शनिवार 22 जुमादा-1 1446 - 23 नवंबर 2024
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सामूहिक नमाज़ दो लोगों : इमाम और एक मुक़तदी द्वारा आयोजित हो जाती है।

प्रश्न

अगर घर में दो आदमी हैं, तो क्या यह संख्या सामूहिक नमाज़ अदा करने के लिए पर्याप्त है; इस प्रकार कि उनमें से एक इमाम और दूसरा मुक़्तदी (अनुयायी) हो जाएॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

जी हाँ, सामूहिक नमाज़ आयोजित करने के लिए दो आदमी पर्याप्त हैं; एक इमाम और दूसरा मुक़्तदी, चाहे यह घर में हो या कहीं और। इमाम बुखारी रहिमहुल्लाह ने कहा : “अध्याय : दो या दो से अधिक लोग एक समूह हैं।” फिर उन्होंने उसमें मालिक बिन अल-हुवैरिस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस वर्णन की है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब नमाज़ का समय हो जाए,  तो तुम दोनो अज़ान दो और इक़ामत कहो, फिर तुम दोनों में से जो सबसे बड़ा हो, वह तुम्हारी इमामत कराए।” (सहीह बुखारी, हदीस संख्या : 658)

हाफ़िज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने कहा : उनका यह कहना : “अध्याय : दो या दो से अधिक लोग एक समूह हैं।” यह शीर्षक एक हदीस का शब्द है, जिसे कमज़ोर इस्नाद (कथावाचकों की अप्रामाणिक श्रृंखलाओं) के माध्यम से वर्णित किया गया है, ... “(जिसमें कहा गया है कि) नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक व्यक्ति को अकेले नमाज़ पढ़ते हुए देखा, तो फरमाया : “क्या कोई व्यक्ति नहीं है जो इस आदमी पर दान करे और इसके साथ नमाज़ पढ़े?” चुनाँचे एक आदमी खड़ा हुआ और उसने उसके साथ नमाज़ पढ़ी। इसपर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ये दोनों एक जमाअत (समूह) हैं।”

यह उल्लिखित कहानी हदीस के शब्द : ”ये दोनों एक जमाअत हैं" के बिना, अबू दाऊद और तिर्मिज़ी में एक अन्य प्रामाणिक इस्नाद (श्रृंखला) के साथ वर्णित है।

हाफ़िज़ इब्ने हजर ने यह भी कहा :

"इस (यानी मालिक बिन अल-हुवैरिस की) हदीस से इस बात पर तर्क स्थापित किया गया है कि सबसे छोटी जमाअत इमाम और एक मुक़्तदी पर आधारित होती है, और यह इससे अधिक सामान्य है कि मुक़्तदी एक पुरुष है, या एक लड़का या एक महिला।” उद्धरण समाप्त हुआ।

इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने अबू दाऊद (554) की जिस हदीस की ओर संकेत किया है और उसे सहीह कहा है, उसके शब्द इस प्रकार हैं : अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ने एक व्यक्ति को अकेले नमाज़ पढ़ते हुए देखा, तो फरमाया : “कोई व्यक्ति इसपर दान क्यों नहीं करता, कि उसके साथ नमाज़ पढ़ेॽ” इसे अलबानी ने “सहीह अल-जामे'” (हदीस संख्या : 2652) में सहीह कहा है।

“औनुल-मा'बूद” में कहा गया है : “ताकि वह जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने का सवाब प्राप्त कर सके, तो यह ऐसा होगा कि मानो उसने उसे दान दिया है।”

उबैय बिन का'ब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “… एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ नमाज़ पढ़ना अकेले नमाज़ पढ़ने से बेहतर है, और एक व्यक्ति का दो व्यक्तियों के साथ नमाज़ पढ़ना एक व्यक्ति के साथ नमाज़ पढ़ने से बेहतर है। और जितने वे अधिक लोग होंगे, वह अल्लाह को उतना ही अधिक प्रिय है।” इसे नसाई (हदीस संख्या : 843) और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 554) ने रिवायत किया है तथा अलबानी ने “सहीह अल-जामि'” (हदीस संख्या : 2242) में इसे सहीह कहा है।

लेकिन यह ज्ञात होना चाहिए कि पुरुष पर अनिवार्य यह है कि वह नमाज़ को जमाअत के साथ मस्जिद में अदा करे, तथा उसके लिए बिना किसी उज़्र (बहाने) के फर्ज़ (अनिवार्य) नमाज़ को घर पर पढ़ना जायज़ नहीं है, चाहे जमाअत के साथ हो या अकेले।

स्थायी समिति से पूछा गया : क्या दो लोगों का एक साथ नमाज़ अदा करना जमाअत हैं या नहीं?

तो उसने उत्तर दिया :

“दो या दो से अधिक लोगों का एक साथ नमाज़ अदा करना जमाअत (सामूहिक नमाज़) है। लेकिन जितनी अधिक संख्या होगी, उतना ही अधिक सवाब मिलेगा। हालाँकि, नमाज़ को जमाअत के साथ मस्जिद में अदा करना चाहिए।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“फ़तावा अल-लजना अद-दाईमा” (7/289)

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से उन लोगों के बारे में पूछा गया जो घर पर सामूहिक रूप से नमाज़ अदा करते हैं, तो उन्होंने कहा :

“हम इन लोगों को अल्लाह से डरने और मस्जिदों में मुसलमानों के साथ जमाअत में नमाज़ पढ़ने की सलाह देते हैं, क्योंकि इस मामले में विद्वानों की सबसे सही राय यह है कि जमाअत की नमाज़ मस्जिदों में पढ़ना अनिवार्य है, सिवाय इसके कि कोई उज़्र (बहाना) हो; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “निश्चय मैंने इरादा किया था कि नमाज़ आयोजित करने का आदेश दूँ, फिर किसी आदमी को आदेश करूँ कि वह लोगों को नमाज़ पढ़ाए, फिर मैं अपने साथ कुछ ऐसे लोगों को लेकर, जिनके पास लकड़ियों के गट्ठर हों, उन लोगों के पास जाऊँ जो जमाअत की नमाज़ में उपस्थित नहीं होते हैं, और उनके घरों को उनपर आग से जला दूँ।” देखें : (बुखारी, हदीस संख्या : 644 और मुस्लिम, हदीस संख्या : 651)

ये लोग हो सकता है कि अपने स्थानों पर जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ रहे हों, लेकिन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम चाहते थे कि वे उस जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ें जो शरीयत के द्वारा नियुक्त की गई है। और जिस जमाअत को शरीयत ने नियुक्त किया है वे लोग हैं जो मस्जिदों में नमाज़ पढ़ते हैं, वे मस्जिदें जिनमें लोगों को नमाज़ के समय उपस्थित होने के लिए बुलाया जाता है। इसीलिए अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : “जिस व्यक्ति को यह पसंद है कि वह कल (क़ियामत के दिन) एक मुसलमान के रूप में अल्लाह से मिले, तो उसे इन नमाजों को नियमित रूप से वहाँ पढ़ना चाहिए जहाँ उनके लिए बुलाया जाता है।” उन्होंने कहा : “जहाँ उनके लिए बुलाया जाता है।” और “जहाँ” का शब्द स्थान को संदर्भित करता है, जिसका अर्थ यह है कि उन्हें उस स्थान पर पढ़ना चाहिए जिस स्थान पर उनके लिए बुलाया जाता है (यानी अज़ान दी जाती है।)” उद्धरण समाप्त हुआ।

“फतावा अश-शैख इब्ने उसैमीन” (15/19)

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर