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सज्दे में हाथ उठाने का हुक्म

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प्रकाशन की तिथि : 09-07-2024

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प्रश्न

क्या सुन्नत (हदीस) में कोई ऐसी चीज़ वर्णित है जिससे दोनों सज्दों के बीच दोनों हाथों के उठाने की प्रामाणिकता का सबूत मिलता है? क्योंकि अल्लामा अल्बानी रहिमहुल्लाह ने पाँच हदीसों का उल्लेख किया है जिनसे स्पष्ट रूप से यह पता चलता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दोनों सज्दों के बीच अपने दोनों हाथों को उठाते थे। लेकिन हम सहीह बुखारी और बैहक़ी में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की रिवायत से एक दूसरी हदीस पाते हैं जिसमें उल्लेख किया गया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दोनों सज्दों के बीच अपने हाथ कभी नहीं उठाए। तो इस बारे में आप क्या फरमाते हैं?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

बुखारी (हदीस संख्या : 735) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 390) ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि : ‘‘अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने दोनों हाथों को अपने दोनों मोंढों के बराबर तक उठाते थे जब आप नमाज़ शुरू करते, और जब रुकूअ के लिए तक्बीर कहते, और जब अपने सिर को रुकूअ से उठाते तब भी ऐसा करते और 'समिअल्लाहु लिमन हमिदह रब्बना व लकल हम्द' कहते। तथा आप सज्दे में ऐसा नहीं करते थे।’’

तथा बुखारी (हदीस संख्या : 739) ने नाफे से रिवायत किया है कि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा जब नमाज़ में प्रवेश करते तो तक्बीर कहते और अपने दोनों हाथों को उठाते, और जब रुकूअ करते तो अपने दोनों हाथों को उठाते, और जब समिअल्लाहु लिमन हमिदह कहते तो अपने दोनों हाथों को उठाते और जब दो रकअतों से उठते तो अपने दोनों हाथों को उठाते। तथा इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने इसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुँचाया है (अर्थात आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मंसूब किया है।)

‘‘चुनाँचे शाफेइय्या और हनाबिला रुकूअ करते समय और रूकूअ से उठते समय दोनों हाथों को उठाने की वैधता पर एकमत हैं, और यह कि वह नमाज़ की सुन्नतों में से है। तथा सुयूती का कहना है कि : दोनों हाथों को उठाना नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पचास सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की रिवायत से प्रमाणित है।

तथा शाफेइय्या इस बात की ओर गए हैं कि तीसरी रकअत के लिए तशह्हुद से उठते समय दोनों हाथों को उठाना मुस्तहब है। तथा यह इमाम अहमद से भी एक रिवायत है।’’

‘‘अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या’’ (27/95).

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

‘‘ दोनों हाथों को उठाने के चार स्थान हैं :

तक्बीरतुल एहराम के समय, रुकूअ के समय, रुकूअ से उठते समय, और जब पहले तशह्हुद से उठे।’’ शैख की बात समाप्त हुई।

‘‘अश्शर्हुल मुम्ते’’ (3/214).

चेतावनी : ‘‘अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या में तीसरी रकअत के लिए तशह्हुद से उठते समय दोनों हाथों के उठाने के मुस्तहब होने का कथन जो शाफेइय्या की ओर मनसूब किया गया है, वह सही नहीं है। क्योंकि शाफेई मत में सुप्रसिद्ध विचार और जिस पर उनके अक्सर अनुयायी क़ायम हैं, यह है कि : केवल तक्बीरतुल एहराम, रुकूअ और उससे उठने के समय दोनों हाथों को उठाया जायेगा।

देखिए : नववी की ‘‘अल-मजमूअ शर्हुल मुहज़्ज़ब’’ (3/425).

दूसरा :

बुखारी (हदीस संख्या : 737) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 391) - और शब्द मुस्लिम के हैं - ने मालिक बिन हुवैरिस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब तक्बीर कहते तो अपने दोनों हाथों को उठाते थे यहाँ तक कि उन्हें अपने दोनों कानों के बराबर कर लेते, और जब रूकूअ करते तो अपने दोनों हाथों को उठाते यहाँ तक कि उन्हें अपने दोनों कानों के बराबर कर लेते, और जब अपने सिर को रुकूअ से उठाते तो समिअल्लाहु लिमन हमिदह कहते तब भी ऐसा ही करते थे।

तथा इसे नसाई (हदीस संख्या : 1085) ने रिवायत किया है और यह वृद्धि की है कि: ‘‘और जब सज्दा करते, और जब सज्दे से अपना सिर उठाते (तब भी दोनों हाथों को उठाते), यहाँ तक कि उन दोनों को अपने कानों की लौ के बराबर कर लेते।’’

अल्बानी ने ‘‘सहीह नसाई’’ में इसे सहीह कहा है।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह फरमाते हैं कि :

‘‘सज्दे में हाथ उठाने के बारे में मुझे जो सबसे सहीह हदीस पता चली है वह नसाई की रिवायत की हुई हदीस है . . . ’’. फिर उन्हों ने इस हदीस का उल्लेख किया है।

तथा इमाम अहमद (हदीस संख्या : 20014) ने मालिक बिन हुवैरिस रज़ियल्लाहु अन्हु से इन शब्दों के साथ रिवायत किया है कि : ‘‘नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रुकूअ और सज्दे में अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कानों की लौ के बराबर तक उठाते थे।’’

तथा इब्ने अबी शैबा (हदीस संख्या : 2449) ने अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है किः ‘‘ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रुकूअ और सज्दे में अपने दोनों हाथों को उठाते थे।’’ इसे अल्बानी ने इर्वाउल गलील (2/68) में सही कहा है।

अतः विद्वानों ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस के बीच, जिसमें उन्हों ने सज्दे में हाथ उठाने का इन्कार किया है, तथा मालिक बिन हुवैरिस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस और अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस तथा उन दोनों के अर्थ में वर्णित अन्य हदीसें जो सज्दे में हाथ उठाने का तर्क देती हैं, के बीच संयोजन (सामंजस्य) में मतभेद किया है :

- चुनाँचे उनमें से कुछ इस बात की ओर गए हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कभी कभी हाथ उठाते थे, लेकिन अक्सर हालतों में हाथ नहीं उठाते थे।

तथा इब्ने रजब रहिमहुल्लाह ने कुछ रिवायतों का उल्लेख किया है जिनमें सज्दे में हाथ उठाने का वर्णन है, फिर फरमाया : ‘‘इन सभी रिवायतों का उत्तर, इस बात को मानते हुए कि उनमें हाथ उठाने का वर्णन सुरक्षित है, और उसमें तक्बीर कहने का वर्णन हाथ उठाने के साथ संदिग्ध नहीं हुआ है, यह दिया जायेगा कि मालिक बिन हुवैरिस और वाइल बिन हुज्र : मदीना के वासियों में से नहीं थे, बल्कि वे दोनों एक या दो बार मदीना आए थे। तो शायद उन दोनों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमको एक बार ऐसा करते हुए देखा हो। जबकि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा का इनकार (खण्डन) इसका विरोध कर रहा है, हालांकि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ लगे रहते थे और आपके कार्यों को सुरक्षित रखने और उसके अंदर आपका अनुसरण करने के बड़े इच्छुक थे। इससे पता चलता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अधिकांश मामला तीन स्थानों और दो रकअत से उठने के अलावा में हाथ उठाने को त्यागने का था।

तथा सज्दे वगैरह के समय हाथ उठाने के बारे में मालूल (कमज़ोर) हदीसें वर्णित हैं।’’

इब्ने रजब की किताब ‘‘फत्हुल बारी’’ (6/354).

तथा सिंधी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

‘‘प्रत्यक्ष बात यह है कि आप कभी-कभी ऐसा करते थे और कभी ऐसा नहीं करते थे। लेकिन अक्सर (अधिकांश) विद्वानों का मत सज्दे के समय हाथ न उठाने का है, मानों उन्हों ने यह मत इसलिए अपनाया है कि असल (मूल सिद्धांत) हाथ न उठाना है। तो जिस समय हाथ उठाने और हाथ न उठाने की हदीस में टकराव हो गया : तो उन्हों ने मूल बात को अपनाया। और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।’’ समाप्त हुआ।

- तथा अक्सर (अधिकांश) लोग हाथ न उठाने को तर्जीह (प्राथमिकता) देने (उचित ठहराने) की ओर गए हैं, क्योंकि रिवायत और दिरायत (हदीस की समझ) के एतिबार से वही महफूज़ (सुरक्षित) है, तथा उन्हों ने हाथ उठाने की रिवायतों पर शाज़ होने का हुक्म लगाया है, और यह कि रावी (हदीस वर्णन करनेवाले) ने गलती से तक्बीर के बजाय हाथ उठाने का उल्लेख कर दिया है ; क्योंकि सहीह बात यह है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर झुकने और उठने में तक्बीर कहते थे, जैसा कि बुखारी (हदीस संख्या : 785) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 392) में है।

तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 253) ने अब्दुल्लाह बिन मसऊद से रिवायत किया है कि: ‘‘अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर झुकने और उठने, खड़े होने और बैठने में तक्बीर कहते थे, तथा अबू बक्र और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा भी ऐसा ही करते थे।’’

इसके बाद तिर्मिज़ी कहते हैं : ‘‘अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस एक हसन सहीह हदीस है, तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा के निकट इसपर अमल है, इनमें से अबू बक्र, उमर, उसमान, अली, वगैरहुम और उनके बाद ताबेईन हैं, और इसी पर सामान्य फुक़हा और उलमा हैं।’’ समाप्त हुआ।

तथा इमाम दारक़ुत्नी की किताब ‘‘अल-इलल्’’ (हदीस संख्या : 1763) में है कि: उनसे अबू हुरैरा के माध्यम से अबू सलमह की हदीस के बारे में पूछा गया कि : वह हर तक्बीर में अपने दोनों हाथों को उठाते थे, और कहते थे : यदि मेरा हाथ काट दिया जाए तो मैं अपनी बाँह को उठाऊँगा। और यदि मेरी बाँह काट दी जाए तो मैं अपने बाज़ू को उठाऊँगा।

तो उन्हों ने कहा : इसे रफ्दा बिन क़ुज़ाआ गस्सानी ने औज़ाइ से, उन्हों ने यह्या बिन अबी सलमह से इसी तरह रिवायत किया है।

तथा मुबश्शिर बिन इसमाईल वगैरह ने उनकी मुखालफत की है, चुनाँचे उन्हों ने इसे औज़ाइ से, उन्होंने यह्या से, उन्हों ने अबू सलमह से रिवायत की है कि मैं ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु को तक्बीर कहते हुए देखा। उन्हों ने हाथ उठाने का उल्लेख नहीं किया है। और उसके अंत में है : यह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नमाज़ है, और यही सही है।

तथा मुहम्मद बिन अम्र ने इसे अबू सलमह के माध्यम से अबू हुरैरा से रिवायत किया है।

चुनाँचे अम्र बिन अली ने इब्ने अबी अदी से, उन्होंने मुहम्मद बिन अम्र से, उन्होंने अबू सलमह से, उन्हों ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि वह हर झुकते और उठते समय अपने दोनों हाथों को उठाते थे, और कहते थे : मैं तुम में सबसे अधिक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समान नमाज़ पढ़ने वाला हूँ।

तथा अम्र बिन अली की इस पर मुताबअत (अनुसरण) नहीं की गई है।

तथा उनके अलावा ने इस तरह रिवायत किया है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर झुकते और उठते समय तक्बीर कहते थे, और यही बात सहीह है।’’ किताब ‘‘अल-इलल’’ (9/283) से समाप्त हुआ।

तथा इब्नुल क़ैसरानी के ‘‘तज़किरतुल हुफ्फाज़’’ (89, संख्या : 192) में है कि :

''192- ''नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर झुकते और उठते समय अपने दोनों हाथों को उठाते थे . . .’’ हदीस के अंत तक।

इसे रफ्दा बिन क़ुज़ाआ गस्सानी ने औज़ाई से, उन्हों ने उबैदुल्लाह बिन उबैद बिन उमैर से, उन्हों ने अपने बाप (उबैद बिन उमैर) से, उन्हों ने उनके दादा (उमैर) से, उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है।

इस खबर की इस्नाद मक़लूब (उलट पलट की हुई है) और उसकी हदीस मुन्कर है, अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने दोनों हाथ हर झुकते और उठते समय कभी नहीं उठाए।

ज़ुहरी की सालिम के माध्यम से उनके बाप की सूचना स्पष्ट रूप से इसके विपरीत है; आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दोनों सज्दों के बीच ऐसा नहीं किया है।

और यह रफ्दा ज़ईफ (कमज़ोर) हैं, उन्हों ने इस हदीस को अकेले रिवायत किया है।’’ समाप्त हुआ।

तथा देखें : ‘‘मनहजुल इमाम अहमद फी एलालि हदीस’’ बशीर अली उमर (1/129-131).

तथा स्थायी समिति के विद्वानों से पूछा गया :

कुछ हदीसें दोनों सज्दों के बीच हाथ उठाने के बारे में वर्णित हैं और कुछ हदीसों में उन दोनों के बीच हाथ उठाने से मना किया गया है, तो इन दोनों हदीसों के बीच सामंजस्य (मिलान) करने का क्या तरीक़ा है?

तो उन्हों ने उत्तर दिया : ‘‘कुछ विद्वानों ने इस मुद्दे में तर्जीह (किसी एक को प्राथमिकता देने) का रास्ता अपनाया है ; चुनाँचे उन्हों ने बुखारी और मुस्लिम की इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत की गई हदीस को तर्जीह दी है कि सज्दा करते और उससे उठते समय दोनों हाथों को नहीं उठाया जायेगा, और उनमें हाथ उठाने की रिवायत को शाज़ समझा है क्योंकि वह अधिक भरोसेमंद (विश्वस्त) रिवायत के खिलाफ है।

तथा दूसरे लोगों ने विभिन्न रिवायतों के बीच सामंजस्य और मिलान की विधि अपनाई है क्योंकि ऐसा करना संभव है। अतः इसे छोड़कर तर्जीह की विधि नहीं अपनाई जायेगी। क्योंकि सामंजस्य की अपेक्षा यह है कि सभी साबित रिवायतों पर अमल हो जाता है। जबकि तर्जीह की अपेक्षा यह है कि कुछ साबित चीज़ों को रद्द कर दिया जाए जो असल (मूल सिद्धांत) के विरूद्ध है। इसका विवरण यह है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी कभी सज्दे में और उससे उठते समय अपने दोनों को उठाया है, और कभी कभी नहीं उठाया है। तो हर एक रावी ने जो देखा है उसे वर्णन किया है।

पहले विचार पर अमल करना बेहतर है उसके साथ वर्णित नियम व सिद्धांत की वजह से।’’ स्थायी समिति की बात समाप्त हुई।

‘‘फतावा स्थायी समिति’’ (6/345).

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

‘‘जब इब्ने उमर - रज़ियल्लाहु अन्हुमा - जो कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कार्य का खोज और तलाश करने के बड़े लालायित थे, उन्हों ने वास्तव में उसका खोज और तलाश किया है, तो उन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तक्बीर, रुकूअ करने और उससे उठने, तथा पहले तशह्हुद से उठते हुए अपने दोनों हाथों को उठाते हुए देखा।और फरमाया : ‘‘आप सज्दे में ऐसा नहीं करते थे।’’ अतः यह उस हदीस से अधिक सहीह है कि : ‘‘नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब भी झुकते और जब भी उठते तो अपने दोनों हाथों को उठाते थे।’’ और यह नहीं कहा जायेगा कि: यह हदीस साबित करनेवाले और अस्वीकार करने वाले के अध्याय से है, और यह कि जिसने हाथ उठाने को साबित किया है वह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस में निषेद्ध करनेवाले पर प्राथमिकता रखता है, क्योंकि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस इस बात को स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि उनका इनकार करना उनके हाथ उठाने की जानकारी न होने की वजह से नहीं है, बल्कि उनके हाथ न उठाने की जानकारी की वजह से है। इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा को हाथ न उठाने का यक़ीन था, और उन्हों ने निश्चित तौर पर बयान किया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने सज्दे में ऐसा नहीं किया, जबकि उन्हों ने निश्चित तौर पर यह वर्णन किया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रुकूअ में, रुकूअ से उठने, तक्बीरतुल एहराम के समय और पहले तशह्हुद से उठते हुए ऐसा किया है।

अतः यह मसअला (मुद्दा) साबित करने और इनकार करने वाले के अध्याय से नहीं है जिसमें साबित करने वाले को प्राथमिकता दी जाती है इस संभावना के कारण कि इनकार करनेवाला मामले से अनभिज्ञ हो सकता है। क्योंकि यहाँ पर इनकार करने वाले का इनकार ज्ञान, खोज और विभाजन के आधार पर था। सो उनका इनकार ज्ञान पर आधारित इनकार है, उसमें अज्ञानता की कोई संभावना नहीं है। इसलिए इसमें मननचिंतन करें क्योंकि यह लाभदायक महत्वपूर्ण है।’’ अंत

‘‘मजमूअ फतावा व रसाइल इब्न उसैमीन’’ (13/45-46)

दोनों कथनों में राजेह (सही कथन) - और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है - हाथ न उठाने का कथन है। और यही कथन अधिकांश विद्वानों का भी है। लेकिन जिसके निकट हाथ उठाने की रिवायत की प्रामाणिकता राजेह है और उसने पहले कथन को अपनाया, और कभी कभी हाथ उठा लिया : तो उसपर इनकार नहीं किया जायेगा ; क्योंकि यह एक इज्तिहादी (इज्तिहाद पर आधारित) मुद्दा है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर