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मैं एक हदीस की प्रामाणिकता के बारे में पूछना चाहता हूँ जो मैंने सुनी है, उसके शब्द ये हैं : (जिसने हज्रे अस्वद का चुंबन किया वह बिना किसी हिसाब के स्वर्ग में प्रवेश करेगा।'' मुझे इसकी सनद के बारे में ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं हदीस की प्रामाणिकता का हुक्म चाहता हूँ। और अगर हदीस सही नहीं है, तो क्या कोई ऐसा शरर्इ प्रमाण है जो इस बात को दर्शाता है कि जिसने हज्रे अस्वद का चुंबन किया वह बिना हिसाब के स्वर्ग में प्रवेश करेगा या कि यह ऐसी चीज़ है जो मौजूद नहीं हैॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
यह उक्त बात किः ''जिसने हज्रे अस्वद का चुंबन किया वह बिना किसी हिसाब के स्वर्ग में प्रवेश करेगा।'' हमने उसे हदीस की सुप्रसिद्ध किताबों में से किसी में भी नहीं पाया, न तो सही सनद से और न ही ज़ईफ़ सनद से। तथा हम पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इसका कोई आधार नहीं जानते हैं; अतः इसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर मन्सूब करना जायज़ नहीं है।
हज्रे अस्वद की फज़ीलत के बारे में प्रमाणितः यह है कि उसका छूना पापों के लिए प्रायश्चित बन जाता है, और यह कि वह प्रलय के दिन उस आदमी के लिए साक्ष्य देगा जिसने उसे हक़ के साथ स्पर्श किया है। तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 961) और अहमद (हदीस संख्या : 2796) ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहाः अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज्रे अस्वद के बारे में फरमायाः ‘‘अल्लाह की क़सम! अल्लाह उसे प्रलय के दिन इस अवस्था में उठाएगा कि उसकी दो आँखें होंगी जिनसे वह देखेगा, और एक ज़बान होगी जिससे वह बोलेगा, वह उस आदमी के ईमान की गवाही देगा जिसने उसे हक़ के साथ छुआ होगा।’’ इमाम तिर्मिज़ी ने इसे हसन कहा है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।
अल-मुसनद के अनुसंधान कर्ताओं ने कहा है : इसकी इसनाद मज़बूत है।
तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 959) ने उबैद बिन उमैर से रिवायत किया है किः ‘‘इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा हज्रे अस्वद और रुक्ने यमानी पर ऐसी भीड़ लगाते थे जो मैं ने सहाबा में से किसी को करते नहीं देखा। तो मैं ने पूछाः ऐ अबू अब्दुर्रहमान! आप दोनों रुक्न (हज्रे अस्वद और रुक्ने यमानी) पर ऐसी भीड़ लगाते हैं कि मैं ने सहाबा में से किसी को ऐसा करते नहीं देखाॽ
तो उन्हों ने कहाः अगर मैं ऐसा करता हूँ तो इसलिए कि मैंने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना हैः उनपर हाथ फेरना गुनाहों का प्रायश्चित है।‘’
इमाम तिर्मिज़ी ने इसे हसन कहा है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी में इसे सहीह कहा है।