गुरुवार 27 जुमादा-1 1446 - 28 नवंबर 2024
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हदीस : ''जिसने हज्ज किया और अश्लीलता से उपेक्षा किया ...'' का अर्थ

प्रश्न

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : ''जिसने हज्ज किया और (उसके दौरान) अश्लीलता से उपेक्षा किया और अवज्ञा व पाप नहीं किया तो वह अपने गुनाहों से उस दिन की तरह लौटता है जिस दिन उसकी माँ ने उसे जना था।'' का अर्थ क्या है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

इस हदीसे को बुखारी (हदीस संख्या : 1521) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1350) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘जिसने हज्ज किया और अश्लीलता से उपेक्षा किया और अवज्ञा व पाप नहीं किया तो वह उस तरह लौटता है जैसे उसकी माँ ने उसे जना था।''

और तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 811) की एक रिवायत में है कि : ‘‘उसके पिछले गुनाह क्षमा कर दिए जायेंगे।'' इसे अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।

और यह हदीस अल्लाह तआला के इस कथन के समान है :

الْحَجُّ أَشْهُرٌ مَّعْلُومَاتٌ فَمَن فَرَضَ فِيهِنَّ الْحَجَّ فَلاَ رَفَثَ وَلاَ فُسُوقَ وَلاَ جِدَالَ فِي الْحَجِّ [سورة البقرة : 197]

''हज्ज के कुछ जाने पहचाने महीने हैं, अतः जिसने इन महीनों में हज्ज को फर्ज़ कर लिया, तो हज्ज में कामुकता (अश्लीलता) की बातें, फिस्क़ व फुजूर (अवहेलना) और लड़ाई-झगड़ा नहीं है।'' (सूरतुल बक़रा : 197)

''रफस'' (अश्लीलता) : अश्लील बात को कहते हैं, और एक कथन है कि : संभोग को कहते हैं।

हाफिज़ इब्ने हजर कहते हैं :

''प्रत्यक्ष बात यह है कि हदीस में उससे अधिक सामान्य अर्थ मुराद है, और क़ुर्तुबी भी इसी की ओर रूझान रखते हैं, और वही अर्थ रोज़े के बारे में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन से भी मुराद है : ''जब तुम में से कोई व्यक्ति रोज़े से हो तो वह 'रफस' यानी अश्लील बात न करे।'' अंत हुआ।

अर्थात हदीस में ''रफस'' का शब्द अश्लील बात और संभोग दोनों को एक साथ सम्मिलित है।

और ''वलम यफ्सुक़'' (फिस्क़ नहीं किया) अर्थात कोई पाप और अवहेलना नहीं किया।

और ''क-यौमे वलदत्हु उम्मुह'' (जिस दिन उसकी माँ ने उसे जना था उसकी तरह) का मलतब है : बिना पाप और गुनाह के।

और इसका प्रत्यक्ष अर्थ छोटे और बड़े सभी गुनाहों की बख्शिश है। यह बात हाफिज़ इब्ने हजर ने कही है।

''और इसी की तरफ क़ुर्तुबी और काज़ी अयाज़ गए हैं। तिर्मिज़ी कहते हैं : यह उन अवज्ञाओं के साथ विशिष्ट है जिनका संबंध अल्लाह के अधिकार से है, बन्दों के नहीं।'' यह बात मुनावी ने ''फैज़ुल क़दीर'' में कही है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : ''जिसने हज्ज किया और अश्लीलता से उपेक्षा किया तथा अवज्ञा व पाप नहीं किया तो वह अपने गुनाहों से उस दिन की तरह लौटता है जिस दिन उसकी माँ ने उसे जना था।'' का मतलब यह है कि : इन्सान जब हज्ज करे और उसके दौरान अल्लाह की हराम की हुई चीज़ ''रफस'' यानी औरतों से संभोग करने, तथा ''फिस्क़'' यानी आज्ञाकारिता और फरमांबरदारी की चीजों का विरोध करने से बचे। चुनाँचे वह उस चीज़ को त्याग न करे जिसे अल्लाह ने उसके ऊपर अनिवार्य किया है, और उस चीज़ को न करे जिसे अल्लाह ने उसके ऊपर हराम ठहराया है। अतः जब इन्सान हज्ज करता है और उसके दौरान अवज्ञा और पाप नहीं करता है और बीवी से संभोग और अश्लील बातों से परहेज़ करता है तो वह गुनाहों से पाक व साफ होकर निकलता है। जिस तरह कि इन्सान जब अपनी माँ के पेट से बाहर निकलता है तो उसके ऊपर कोई गुनाह नहीं रहता है। इसी तरह यह आदमी जब इस शर्त के साथ हज्ज करे तो वह अपने गुनाहों से पवित्र हो जायेगा।''

''फतावा इब्ने उसैमीन'' (21/20).

तथा शैख रहिमहुल्लाह (21/40) का यह भी कहना है : ''हदीस का प्रत्यक्ष मतलब यह है कि हज्ज बड़े बड़े गुनाहों को मिटा देता है, और हमें यह अधिकार नहीं है कि हम बिना दलील के उसे उसके प्रत्यक्ष अर्थ से फेर दें। तथा कुछ विद्वानों का कहना है कि : जब पाँच समय की नमाज़ें कफ्फारा नहीं बन सकतीं सिवाय इसके कि जब बड़े बड़े गुनाहों से बचा जाए, जबकि वे हज्ज से महान और अल्लाह के निकट सबसे अधिक प्रिय हैं, तो हज्ज तो और अधिक कफ्फारा नही बन सकता। लेकिन हमारा कहना है कि : हदीस का प्रत्यक्ष मतलब यही है, और अल्लाह तआला की उसके हुक्म में कई हालतें हैं, और सवाब में कोई क़ियास नहीं चलता है।'' मामूली संशोधन के साथ समाप्त हुआ।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर