शनिवार 18 शव्वाल 1445 - 27 अप्रैल 2024
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उसे सच्ची या झूठी कसम खाने की आदत है, तो वह इन कसमों का प्रायश्चित कैसे करे?

प्रश्न

दुर्भाग्य से, मुझे बचपन ही से सच्ची या झूठी कसमें खाने की आदत पड़ गई और मैंने इस बुरी आदत को छोड़ने की बहुत कोशिश की। लेकिन मुझे लगता है कि अब मैं सही रास्ते पर हूँ। मेरा सवाल यह है कि पिछली क़समों का क्या हुक्म है? मुझे क्या करना चाहिए कि अल्लाह मुझे माफ़ कर दे? क्या मैं हर क़सम का कफ़्फ़ारा अदा करूँ, लेकिन समस्या यह है कि मुझे उन क़समों की संख्या मालूम नहीं है जो मैंने खाई हैं।

उत्तर का सारांश

यह है कि जो क़सम आपने भविष्य में किसी चीज़ के करने या न करने पर खाई है, और उसे तोड़ दिया है, तो उसमें आप पर कफ्फारा अनिवार्य है। और जो क़सम आपने अतीत में किसी चीज़ पर खाई है कि आपने उसे किया था या नहीं किया था और आप उसमें झूठे हैं, तो उसपर कोई कफ्फारा नहीं है, और आपको अल्लाह के सामने तौबा करना चाहिए और अल्लाह तआला तौबा करने वाले की तौबा को स्वीकार करता है और क्षमा कर देता है। अल्लाह आपको सामर्थ्य प्रदान करे और आपके पापों को क्षमा करे।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

क़सम तीन प्रकार की होती हैं:

पहली :

आयोजित क़सम : यह वह क़सम हैं जिसका क़सम खाने वाला व्यक्ति इरादा रखता है और उसपर सुदृढ़ होता है, तथा यह भविष्य के किसी मामले पर आधारित होती है कि वह उसे करेगा या उसे नहीं करेगा।

इसका हुक्म यह है कि : इस क़सम को तोड़ने की सूरत में कफ्फारा (प्रायश्चित) वाजिब है।

इब्ने कुदामा, रहिमहुल्लाह कहते हैं : “जिस व्यक्ति ने कुछ करने की क़सम खाई, फिर उसे नहीं किया, या कुछ न करने की क़सम खाई, फिर उसे कर लिया, तो उस पर कफ्फारा (प्रायश्चित) वाजिब है।” सभी क्षेत्रों के फ़ुक़हा के बीच इसमें कोई मतभेद नहीं है।

इब्ने अब्दुल-बर्र कहते हैं : मुसलमानों की सर्वसम्मति के अनुसार, जिस क़सम में कफ्फारा (प्रायश्चित) अनिवार्य है, वह भविष्य के कार्यों पर खाई गई क़सम है।'' अल-मुग़्नी (9/390)।

दूसरी :

व्यर्थ क़सम : यह क़सम के इरादे के बिना क़सम खाना है, और इस क़सम में कोई कफ्फारा (प्रायश्चित) नहीं है। 

क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है:

لا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَكِنْ يُؤَاخِذُكُمْ بِمَا كَسَبَتْ قُلُوبُكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ

البقرة/225

''अल्लाह तुम्हें तुम्हारी क़समों में निरर्थक पर नहीं पकड़ता, बल्कि तुम्हें उसपर पकड़ता है, जिसका तुम्हारे दिलों ने इरादा किया है। और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत सहनशील है।'' (सूरतुल-बक़रा : 225)।

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती है :

यह आयत لا يؤاخذكم الله باللغو في أيمانكم  “अल्लाह तआला तुम्हें तुम्हारी क़समों में निरर्थक पर नहीं पकड़ता।” आदमी के इस प्रकार क़सम खाने: ''ला वल्लाह, बला वल्लाह (नहीं, अल्लाह की क़सम!, क्यों नहीं, अल्लाह की क़सम!) के बारे में उतरी।'' इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4613) ने रिवायत किया है।

