हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
उत्तर :हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
सर्व प्रथम :
तवाफ के सही होने की शर्तों में से चक्करों के बीच मवालात (निरंतरता) का होना है, अर्थात वह एक के बाद एक सात चक्कर इस तरह तवाफ करे कि उनके बीच लंबा अंतराल न हो।
देखिए: ‘‘अल-मुग्नी’’ (5/248).
अतः यदि उसने दो चक्कर तवाफ किया फिर - उदाहरण के तौर पर - अपने दोस्त को तलाश करने के लिए तवाफ को एक घंटा बंद कर दिया, या उसके साथ बैठकर बात करने लगा, तो उसका तवाफ बातिल (अमान्य) हो गया और उसके ऊपर नये सिरे से तवाफ शुरू करना अनिवार्य है। लेकिन यदि अंतराल थोड़ा है जैसे कि एक मिनट और उसके समान तो वह तवाफ को नहीं काटेगा। तथा विद्वानों ने इस बात की रूख्सत दी है कि यदि जनाजा उपस्थित हो जाए या नमाज़ खड़ी हो जाए तो वह नमाज़ पढ़ ले फिर तवाफ मुकम्मल करे और उसे नये सिरे न शुरू करे।
‘‘अल-मौसूअतुल फिक्हिय्या’’ (8/213) में आया है कि :
''फुक़हा इस बात पर सहमत हैं कि यदि उसने तवाफ शुरू कर दिया फिर फर्ज़ नमाज़ की जमाअत खड़ी हो गई, तो वह तवाफ को बंद कर देगा, और जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ेगा, फिर अपने तवाफ को मुकम्मल करेगा, क्योंकि वह एक धर्मसंगत काम है। अतः वह तवाफ को नहीं काटेगा, थोड़े काम के समान।
तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
‘‘तवाफ के चक्करों के बीच मवालात (निरंतरता) का होना एक शर्त है जिसका पाया जाना ज़रूरी है, लेकिन कुछ विद्वानों ने नमाज़ जनाज़ा या थकावट के लिए रूख्सत दी है, फिर वह थोड़ा आराम करके तवाफ को जारी रखे, और इसके समान चीज़ें।’’
‘‘मजमूओ फतावा व रसाइल अल-उसैमीन’’ (22/296) से समाप्त हुआ।
तथा उन्हों ने यह भी कहा :
‘‘तवाफ और सई में मवालात (अर्थात निरंतरता) शर्त है, और वह चक्करों का एक दूसरे के पीछे और लगातार होना है। यदि उन दोनों के बीच लंबा अंतराल हो जाए तो पहले के चक्कर बातिल (अमान्य) हो जायेंगे, और उसके ऊपर नये सिरे से तवाफ करना अनिवार्य है, लेकिन यदि अंतराल छोटा है जैसे कि वह दो या तीन मिनट के लिए बैठ गया फिर उठकर तवाफ पूरा किया तो कोई हानि (आपत्ति) की बात नहीं है। लेकिन जहाँ तक एक घंटा और दो घंटा की बात है तो वे लंबे अंतराल में से हैं जिसके लिए तवाफ को लौटाना अनिवार्य है।''
‘‘अल्लिक़ा अश्शह्री (मासिक बैठक)’’ (16/22) (मकतबा शामिला की नंबरिंग के साथ) से समाप्त हुआ।
तथा शैख रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
यदि किसी मनुष्य ने चार चक्कर तवाफ किया फिर नमाज़ या भीड़ की वजह से तवाफ को बंद कर दिया, फिर उसके बाद उसे पच्चीस मिनट के अंतराल के बाद पूरा किया तो इस तवाफ का क्य हुक्म है?
तो उन्हो ने उत्तर दिया:
यह तवाफ उसके हिस्सों के बीच लंबे अंतराल की वजह से कट गया (अर्थात उसकी निरंतरता समाप्त हो गई) ; क्योंकि यदि उसने नमाज़ की वजह से उसे बंद किया है तो उसकी अवधि थोड़ी होगी, नमाज़ में केवल दस मिनट या पंद्रह मिनट या इसी जैसा समय लगता है। रही बात पच्चीस मिनट की तो यह लंबा अंतराल है, जो उसके कुछ हिस्से को दूसरे पर आधारित करना बातिल (अमान्य) कर देता है।इस बुनियाद पर, वह अपने तवाफ को दोहराएगा ताकि उसका तवाफ सही हो सके। क्योंकि तवाफ एक ही इबादत है, इसलिए उसके हिस्सों को इस तरह अलग अलग करना संभव नहीं है कि वे एक दूसरे से पच्चीस मिनट या उससे अधिक अलग हों।
‘‘मजमूओ फतावा व रसाइल अल-उसैमीऩ’’ (22/296) से समाप्त हुआ।
तथा शैख इब्ने जिब्रीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
हम ने तवाफे इफाज़ा किया, और जब हम ने तवाफ का पहला चक्कर शुरू किया तो उसे पूरा किया। भीड़ बहुत सख्त थी तो हम दूसरी मंज़िल पर चढ़ गए, और वहाँ तवाफ पूरा किया, फिर हम अधिक भीड़ की वजह से तवाफ मुकम्मल करने में सक्षम न हो सके, तो हम छत पर चढ़ गए और बाक़ी चक्कर छत पर पूरा किए। तो क्या इस रूप में हमारा तवाफ सही है, या हमारे ऊपर उसे लौटाना अनिवार्य है?
तो उन्हों ने उत्तर दिया :
‘‘सही है, और आप लोग माज़ूर (क्षम्य) हैं, आप लोगों के लिए बेहतर यही था कि आँगन में भीड़ पर सब्र करते, लेकिन चूँकि आप लोगों को कष्ट का सामना हुआ, और आप लोग दूसरी मंज़िल पर चढ़ गए और उस पर एक दो चक्कर तवाफ किये, फिर आप लोग उसे पूरा न कर सके तो ऊपरी छत पर चढ़ गए, तो इन सब में आप माज़ूर (क्षम्य) हैं।
शैख की साइट से समाप्त हुआ।
http://ibn-jebreen.com/books/8-224-8815-7689-3317.htm
दूसरा :
जमहूर विद्वानों के निकट तवाफ के सही होने की शर्तां में से : अपवित्रता से पावित्र होना है, सो जब तवाफ करने वाले का वुज़ू टूट गया, तो उसका तवाफ बातिल (व्यर्थ) हो जायेगा - इस कथन के अनुसार - और उसके लिए ज़रूरी है कि वह वुज़ू करे और तवाफ को लौटाए। जबकि इस मसअले में मतभेद है जिसका फत्वा संख्या (34695) में उल्लेख हो चुका है।
तीसराः
खाना, पीना, नींद और बात-चीत तवाफ को नहीं काटते हैं।
इमाम नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया
‘‘उसके लिए (तवाफ करनेवाले के लिए) तवाफ में खाना पीनाः मक्रूह (नापसंदीदा) है, और पीने की कराहत व नापसंदीदगी हल्की है, और उन दोनों में से किसी एक से या एकसाथ दोनों से तवाफ बातिल नहीं होगा।
इमाम शाफई कहते हैं :
तवाफ के अंदर पानी पीने में कोई हरज की बात नहीं है, और न तो मैं उसे नापसंद करता हूँ - अर्थात् उसमें गुनाह नहीं है -लेकिन मैं उसे छोड़ देना पसंद करता हूँ, क्योंकि उसको छोड़ देना शिष्टाचार के तौर पर बेहतर है।’’
''अल-मजमूअ'' (8/46) से समाप्त हुआ।
तथा उन्हों ने यह भी कहा :
‘‘यदि वह तवाफ में या उसके कुछ हिस्से में इस तरीक़े से सो गया कि उसका वुज़ू नहीं टूटा तो उसका तवाफ नहीं कटेगा . . .अतः इस सूरत में सहीह बात उसके तवाफ का सही होना है।’’
''अल-मजमूअ'' (8/16) से समाप्त हुआ।
खतीब शर्बीनी कहते हैं :
‘‘यदि वह तवाफ के अंदर ऐसी कैफियत पर सो गया जो वुज़ू को नहीं तोड़ती है तो उसका तवाफ नहीं कटेगा।’’
''मुग्नी अल-मुहताज'' (2/244) से समाप्त हुआ।
तथा नींद को इस बात से मुक़ैयिद करना कि वह वुज़ू को तोड़नेवाला न हो वह उसके बारे में विद्वानों के मतभेद पर आधारित है जिसकी ओर संकेत किया जा चुका है : और वह यह है कि क्या तवाफ के सही होने के लिए नापाकी (अपवित्रता) से पवित्र होने की शर्त लगाई जायेगी?
तथा शैख सालेह अल फौज़ान हफिज़हुललाह ने फरमाया :
‘‘तवाफ की हालत में बात करना जायज़ है, लेकिन बेहतर यह है कि वह मुसलमान जो अल्लाह के घर का तवाफ कर रहा है, इबादत, ज़िक्र, और दुआ में व्यस्त हो, बात चीत में न लगे, क्योंकि बात चीत में व्यस्त होना बेहतरी और श्रेष्ठता के विरूद्ध है, लेकिन वह तवाफ के सही होने को प्रभावित नहीं करेगा, जायज़ बात चीत तवाफ की शुद्धता पर प्रभाव नहीं डालती है, अगरचे वह उत्तमता के खिलाफ है।’’
‘‘मजमूओ फतावा शैख सालेह बिन फौज़ान’’ (2/485) से समाप्त हुआ।