हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
विद्वानों ने एक ही सफर में कई बार उम्रा करने के हुक्म के बारे में मतभेद किया है, और सही बात यह है कि वह धर्मसंगत नहीं है (अर्थात उसका करना मुसतहब नहीं है), जो व्यक्ति मक्का में उम्रा करने के लिए प्रवेश किया है तो उसके लिए बार बार उम्रा करना धर्मसंगत नहीं है, न तो अपनी तरफ से और न ही किसी दूसरे की तरफ से, लेकिन यदि उसने मक्का से जद्दा या उसके अलावा किसी अन्य शहर का किसी आवश्यकता के लिए सफर किया जैसे कि रिश्तेदार की ज़ियारत या कोई चीज़ खरीदने ... इत्याद के लिए, फिर वह मक्का वापस आया तो उसके लिए उस समय अपनी तरफ से या उसके रिश्तेदारों या परिवार में से जिसने उम्रा नहीं किया है उसकी तरफ से उम्रा का एहराम बाँधना जायज़ है।
आजकल जो कुछ लोगा एक ही सफर में कई बार उम्रा करते हैं, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीक़ से, या आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के तरीक़े से प्रमाणित नहीं है, जबकि वे लोग (यानी सहाबा) मक्का तक पहुँचने के लिए बहुत संघर्ष करते थे, और उसके महान प्रतिफल और पुण्य के कारण उनके अंदर उम्रा करने का बड़ा शौक पाया जाता था।
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“अबू तालिब ने कहा : मैं ने इमाम अहमद से कहा कि ताऊस का कहना है कि : “जो लोग तनईम नामी स्थान से उम्रा करते हैं मैं नहीं जानता कि उन्हें पुण्य मिलेगा या वे दंडित किए जायेंगे ॽ” उनसे कहा गया : वे दंडित क्यों किए जायेंगे ॽ उन्हों ने कहा : इसलिए कि उसने अल्लाह के घर का तवाफ छोड़ दिया, और वह चार मील बाहर जाता है, जबकि वह चार मील से वापस आने तक दो सौ तवाफ कर सकता है, और वह जब जब भी बैतुल्लाह का तवाफ करेगा, वह बिना किसी चीज़ के चलने से बेहतर होगा।”
इमाम अहम ने ताऊस के इस कथन पर जिसको अबू तालिब ने अपने कथन के लिए साक्ष्य बनाया है, सहमति व्यक्त की है, इसे अबू बक्र ने अश-शाफी में रिवायत किया है।
“मजमूउल फतावा” (26/265) से समाप्त हुआ।
तथा आप रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“उदाहरण के तौर पर जिसका घर हरम से क़रीब है वह हर दिन, या हर दो दिन पर उम्रा करे, या वह व्यक्ति जो उन मीक़ात से क़रीब है जिनके और मक्का के बीच दो दिन का सफर है, महीने में पाँच, या छः बार या इसी के समान उम्रा करे, या जो व्यक्ति मक्का से उम्रा करना जायज़ समझता है प्रति दिन एक या दो उम्रा करे : तो यह उम्मत के सलफ (पूर्वजों) की सर्वसहमति के साथ मक्रूह (घृणित) है, किसी सलफ ने ऐसा नहीं किया है, बल्कि उन्हों ने उसके मक्रूह होने पर इत्तिफाक़ किया है, और इसे अगरचे शाफई और अहमद के अनुयायियों में से धर्मशास्त्रियों के एक समूह ने मुसतहब समझा है : परंतु उनके पास इस बारे में बुनियादी तौर पर कोई प्रमाण नहीं है सिवाय सामान्य क़ियास मात्र के, और वह यह है कि यह इबादतों को अधिक से अधिक करना है, या उन्हों ने उम्रा की फज़ीलत में वर्णित आम हदीसों को प्रमाण बनाया है।”
“मजमूउल फतावा” (26/270) से समाप्त हुआ।
तथा इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उम्रों में से एक भी उम्रा मक्का से बाहर निकल कर नहीं था, जैसाकि आजकल बहुत से लोग करते हैं, बल्कि आपके सभी उम्रे मक्का में प्रवेश करते हुए थे, तथा आप ने वह्य के उतरने के बाद मक्का में तेरह साल निवास किया, लेकिन आपके बारे में कहीं भी यह वर्णन नहीं किया गया है कि उस अवधि में आप ने मक्का से बाहर निकल कर उम्रा किया है। पता चला कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो भी उम्रा किया है और उसे धर्मसंगत करार दिया है वह मक्का में प्रवेश करने वाले का उम्रा है, न कि उस व्यक्ति का उम्रा जो उसमें मौजूद था फिर वह हरम की सीमा से बाहर निकल कर जाता है ताकि उम्रा करे। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय काल में किसी ने भी ऐसा नहीं किया है, सिवाय अकेली आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के ; क्योंकि उन्हों ने उम्रा का तल्बिया पुकारा था, लेकिन वह मासिक धर्म से हो गईं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें आदेश दिया तो उन्हों ने उम्रा पर हज्ज को दाखिल कर लिया और हज्ज क़िरान करने वाली हो गईं, और आप ने उन्हें बतलाया कि उनका बैतुल्लाह का तवाफ और सफा व मर्वा के बीच सई करना उनके हज्ज और उम्रा दोनों की तरफ से हो गया, तो उन्हों ने अपने दिल में यह सोचा कि उनकी साथ वालियाँ अलग अलग हज्ज और उम्रे के साथ लौटेंगी (क्योंकि वे हज्ज तमत्तुअ करनेवालियाँ थीं, और उन्हें मासिक धर्म नहीं आया था, और उन्हों ने क़िरान नहीं किया था) और वह अपने हज्ज के अंतर्गत उम्रे के साथ लौटेंगी, अतः आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनकी दिलजोई के लिए उनके भाई को हुक्म दिया कि उन्हें तनईम से उम्रा कराकर लायें, और आप ने स्वयं उस हज्ज में तनईम से उम्रा नहीं किया, और न ही आपके साथ मौजूद लोगों में से किसी ने किया।”
“ज़ादुल मआद” (2/89, 90) से समाप्त हुआ।
तथा शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
“एक उम्रा करने के बाद (दूसरे उम्रा के लिए) निर्धारित अवधि क्या है, उदाहरण के तौर पर एक आदमी एक सप्ताह के बाद आया जबकि उसने एह सप्ताह पहले उम्रा किया था, तो क्या वह इस समय उम्रा करेगा ॽ
तो उन्हों ने उत्तर दिया : इमाम अहमद रहिमहुल्लाह ने एक निकटवर्ती सीमा का उल्लेख किया है, आप रहिमहुल्लाह ने फरमाया : जब उसका सिर काला हो जाए अर्थात सिर मुँडाने के बाद वह काल हो जाए (बाल उग आएं) तो वह उम्रा करेगा, क्योंकि उम्रा में बाल कटाने या मुँडवाने की आवश्यकता होती है, और ऐसा बाल उगने के बाद ही हो सकता है, रही बात इसकी जो आजकल कुछ लोग रमज़ान में या हज्ज के दिनों में प्रतिदिन कई बार उम्रा करते हैं : तो यह बिदअत है, और वे लोग पुण्य से अधिक पाप के निकट हैं, इसलिए ज्ञान रखनेवालों के लिए अनिवार्य है कि वे इन लोगों से इस बात को स्पष्ट रूप से बयान कर दें कि यह धर्म के अंदर एक नया काम है और वह एक बिद्अत का काम है, क्योंकि वे लोग पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा से बढ़कर नेकी के अभिलाषी और लालायित नहीं हैं, जबकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फत्हे मक्का (मक्का पर विजय) के अवसर पर उन्नीस दिन मक्का में रहे और कभी आप ने यह नहीं सोचा कि बाहर निकलकर उम्रा करें, इसी तरह उमरतुल क़ज़ा के अवसर पर आप ने उम्रा किया और तीन दिन रहे और उम्रा नहीं किया, इसी प्रकार सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम बार बार उम्रा नहीं करते थे।”
“लिक़ाआतुल बाबिल मफतूह” (72/प्रश्न संख्या: 20) से अंत हुआ।
यदि उसके लिए दुबारा मक्का लौटना कठिन है, तो प्रत्यक्ष यही होता है कि उसके हक़ में कई बार उम्रा करना मक्रूह नहीं है, यदि उसने अपने अलावा की तरफ से, जैसेकि अपने माता पिता और जिसका उसके ऊपरी भारी हक़ है उसकी तरफ से, उम्रा किया है ; क्योंकि आवश्यकता के समय कराहत समाप्त हो जाती है।
तथा एक ही साल में कई बार उम्रा करने के हुक्म के बारे में विद्वानों के मतभेद के लिए प्रश्न संख्या (109321) का उत्तर देखें।
दूसरा :
जिस महिला को मासिक धर्म आ गया है उसके बारे में मूल सिद्धांत यह है कि वह काबा का तवाफ करने से रूकी रहेगी, यदि वह तवाफ इफाज़ा कर चुकी है तो वह प्रस्थान कर सकती है, और उससे बिदाई तवाफ समाप्त हो जायेगा, और यदि उसने तवाफे इफाज़ा नहीं किया है, तो उसके ऊपर प्रतीक्षा करना अनिवार्य है यहाँ तक कि वह पवित्र हो जाए फिर काबा का तवाफ करे, और उसका क़ाफिले के साथ होना उसके लिए तवाफ को छोड़ देने, या अपनी उसी हालत में तवाफ करने के लिए कोई उज़्र (बहाना) नहीं है यदि उनके लिए प्रतीक्षा करना संभव है, या उसके लिए अपने सरपरस्त (उत्तराधिकारी) के साथ मक्का से निकलने में विलंब करना संभव है।
तथा जिसके लिए उस तवाफ को अदा करने के लिए मक्का लौटना संभव है, और जिसके लिए बिना सख्त कठिनाई और तंगी के ऐसा करना संभव नहीं है, दोनों के बीच अंतर करना करना चाहिए, चुनाँचे जिसका घर मक्का से क़रीब है, या उसके लिए तवाफे इफाज़ा की अदायगी करने के लिए मक्का वापस लौटना संभव है तो वह अपने क़ाफिले के साथ प्रस्थान कर सकती है - यदि वह मक्का में ठहरने पर सक्षम नहीं है - इस शर्त के साथ कि वह उस तवाफ के लिए वापस लौटे और इस शर्त के साथ कि -यदि वह शादीशुदा है तो - उसका पति उसके क़रीब न जाए, क्योंकि उसे बड़ा तहल्लुल (संपूर्ण रूप् से एहराम की पाबंदी से आज़ादी) नहीं प्राप्त हुआ है। अतः वह मक्का वापस आयेगी, और तवाफे इफाज़ा करेगी और इस तरह अपने हज्ज को संपन्न कर देगी।
परंतु जिसके लिए न मक्का में रूकना संभव है और न तो बिना सख्त कठिनाई व तंगी के वापस लौटना संभव है, तो उसके लिए अपनी इसी स्थिति में तवाफ करना जायज़ है, अतः वह स्नान करेगी और कपड़ा बाँध लेगी जो खून के स्राव को रोक सके, फिर वह तवाफे इफाज़ा करेगी।
तथा प्रश्न संख्या: (14217) का उत्तर देखें।
तथा महिला के उम्रा में मासिक धर्म से हो जाने के बारे में प्रश्न संख्या: (20465) का उत्तर देखें।