जो व्यक्ति किसी ऐसी चीज़ पर क़सम खाए जिसे वह समझता है कि वह वैसी ही है जैसी उसने क़सम खाई है, पर वह उसके विपरीत निकली, तो अधिकांश विद्वानों के अनुसार उसपर कोई कफ्फारा (प्रायश्चित) नहीं है और वह व्यर्थ शपथ में से है।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह कहते हैं : “जो व्यक्ति किसी चीज़ पर य समझते हुए क़सम खाए कि वह वैसी ही है जैसी उसने क़सम खाई थी, पर वह वैसी नहीं थी, तो उसपर कफ्फारा (प्रायश्चित) नहीं है; क्योंकि यह व्यर्थ शपथ में से है।'' अधिकांश विद्वानों का मत है कि इस क़सम में कोई कफ्फारा (प्रायश्चित) नहीं है। यह बात इब्नुल-मुंज़िर ने कही है। यही मत इब्ने अब्बास, अबू हुरैरा, अबू मालिक, ज़ुरारह बिन औफ़ा, हसन, नखई, मालिक, अबू हनीफा और सौरी से वर्णित है। 

जिन लोगों ने कहा है कि : यह व्यर्थ क़सम है, उनमें : मुजाहिद, सुलैमान बिन यसार, औज़ाई, सौरी और अबू हनीफा और उनके साथी हैं।

अधिकांश विद्वानों का यह मत है कि व्यर्थ कसम में कोई कफ्फारा (प्रायश्चित) नहीं है। इब्ने अब्दुल-बर्र रहिमहुल्लाह कहते हैं : इस पर मुसलमानों की सर्वसम्मति है।

क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :

لا يؤاخذكم الله باللغو في أيمانكم

“अल्लाह तआला तुम्हें तुम्हारी क़समों में निरर्थक पर नहीं पकड़ता।” और यह उसी में से है, और इसलिए भी कि उसका विरोध का इरादा नहीं था। अतः यह ऐसा है जैसे उसने भूलकर क़सम तोड़ दी हो।” ''अल-मुग़्नी'' (393/9) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तीसरी :

किसी अतीत की बात पर झूठी क़सम खाना। यह बड़े गुनाहों में से है, और विद्वानों की बहुमत के निकट इसमें कोई कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) नहीं है। क्योंकि यह इससे कहीं बड़ा है कि प्रायश्चित किया जाए।

जब यह ज्ञात हो गया, तो तुमने जो पक्की (आयोजित) क़सम खाई है और उसे तोड़ दिया है, तो उसमें तुम्हारे लिए कफ़्फ़ारा आवश्यक हो जाता है।

यदि आप इन क़समों की संख्या भूल गए हैं, तो आप भरपूर प्रयास करें और इतना प्रायश्चित करें (कफ़्फ़ारा निकालें) कि आपको यह प्रबल गुमान हो जाए कि आप उसके द्वारा दोष से मुक्त हो जाएँगे।

और इन क़समों में से जो एक ही काम के करने, या एक ही काम के छोड़ने से संबंधित है, तो उसमें एक ही कफ़्फ़ारा अनिवार्य है, उसका उदाहरण यह है कि आप यह क़सम खा लें कि फलाँ से बात नहीं करेंगे, फिर आप उस क़सम को तोड़ दें और उसका कफ़्फ़ारा न अदा करें, फिर आप दोबारा क़सम खा लें कि उससे बात नहीं करेंगे, फिर उस क़सम को तोड़ दें, तो आप पर केवल एक कफ्फारा अनिवार्य है।

इसके विपरीत यदि आपने उससे बात न करने की क़सम खाई है, फिर आपने, उदाहरण के लिए, उसका खाना न खाने की क़सम खाई है, तो ऐसी स्थिति में आपको दो प्रायश्चित्त करने होंगे। इसका उल्लेख प्रश्न संख्या : (34730) के उत्तर में पहले किया जा चुका है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर