गुरुवार 27 जुमादा-1 1446 - 28 नवंबर 2024
हिन्दी

एक ईसाई पोर्क के निषेध होने के कारण के बारे में पूछ रहा है

प्रश्न

इस्लाम ने पोर्क को क्यों वर्जित ठहराया है, जबकि वह अल्लाह के प्राणियें में से एक प्राणी है ? तो फिर अल्लाह ने सुअर को पैदा क्यों किया है ?!

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है ...

सबसे पहले

:

हमारे पालनहार ने सुअर का मांस खाने को निश्चित रूप से वर्जित (हराम) ठहराया है, अल्लाह तआला का फरमान है :

"आप कहिए कि मुझे जो हुक्म किया गया है उस में किसी खाने वाले के लिए कोई खाना हराम नहीं पाता, लेकिन यह कि वह मुर्दा हो या बहता खून या सुअर का मांस, क्योंकि वह बिल्कुल नापाक है।" (सूरतुल अंआम : 145)

यह हम पर अल्लाह की दया और उसकी ओर से आसानी (सुविधा) है कि उस ने हमारे लिए पवित्र (अच्छी) चीज़ों को खाने की अनुमति दी है और हमारे ऊपर केवल अपवित्र चीज़ों को वर्जित ठहराया है, अल्लाह तआला का फरमान है :

"और वह (अर्थात् पैग़म्बर) पाक (शुद्ध) चीज़ों को हलाल (वैध) बताते हैं और नापाक (अशुद्ध) चीज़ों को हराम (अवैध) बताते हैं।" (सूरतुल आराफ : 157)

हमें एक पल के लिए भी शक नहीं है कि सुअर एक अपवित्र गंदा जानवर है, अत: उस को खाना मनुष्य के लिए हानिकारक है। तथा वह गंदगियों और मल पर जीवन यापन करता है, जिस से एक विशुद्ध प्रकृति वाला व्यक्ति घृणा करता है और उसे खाने से दूर भागता और नकारता है, क्योंकि यह मनुष्य की प्रकृति और उस के उस शुद्ध स्वभाव (मिज़ाज) के विरूद्ध है जिसे सर्वशक्तिमान अल्लाह ने उसके अंदर बनाया है।

दूसरा

:

जहाँ तक मानव शरीर पर सुअर का मांस खाने के नुकसान का संबंध है, तो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने इसके अनेक नुकसान दिखाये हैं, जैसे :

- पोर्क में अन्य पशुओं के मांस की तुलना में सबसे अधिक कोलेस्ट्राल पाया जाता है, जिसकी मानव रक्त में वृद्धि से Atherosclerosis(एथ्रोसक्लेरोसिस) से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है। इसी प्रकार पोर्क में फैटी एसिड का गठन विचित्र और असामान्य होता है, जो अन्य खाद्य पदार्थों में फैटी एसिड की संरचना से विभिन्न होता है, जिसके कारण अन्य खाद्य पदार्थों की तुलना में शरीर द्वारा उसको अवशोषित करना अधिक आसान हो जाता है, और इस प्रकार रक्त कोलेस्ट्राल बढ़ जाता है। (अगर खून में किसी कारण से बहुत अधिक लिपिड हो, तो यह खून के नसों (Blood vessel) में जमा होकर उसे संकुचित कर देता है (Narrowing) या फिर जाम कर देता है (Blockage)। इसको एथ्रोसक्लेरोसिस (Atherosclerosis) कहते हैं, और यह समय के साथ और बढ़ते जाता है। अंत में यह विभिन्न अंगों में खून के प्रवाह को कम करके नुकसान पहुँचाता है, जैसे कि दिल का दौरा (heart attack) या सदमा (stroke)।)

- पोर्क मांस और पोर्क वसा बृहदान्त्र (colon),मलाशय, प्रोस्टेट, स्तन और रक्त के कैंसर के फैलाव में योगदान करता है।

- पोर्क मांस और पोर्क वसा मोटापा और उस से संबंधित बीमारियों से पीड़ित होने का कारण बनता है जिनका इलाज करना मुश्किल होता है।

- पोर्क मांस का सेवन करना खुजली, एलर्जी और पेट के अल्सर का कारण बनता है।

- पोर्क मांस का सेवन फेफड़ों में संक्रमण (निमोनिया) का कारण बनता है जो कि टेप कृमि, फेफड़ों के कीड़े और फुफ्फुसीय सूक्ष्म जीवाणु संक्रमण के कारण जन्म लेता है।

