हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
अल्लाह के बारे में बिना ज्ञान के बात कहना हराम है
अल्लाह ने बिना ज्ञान के अपने बारे में कोई बात कहना हराम ठहराया है और इसका उल्लेख शिर्क और बड़े पापों के साथ किया है। अल्लाह तआला ने फरमाया :
قُلْ إِنَّمَا حَرَّمَ رَبِّيَ الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ وَالإِثْمَ وَالْبَغْيَ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَأَنْ تُشْرِكُوا بِاللَّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ سُلْطَانًا وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لا تَعْلَمُونَ
الأعراف/33
“(ऐ नबी!) आप कह दें कि मेरे पालनहार ने तो केवल खुले एवं छिपे अश्लील कर्मों को तथा पाप एवं नाहक़ अत्याचार को हराम किया है, तथा इस बात को कि तुम उसे अल्लाह का साझी बनाओ, जिस (के साझी होने) का कोई प्रमाण उसने नहीं उतारा है तथा यह कि तुम अल्लाह पर ऐसी बात कहो, जो तुम नहीं जानते।” [सूरतुल-आराफ़ : 33]
अल्लाह के बारे में बिना ज्ञान के बात कहने का एक उदाहरण प्रश्न में वर्णित कुछ लोगों का शाबान के महीने में तीन दिन रोज़ा रखने को एक बिदअत (नवाचार) कहना है, जैसा कि प्रश्न में वर्णित है।
अल-अय्याम अल-बीज़ के रोज़े की फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) :
प्रत्येक महीने में तीन दिन रोज़े रखना मुस्तहब है, और बेहतर यह है कि ये अय्यामुल-बीज़ में रखे जाएँ, जो महीने की 13वीं, 14वीं और 15वीं तारीख़ है।
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : मुझे मेरे खलील (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने तीन चीज़ें करने की वसीयत की, जिन्हें मैं मरते दम तक नहीं छोड़ूँगा : प्रत्येक महीने में तीन दिन रोज़े रखना, ज़ुहा (चाश्त के समय) की नमाज़ और वित्र पढ़कर सोना।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1124) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 721) ने रिवायत की है।
अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल-आस रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझसे कहा : “तुम्हारे लिए हर महीने तीन दिन रोज़ा रखना पर्याप्त है; क्योंकि हर अच्छे काम के लिए तुम्हें दस गुना सवाब मिलेगा, इसलिए यह जीवन भर के रोज़े के समान होगा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1874) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1159) ने रिवायत किया है।
तथा अबू ज़र रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझसे कहा: “यदि तुम महीने में कुछ रोज़ा रखते हो, तो तेरहवें, चौदहवें और पंद्रहवें दिन का रोज़ा रखो।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 761) और नसाई (हदीस संख्या : 2424) ने रिवायत किया है। तथा तिर्मिज़ी ने इसे हसन कहा है और अलबानी ने इरवाउल-ग़लील” (947) में उनसे सहमति जताई है।
शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :
हदीस में वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु को प्रत्येक महीने में तीन दिन रोज़ा रखने की वसीयत की। तो ये रोज़े कब रखे जाने चाहिए, और क्या उन्हें लगातार रखना चाहिए?
उन्होंने उत्तर दिया :
“इन तीन दिनों का लगातार या अलग-अलग रोज़ा रखना जायज़ है, तथा वे महीने की शुरुआत में, या बीच में, या अंत में हो सकते हैं। इस मामले में – अल-हम्दुलिल्लाह – विस्तार है, क्योंकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कोई विशिष्ट दिन नहीं बताया है। आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा गया : क्या अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रत्येक महीने में तीन दिन रोज़े रखते थे? तो उन्होंने कहा : हाँ। पूछा गया : महीने के किस हिस्से में रोज़ा रखते थे? उन्होंने कहा : आप इस बात की परवाह नहीं करते थे कि महीने के किस हिस्से में रोज़ा रखें।” इस हदीस को मुस्लिम (हदीस संख्या : 1160) ने रिवायत किया है। लेकिन तेरहवें, चौदहवें और पंद्रहवें दिन रोज़ा रखना बेहतर है, क्योंकि ये अल-अय्याम अल-बीज़ हैं।” “मजमू फतावा अश-शैख इब्न उसैमीन” (20/ प्रश्न संख्या 376)
शाबान के उत्तरार्ध में नफ़्ली रोज़ा रखने का हुक्म
शायद जिस व्यक्ति ने आपको इस महीने (शाबान) में इन दिनों का रोज़ा रखने से रोका था, उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह जानता था कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शाबान का आधा हिस्सा बीत जाने पर रोज़ा रखने से मना किया है।
इससे पहले एक प्रश्न के उत्तर में, जिसका शीर्षक था : ( शाबान के दूसरे अर्ध भाग में रमज़ान के छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है), यह उल्लेख किया जा चुका है कि यह निषेध उस व्यक्ति के बारे में है जो शाबान के उत्तरार्ध में रोज़ा रखना शुरू कर रहा है और उसकी पहले से रोज़ा रखने की कोई आदत नहीं है।
लेकिन जहाँ तक उस आदमी का संबंध है जिसने शाबान के पहले हिस्से में रोज़ा रखना शुरू कर दिया, फिर दूसरे हिस्से में भी रोज़ा रखना जारी रखा, या उसकी पहले से रोज़ा रखने की कोई आदत हो, तो उसके लिए शाबान के दूसरे आधे हिस्से में रोज़ा रखने में कोई हर्ज नहीं है, जैसे कि वह व्यक्ति जिसकी हर महीने में तीन दिन रोज़ा रखने, या सोमवार और गुरुवार को रोज़ा रखने की आदत है।
इस आधार पर, आपके शाबान के महीने में तीन दिन रोज़ा रखने में कोई हर्ज नहीं है, यहाँ तक कि अगर उनमें से कुछ महीने के दूसरे अर्ध में हो।
शाबान के महीने में अधिक से अधिक रोज़ा रखना
शाबान के महीने में अधिक से अधिक रोज़ा रखने में कोई हर्ज नहीं है, बल्कि यह सुन्नत है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस महीने के दौरान बहुत अधिक रोज़ा रखते थे।
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इतना रोज़ा रखते थे कि हम कहने लगते थे कि (अब) आप रोज़ा रखना बंद नहीं करेंगे। तथा आप इस तरह रोज़ा रखना बंद कर देते थे कि हम कहने लगते कि अब आप रोज़ा नहीं रखेंगे। मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को रमज़ान के अलावा किसी भी महीने का पूरा रोज़ा रखते नहीं देखा तथा मैंने आपको शाबान से अधिक किसी और महीने का रोज़ा रखते नहीं देखा।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1868) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1165) ने रिवायत किया है।
अबू सलमा से वर्णित है कि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उन्हें बयान करते हुए कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम शाबान से ज़्यादा किसी महीने में रोज़ा नहीं रखते थे। आप (लगभग) पूरे शाबान में रोज़ा रखते थे और फरमाते थे : “जितना हो सके उतना अच्छे कर्म करो, क्योंकि अल्लाह (प्रतिफल देने से) नहीं उकताता यहाँ तक कि तुम (ही अमल करने से) उकता जाओ। और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निकट सबसे पसंदीदा नमाज़ वह है जिसे निरंतर किया जाए भले ही थोड़ी हो। तथा जब आप कोई नमाज़ पढ़ते थे तो उसे निरंतरता (और पाबंदी) के साथ करते थे।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1869) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 782) ने रिवायत किया है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।