हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए है।ज़कात के विषय में असल (मूल सिद्धांत) यह है कि उसे उस देश के गरीबों में खर्च किया जाए जिसमें धन मौजूद है,और उसे किसी आवश्यकता या हित के कारण ही स्थानांतरित किया जायेगा,क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु से उन्हें यमन देश की ओर भेजते हुए फरमाया था : ( . . फिर तुम उन्हें बतलाना कि अल्लाह तआला ने उनके ऊपर उनके धन में सदक़ा (दान) अनिवार्य किया है जो उनके धनवानों से लिया जायेगा और उनके गरीबों पर लौटा दिया जायेगा।) इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1395) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 19)ने रिवायत किया है।
यदि उसने बिना किसी आवश्यकता या हित के उसे स्थानांतरित कर दिया तो उसने गलत किया,परंतु इसके बावजूद यह उसके लिए पर्याप्त है,और उसे दुबारा ज़कात निकालने के लिए नहीं कहा जायेगा।
“कश्शाफुल क़िनाअ़” (2 / 263) में आया है कि : “उसे उसके देश से ऐसी जगह स्थानांतरित करना जाइज़ नहीं है जिसमें नमाज़ क़स्र की जाती है यद्यपि वह स्थानांतरन रिश्तेदारों के लिए और कड़ी आवश्यकता के कारण या सभी वर्गो (श्रेणियों) और कार्यकर्ता वगैरह को सम्मिलत करने के लिए हो, सब बराबर है . . . यदि उसने अवहेलना किया और स्थानांतरित कर दिया तो स्थानांतरित धन उसके लिए पर्याप्त होगा सामान्य प्रमाणों के आधार पर,और इसलिए भी कि उसने हक़ को उसके हक़दार को भुगतान किया है,अतः वह ऋण के समान बरी हो गया . .” (अंत)
तथा “अल-मौसूअतुल फिक्हिय्या” (23 / 33 2)में है कि : “फिर यदि ज़कात को ऐसी जगह स्थानांतरित कर दिया गया जहाँ हस्तांतरण का कोई औचित्य नहीं है,तो हनफिया,शाफेइया,और हनाबिला अपने मत के अनुसार इस बात की ओर गए हैं कि यह उसके निकालने वाले की ओर से पर्याप्त होगा ;क्योंकि वह आठ श्रेणियों से बाहर नहीं है। जबकि मालकिया का कहना है : यदि उसने उसे ऐसे लोगों की ओर स्थानांतरित किया है जो आवश्यकता और ज़रूरत के अंदर उसके देश के लोगों के समान हैं तो निषिध होने के साथ वह उसके लिए पर्याप्त होगा,और यदि उसने ऐसे लोगों की ओर स्थानांतरित किया है जो आवश्यकता और ज़रूरत के अंदर उसके देश के लोगों से कमतर हैं तो यह उसके लिए पर्याप्त नहीं होगा जैसा कि खलील और दरदीर ने वर्णन किया है,तथा दसूक़ी ने कहा है कि : मुवाक़ ने उद्धरण किया है कि (मालकिया का) मत यह है कि वह प्रत्येक स्थिति में पर्याप्त है।” (अंत)
चेतावनी :
अल-मौसूआ के लेखकों ने शाफईया के बारे में उल्लेख किया है कि यदि उसने ज़कात को दूसरे देश में स्थानांतरित कर दिया तो वह उसके लिए पर्याप्त होगा,जबकि इस मस्अला में इमाम शाफई रहिमहुल्लाह से दो कथन वर्णित हैं,और उनके असहाब (अनुयायियों) के निकट सबसे सही कथन यह है कि : वह उसके लिए पर्याप्त नहीं होगा। तथा देखिए : “अल-मजमूअ़” (6 / 212), “असनल मतालिब” (1 / 403), “फुतूहातुल वह्हाब” (4 / 109).
तथा शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम रहिमहुल्लाह से ज़कात को एक ऐसे देश (शहर) की तरफ स्थानांतरित करने के बारे में प्रश्न किया गया जो नमाज़ क़स्र करने की या उससे अधिक दूरी पर हो ॽ तो उन्हों ने उत्तर दिया : “इस मस्अला में विद्वानों के दो कथन हैं, मुताख्खेरीन (बाद में आने वाले) हनाबिला के निकट प्रसिद्ध मत यह है कि ऐसा करना निषिद्ध है,सिवाय इसके कि जिस देश में धन मौजूद है उसमें गरीब लोग न हों। दूसरा कथन उसके जाइज़ होने का है यदि उसके हस्थानतरण में कोई हित हो। इसे शैख तक़ीयुद्दीन ने पसंद किया है, शैख अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब ने कहा कि इसी पर अमल किया जायेगा, और वह दोनों कथन के अनुसार पर्याप्त है।” शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम के फतावा (4 / 98) से समाप्त हुआ।
तथा उन्हों ने यह भी कहा : “इस कथन के कहने वालों ने मतभेद किया है कि क्या इस हालत में ज़कात पर्याप्त होगी या नहीं ॽ तो प्रसिद्ध कथन यह है कि स्थानांतरण के हराम या मक्रूह होने के साथ पर्याप्त होगी।” शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम के फतावा (4 / 99)से समाप्त हुआ।
निष्कर्ष यह कि : ज़कात को उसी देश में खर्च किया जाये गा जिसमें धन मौजूद है,हाँ यदि उसके हस्थानतरण में कोई धार्मिक हित हो तो ऐसी स्थिति में कुछ भी गलत नहीं है,तथा इस विषय में धार्मिक हितों में से यह है कि : वह उसे अपने रिश्तेदारों की ओर स्थानांतरित करे,क्योंकि वह उसके लिए अधिक पुण्य (सवाब) का कारण है,या उसे ऐसे लोगों की ओर स्थानांतरित करे जो उसके सख्त ज़रूरतमंद हों,इसका उल्लेख प्रश्न संख्या (43146) के उत्तर में गुज़र चुका है।