सुअर का मांस खाने का सबसे गंभीर खतरा यह है कि उस में टेप कृमि (कीड़ा) पाया जाता है जिसकी लंबाई 2.3 मीटर होती है। मानव शरीर में इस कीड़ा के अंडों की वृद्धि आगे चलकर पागलपन और हिस्टीरिया को जन्म दे सकती है, यदि वे मस्तिष्क के छेत्र में विकसित हुए हैं। और यदि वे दिल के छेत्र में विकसित हुए हैं तो उच्च रक्तचाप और दिल के दौरे की घटना का कारण बनते हैं। सुअर के मांस में पाये जाने वाले अन्य कीड़ों में से एक केशिका पेंचदार ट्राइकिनोसिस (Trichinosis) का कीड़ा है जो पकाने के प्रतिरोध (यानी पकाने के द्वारा नहीं मारा जा सकता) है, जिसका शरीर में विकसित होना लक़वा (paralysis) और त्वचा में लाल चकत्ते (skin rashes) को जन्म दे सकता है।

डॉक्टरों ने पुष्टि की है कि टेप कीड़े की बीमारियां, गंभीर बीमारियों में से हैं जो सुअर का मांस खाने से जन्म लेती हैं और मनुष्य की छोटी आंतों में विकसित होती हैं और कई महीनों के दौरान परिपक्व होकर एक बड़ा कीड़ा बन जाते हैं जिसके शरीर में लगभग एक हज़ार घटक (टुकड़े) होते हैं और उसकी लंबाई 4 से 10 मीटर तक होती है। वह अकेले ही संक्रमित व्यक्ति की आंत में रहते हैं और उस के अंडे मल के साथ बाहर आते हैं। जब सुअर उन अंडों को निगल जाते और हज़म कर लेते हैं, तो वे पूंछदार थैली या लार्वा का रूप धारण करते हुए ऊतकों और मांसपेशियों में प्रवेश कर जाते हैं, वह एक थैली होती है जिस में एक तरल पदार्थ और टेप कृमि का सिर होता है। जब मनुष्य संक्रमित सुअर का मांस खाता है तो लार्वा उसकी आंत में एक पूरा कीड़ा में बदल जाता है। ये कीड़े इंसान की कमज़ोरी और विटामिन (बी 12) की कमी का कारण बनते हैं, जो एक विशेष प्रकार के खून की कमी (रक्ताल्पता) को जन्म देते हैं। कभी कभार स्नायविक लक्षण पैदा हो सकते हैं जैसे न्युरैटिस (तंत्रिकाओं का सूजन) । तथा कुछ मामलों में लार्वा, मस्तिष्क तक पहुँच सकता है जिसके कारण मिरगी या मस्तिष्क में उच्च दबाव, तथा उसके बाद सिर दर्द, यहाँ तक कि लक़वा जन्म ले सकता है।

अच्छी तरह से न पकाया गया पोर्क खाना केशिका या पेंचदार कीड़े (ट्राइकिनोसिस) के संक्रमण से पीड़ित होने का भी कारण बनता है, जब ये परजीवियां छोटी आँतों में पहुँचते हैं तो 4 से 5 दिन बाद ढेर सारे लार्वा निकालते हैं जो आंतों की दीवारों में प्रवेश कर रक्त तक पहुँचते हैं, और उस से शरीर के अधिकांश ऊतकों तक पहुचँ जाते हैं। लार्वा मांसपेशियों में जाते हैं और वहाँ थैलियों का रूप धारण कर लेते हैं, जिसके कारण रोगी को गंभीर मांसपेशी का दर्द भुगतना पड़ता है। कभी कभार यह रोग मस्तिष्क की झिल्ली और मस्तिष्क में सूजन (मैनिंजाइटिस, इन्सेफेलाइटिस) के संक्रमण तक विकसित हो जाता और हृदय की मांसपेशी, फेफड़े, तथा गुर्दे की सूजन और न्युरैटिस का कारण बनता है, तथा कुछ मामलों में यह रोग घातक हो सकता है।

यह अच्छी तरह पता है कि कुछ बीमारियां ऐसी हैं जो मनुष्य के साथ विशिष्ट हैं, जो सुअर को छोड़ कर किसी अन्य जानवर में नहीं पायी जाती हैं, जैसे गठिया और जोड़ों का दर्द, सर्वशक्तिमान अल्लाह का यह कथन कितना सच्चा है :

"तुम पर मुर्दा, (बहा हुआ) खून, सुअर का मांस (पोर्क) और हर वह चीज़ जिस पर अल्लाह के नाम के सिवाय दूसरों के नाम पुकारे जायें, हराम है। लेकिन जो मजबूर हो जाये और वह सीमा उल्लंघन करने वाला और ज़ालिम न हो, तो उस पर उसको खाने में कोई गुनाह नहीं, अल्लाह तआला बहुत क्षमा करने वाला बड़ा दयावान् है।" (सूरतुल बक़राः 173)

ये सुअर का मांस खाने के कुछ नुक़सान हैं। शायद इस की जानकारी प्राप्त करने के बाद आप को इसके निषिद्ध होने में कोई सन्देह नहीं होगा। हम आशा करते हैं कि यह आप के लिए सच्चे धर्म की ओर मार्गदर्शन के लिए पहला क़दम होगा। अत: आप ठहरिए, खोज कीजिए, अनुसंधान कीजिए, विचार और मननचिंतन कीजिए, तथा सच को जानने, पहचानने और उसका अनुसरण करने के लिए निष्पक्षता से काम लीजिए। मैं अल्लाह से दुआ करता हूँ कि आप को उस चीज़ का मार्ग दर्शाये जिस में आप के लिए लोक और परलोक में भलाई और कल्याण हो।

स्पष्ट रहे कि यदि हमें सुअर का मांस खाने के हानिकारक प्रभावों का कुछ भी पता न चले, फिर भी उसके हराम (निषिद्ध) होने पर हमारे विश्वास के अंदर कोई परिवर्तन नहीं होगा और उसे छोड़न के हमारे संकल्प में कोई कमज़ोरी नहीं आयेगी। आप को ज्ञात होना चाहिए कि आदम अलैहिस्सलाम मात्र एक बार उस पेड़ से जिस से अल्लाह तआला ने उन्हें रोका था, खा लेने के कारण स्वर्ग से बाहर निकाल दिए गये, और हमें उस पेड़ के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं, और न ही आदम अलैहिस्सलाम को इस बात की कोई आवश्यकता थी कि वह उस पेड़ से खाने के निषेद्ध के कारण की जांच करें। बल्कि उनके लिए केवल इतना जान लेना पर्याप्त था, जैसाकि हमारे लिए और हर आस्तिक (मोमिन) के लिए पर्याप्त है, कि अल्लाह तआला ने इसे हराम (निषिद्ध) ठहराया है।

पोर्क खाने के कुछ हानिकारक प्रभावों की जानकारी के लिए देखिए : इस्लामी चिकित्सा के बारे में चौथे विश्व सम्मेलन के अनुसंधान (शोध), कुवैत संस्करण ¿पृष्ठ 731 और उसके बादÀ,तथा : क़ुर्आन और हदीस के प्रकाश में स्वास्थ्य रोकथाम,द्वारा : लूलुआ पुत्री सालेह ¿ पृष्ठ 635 और उसके बाद À

लेकिन हम एक बार फिर आप से पूछते हैं :

क्या पोर्क ओल्ड टैस्टमेंट (पुराना नियम) में हराम (निषिद्ध) नहीं है जो कि तुम्हारे पवित्र पुस्तक (बाइबल) का अर्ध भाग है ? :

"तुम्हें सूअर नहीं खाना चाहिए। उनके खुर फटे होते हैं, किन्तु वे जुगाली नहीं करते। इसलिए सूअर तुम्हारे लिए स्वच्छ भोजन नहीं है। सूअर का कोई माँस न खाओ और न ही मरे हुए सूअर को छुओ।" (व्यवस्था विवरण 14:3-8, तथा देखिए : लैव्यव्यवस्था 11:1-8)

यहूदियों पर पोर्क के निषेद्ध होने के प्रमाण (सबूत) को उद्धृत करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि आप को इस बारे में संदेह है तो उन लोगों से पूछ लीजिए वो आप को बता देंगे। लेकिन हम समझते हैं कि जिस चीज़ से आप को सूचित करने की आश्वयकता है वह स्वयं आपके पवित्र ग्रंथ (यानी नई टैस्टमेंट) में उल्लेख की गई कुछ बातें हैं। किन्तु नई टैस्टमंट तुम से कहता है कि तौरेत के आदेश (नियम) तुम्हारे लिए लागू हैं, उन्हें बदला नहीं जा सकता है ; क्या उसमें यीशू मसीह का यह कथन नहीं आया है :

"यह मत सोचो कि मैं मूसा के धर्म-नियम या भविष्यवक्ताओं के लिखे को नष्ट करने आया हूँ। मैं उन्हें नष्ट करने नहीं बल्कि उन्हें पूर्ण करने आया हूँ। मैं तुम से सत्य कहता हूँ कि जब तक धरती और आकाश समाप्त नहीं हो जाते, मूसा की व्यवस्था का एक-एक शब्द और एक-एक अक्षर बना रहेगा, वह तब तक बना रहेगा जब तक वह पूरा नहीं हो लेता।" (मत्ती 5:17-18)

यद्यपि इस पाठ के साथ, हम नई टैस्टमेंट में पोर्क के विषय में एक अन्य प्रावधान की आवश्यकता नही समझते हैं, फिर भी हम यहाँ सुअर के अपवित्र और अशुद्ध होने के बारे में एक और स्पष्ट उद्धरण प्रस्तुत कर रहे हैं :

"वहीं पहाड़ी पर उस समय सुअरों का एक बड़ा सा रेवड़ चर रहा था। दुष्टात्माओं ने उस से विनती की, "हमें उन सुअरों में भेज दो ताकि हम उनमें समा जायें।" और उस ने उन्हें अनुमति दे दी। फिर दुष्टात्माएँ उस व्यक्ति में से निकल कर सुअरों में समा गयीं।" (मरकुस 5:11-13)

सुअरों के अशुद्ध होने और उन्हें चराने वालों को तुच्छ समझने के बारे में अन्य ग्रंथ भी देखिए : (मत्ती

6:7

, 2

पतरस

2:22,

लूका

15:11-16

)

शायद आप यह कहेंगे कि यह आदेश निरस्त और निष्प्रभाव हो चुका है, क्योंकि पतरस (पीटर) ने ऐसे और ऐसे कहा है और पौलुस ने इस तरह और ऐसी बात कही है ...!!

इस प्रकार अल्लाह के शब्दों को बदल दिया जायेगा, तौरेत को निष्प्रभाव बना दिया जायेगा, ईसा मसीह के शब्द को निरस्त कर दिया जायेगा जिसने तुम्हें आश्वासन दिया है कि वह आकाश और धरती के समान अटल (मान्य और लागू) रहेगा, क्या ये सब पौलुस या पतरस की बात के द्वारा परिवर्तित और निरस्त किया जा सकता है ?!

हम मान लेते हैं कि यह सच है, और उसकी निषिधता वास्तव में निरस्त कर दी गई है, तो फिर तुम इस बात की आलोचना क्यों करते हो कि वह (पोर्क) इस्लाम में निषिद्ध (हराम) है जिस प्रकार वह पहले तुम्हारे लिए हराम (निषिद्ध) था ?!

तीसरा

:

आप का या कहना कि : जब पोर्क का खाना निषिद्ध है, तो फिर अल्लाह ने सुअर को क्यों पैदा किया है ? तो हम समझते हैं कि आप इस बारे में गंभीर नहीं हैं, वर्ना हम आप से यह पूछेंगे कि अल्लाह ने ऐसी और ऐसी हानिकारक, या अशुद्ध (गंदी) चीज़ों को क्यों पैदा किया है ? बल्कि हम आप से पूछेंगे कि अल्लाह ने शैतान को क्यों पैदा किया है ?!

क्या सृष्टि रचयिता का यह अधिकार नहीं है कि वह अपने बन्दों (दासों और भक्तों) को जो चाहे आदेश करे, और उनमें जिस चीज़ का चाहे फैसला करे, उसके फैसले पर कोई टिप्पणी और आलोचना करने वाला नहीं, और उसके आदेश को कोई बदल नहीं सकता ? क्या इस उपासक प्राणी का यह कर्तव्य नहीं है कि वह अपने पालनहार (परमेश्वर) से, जब भी वह उसे किसी चीज़ का आदेश दे, तो कहे कि : "हम ने सुना और पालन किया।"

(आप को इसका स्वाद अच्छा लगता होगा, और आप इसे खाने के इच्छुक होंगे, तथा आप के आस-पास के लोग इसका आनंद लेते होंगे, लेकिन क्या स्वर्ग आप से इतना भी अधिकार नहीं रखता कि आप उसके लिए अपने मन की कुछ इच्छाओं को बलिदान कर दें ?)

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर