हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
फुक़हा (धर्म-शास्त्रियों) ने रमज़ान का नया चाँद देखने में औरत की गवाही स्वीकार करने के बारे में दो कथनों पर मतभेद किया है :
प्रथम : उसकी गवाही स्वीकार की जाएगी, यही हनफिय्या का मत है - यदि वातावरण मेघाच्छादित है - तथा हनाबिला का मत और शाफेइय्या के निकट दो रूपों में से एक है।
दूसरा कथन : उसकी गवाही स्वीकार नहीं की जायेगी, यही मालिकिय्या का मत और शाफिइय्या का सबसे सही मत है।
इब्ने क़ुदामा ‘‘अल-मुगनी’’ (3/48) में कहते हैं : ''यदि सूचना देनेवाली महिला है, तो हंबली मत का क़ियास यह है कि उसकी गवाही स्वीकार की जायेगी। यही अबू हनीफा का कथन और शाफेइ के अनुयायियों के दो विचारों में से एक है। क्योंकि यह एक धार्मिक सूचना है। अतः यह हदीस की रिवायत, और क़िब्ला तथा नमाज़ के समय के दाखिल होने (आरंभ होने) के बारे में सूचना देने के समान है। तथा इस बात की भी संभावना है कि उसकी गवाही स्वीकार नहीं की जायेगी ; क्योंकि यह चाँद के देखने की गवाही है, सो उसके बारे में औरत की बात स्वीकार नहीं की जायेगी, जिस तरह की शव्वाल के चाँद के बारे में उसकी गवाही स्वीकार नहीं की जाती।'' अंत हुआ।
तथा देखिए : ‘‘तब-ईनुल हक़ाइक़’’ (1/319), ‘‘अत्ताज वल इक्लील’’ (3/278), ‘‘अल-मजमूअ’’ (6/286), ‘‘कश्शाफुइ क़िनाअ’’ (2/304).
हनफिय्या ने बादल छाए रहने की स्थिति और मौसम साफ होने की स्थिति के बीच अंतर किया है। चुनाँचे बादल छाए रहने की स्थिति में दो आदमियों या एक आदमी और दो औरतों की गवाही पर्याप्त है। जबकि मौसम साफ होने की हालत में (चाँद के देखे जाने की) खबर का आम होना ज़रूरी है। देखिए : ‘‘अल-बहरुर्रायिक़’’ (2/290).
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं : ‘‘कुछ विद्वानों का कथन है : महिला की गवाही न रमज़ान के बारे में स्वीकार की जायेगी और न ही उसके अलावा चीज़ों में ; क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में जिसने चाँद देखा वह पुरूष ही था, तथा इसलिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है : ''यदि दो गवाही देने वाले गवाही दें, तो रोज़ा रखो और रोज़ा तोड़ो।'' और औरत गवाही देने वाली है, वह गवाही देने वाला नहीं है।
हंबली मत का तर्क यह है कि : यह एक धार्मि सूचना है जिसमें पुरूष और महिला बराबर और एकसमान हैं, जिस तरह की हदीस की रिवायत के बारे में पुरूष और स्त्री बराबर होते हैं। और रिवायत एक धार्मिक सूचना है। इसीलिए उन्हों ने रमज़ान के चाँद के देखने के लिए उसका हाकिम (शासक) के पास प्रमाणित होने की शर्त नहीं लगाई है, और न तो शहादत (गवाही) के शब्द की शर्त लगाई है। बल्कि उन्हों ने कहा है कि : यदि वह किसी भरोसेमंद (विश्वासनीय) व्यक्ति को सुने कि वह अपनी बैठक में लोगों से बात कर रहा है कि उसने चाँद देखा है तो उसके लिए अनिवार्य है कि वह उसकी सूचना के आधार पर रोज़ा रखे।’’
‘‘अश्शरहुल मुम्ते’’ (6/326) से अंत हुआ।
जहाँ तक शव्वाल के चाँद का मामला है तो वह दो पुरूषों की गवाही से ही प्रमाणित होगा।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।