज्ञ होना ही उन्हें एहराम की हालत में निषिद्ध चीज़ों को करने, या इबादत को आकांक्षित तरीक़ के अलावा तरीक़े पर अंजाम देने का कारण बनता है ; चुनांचे आप उनमें से एक व्यक्ति को देखते हैं कि उसने बहुता सा धन खर्च किया होता है, विशेषकर यदि वह दूर के देशों से आया है, फिर उसने अपने पुण्य को नष्ट कर दिया, या उसके ऊपर जो अहकाम अनिवार्य हैं उनसे अनभिज्ञ होने के कारण उसमें कमी कर दी।

इसी लिए उस व्यक्ति पर जो हज्ज करना चाहता है उसे शुरू करने से पूर्व उसके अहकाम सीखना अनिवार्य है। तथा अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से आया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ज्ञान अर्जित करना प्रत्येक मुसलमान पर अनिवार्य है।” इसे इब्न माजा वगैरह ने रिवायत किया है और अल्बानी ने 'मुश्किलतुल फक्ऱ' की तख्रीज में इसे सही कहा है। इमाम अहमद ने फरमाया : इसका अर्थ यह है कि उसे जिस चीज़ की ज़रूरत है जैसे वुज़ू, नमाज़, ज़कात उसकी जानकारी प्राप्त करना अनिवार्य है, यदि उसके पास धन है, इसी तरह हज्ज वगैरह भी है। इब्न अब्दुल बर्र की किताब “जामिओ बयानिल इल्म” 1/52.

तथा हसन बिन शक़ीक़ ने फरमाया : मैं ने अब्दुल्लाह बिन मुबारक से पूछा : लोगों पर किसी चीज़ का ज्ञान सीखना अनिवार्य है ॽ तो उन्हों ने कहा : आदमी किसी भी चीज़ के लिए बिना ज्ञान के क़दम न बढ़ाए ; वह प्रश्न करे और सीखे। तो लोगों पर इसी ज्ञान को सीखना अनिवार्य है . . अल-फक़ीह वल मुतफक़्क़िह लिल-बग़दादी /45.

तथा इमाम बुखारी ने अपनी सहीह में यह शीर्षक लगाया है: (कहने और करने से पूर्व ज्ञान का अध्याय).

इसका मतलब यह नहीं है कि हर व्यक्ति के ऊपर हज्ज के बारे में एक किताब को कंठस्थ करना अनिवार्य है, बल्कि प्रति मुसलमान पर अनिवार्य यह है कि वह इस में से जो उसकी स्थिति के अनुसार हो उसे स्वयं सीख ले यदि उसके पास इसकी योग्यता है या ज्ञानियों से प्रश्न करके, या ऐसे व्यक्ति की संगत अपनाए जो उसे हज्ज के अहकाम का मार्गदर्शन कर सकता हो और क्या चीज़ उसके ऊपर वाजिब है आवश्यकता पड़ने पर उससे अवगत करा सकता हो।

रही बात एहराम की हालत में निषिद्ध चीज़ों की तो इसका वर्णन प्रश्न संख्या (11356) में गुज़र चुका है।

लेकिन जिस व्यक्ति ने एहराम की हालत में निषिद्ध चीज़ों में से कोई निषिद्ध चीज़ इस कारण कर लिया कि वह इस बात से अनभिज्ञ था कि अल्लाह तआला ने उसके ऊपर उसे एहराम की हालत में हराम ठहराया है तो उसके ऊपर कोई चीज़ नहीं है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

وليس عليكم جناح فيما أخطأتم به ولكن ما تعمّدت قلوبكم وَكَانَ اللَّهُ غَفُوراً رَحِيماً [ الأحزاب : 5 ]

“तुम से भूल चूक से जो कुछ हो जाये उसमें तुम पर कोई पाप नहीं,परन्तु पाप वह है जिसका तुम दिल से निश्चय करो, और अल्लाह तआला क्षमा करने वाला बड़ा दयालू है।” (सूरतुल अहज़ाब : 5)

लेकिन यदि उसे पता था कि वह काम जिसे उसने किया है वह एहराम की हालत में निषिद्ध चीज़ों में से है जिसे उसके लिए करना हराम है जबतक कि वह एहराम की हालत में है, किंतु उसे यह गुमान नहीं था कि उस पर ये सभी अहकाम निष्कर्षित होने वाले हैं, तो शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“यह कोई उज़्र (बहाना) नहीं है ; क्योंकि उज़्र यह है कि मनुष्य आदेश से अनभिज्ञ हो, उसे पता न हो कि यह चीज़ हराम है, किंतु उसके करने पर निप्कर्षित होने वाले परिणाम से अनभिज्ञ होना कोई उज़्र नहीं है, इसीलिए यदि कोई विवाहित आदमी यह जानता हो कि व्यभिचार हराम है, और वह बालिग और बुद्धि वाला है, और उसके हक़ में पवित्रता की शर्तें पूरी तरह पाई जाती हैं, तो उसके ऊपर संगसार करना अनिवार्य है, भले ही वह कहे कि : मुझे पता नहीं था कि उसकी सज़ा संगसार करना है, और यदि मुझे पता होता कि उसकी सज़ा संगसार है तो मैं ऐसा नहीं करता। अतः हम कहेंगे कि यह कोई उज़्र नहीं है, तुम्हारे ऊपर संगसार अनिवार्य है, यद्यपि तुम्हें पता नहीं था कि व्यभिचार की सज़ा क्या है। इसीलिए जब वह आदमी जिसने रमज़ान के दिन में संभोग कर लिया था अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से फत्वा पूछने के लिए आया कि उसके ऊपर क्या अनिवार्य है, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसके ऊपर कफ्फारा को अनिवार्य कर दिया, जबकि वह संभोग करने के समय इस बात से अनभिज्ञ था कि उसके ऊपर क्या अनिवार्य है। तो इस से पता चला कि मनुष्य ने अगर अल्लाह की अवज्ञा पर साहस कर लिया है और उसकी हराम की हुए चीज़ों की पवित्रता को भंग कर दिया है, तो उसके ऊपर उसकी नाफरमानी के प्रभाव निष्कर्षित होंगे, यद्यपि उसे उसको करते समय उसके प्रभाव (परिणाम) की जानकारी नहीं थी।” अल-फतावा 22/173-174.

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर