हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
तकलीफ़ी अहकाम (शरीयत द्वारा बाध्य किए गए प्रावधानों) के पाँच प्रकार हैंः वाजिब (अनिवार्य) हराम (निषिद्ध) मुस्तहब (वांछनीय) मक्रूह (घृणास्पद) और मुबाह (अनुमेय)।
ये पांचों प्रावधान रोज़े में पाए जाते हैं, हम इन प्रावधानों में से प्रत्येक के तहत आने वाले सभी प्रावधानों का उल्लेख नहीं करेंगे। केवल हम उसी का उल्लेख करेंगे जो आसान है।
पहला : अनिवार्य रोज़ा :
1- रमज़ान के रोज़े।
2- रमज़ान की क़ज़ा को रोज़े।
3- कफ़्फारे (प्रायश्चित) के रोज़े (त्रुटि से की गई हत्या का कफ़्फारा, ज़िहार (जाहिली दौर के तलाक़ की एक पकार), रमज़ान के दिन में रोज़े की हालत में संभोग करने की वजह से अनिवार्य होने वाला कफ़्फ़ारा, क़सम का कफ़्फ़ारा)।
(ज़िहार का अर्थ है पति का अपनी पत्नी से यह कहना कि तू मुझ पर मेरी माँ की पीठ के समान है। इस्लाम से पूर्व अरब समाज में यह कुरीति थी कि पति अपनी पत्नी से यह कह देता तो पत्नी को तलाक़ हो जाती थी।)
4- हज्ज तमत्तु करने वाले का रोज़ा जब वह क़ुर्बानी का जानवर न पाए, (अल्लाह तआला का फरमान हैः)
( فَمَنْ تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ إِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلاثَةِ أَيَّامٍ فِي الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ ) البقرة/196 .
“फिर जो व्यक्ति हदी (क़ुर्बानी का जानवर) न पाए तो वह तीन रोज़े हज्ज के दिनों में रखे और सात रोज़े उस समय जब तुम घर लौट आओ।” (सूरतुल बक़रा : 196).
5- नज़्र (मन्नत) के रोज़े।
दूसराः मुस्तहब (वांछनीय) रोज़ेः
1- आशूरा (अर्थात् दस मुहर्रम) का रोज़ा।
2- अरफ़ा के दिन का रोज़ा।
3- प्रत्येक सप्ताह सोमवार और गुरूवार (जुमेरात) का रोज़ा।
4- हर महीने में तीन दिन का रोज़ा रखना।
5- शव्वाल के महीने में छह दिनों का रोज़ा रखना।
6- शाबान के अक्सर दिनों का रोज़ा रखना।
7- मुहर्रम के महीने में रोज़ा रखना।
8- एक दिन रोज़ा रखना और एक दिन रोज़ा न रखना, यह सब से श्रेष्ठ रोज़ा है।
ये सभी रोज़े सहीह और हसन हदीसों से साबित हैं और ये इस वेबसाइट पर मौजूद हैं।
तीसराः मक्रूह (घृणित) रोज़ेः
1- अकेले शुक्रवार (जुमा के दिन) का रोज़ा रखना।
क्योंकि अल्लाह के पैगबंर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है किः “अकेले शुक्रवार (जुमा के दिन) का रोज़ा न रखो सिवाय इसके कि तुम (शुक्रवार के साथ) एक दिन पहले या एक दिन बाद का भी रोज़ा रखो।” (सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम).
2- अकेले शनिवार का रोज़ा रखनाः
क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान हैः “शनिवार का रोज़ा न रखो सिवाय उसके जो अल्लाह तआला ने तुम पर फ़र्ज किया है। अगर तुम में से किसी को अंगूर की छाल या पेड़ की ठहनी के अलावा कुछ न मिले तो वह उसी को चबा ले।”
इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्याः 744) ने रिवायत किया है और हसन क़रार दिया है। तथा अबू दाऊद (हदीस संख्याः 2421) और इब्ने माजा (हदीस संख्याः 1726) ने रिवायत किया है और अल्लामा अल्बानी रहिमहुल्लाह ने इर्वाउल गलील (हदीस संख्या : 960) में इस हदीस को सहीह करार दिया है।
इमाम तिर्मिज़ी रहिमहुल्लाह कहते हैं किः
“इसमें कराहत का अर्थ यह है कि आदमी शनिवार को रोज़ा रखने के लिए विशिष्ट कर ले, क्योंकि यहूदी शनिवार (सप्ताह के दिन) का सम्मान करते हैं।” अंत हुआ।
चैथाः हारम (निषिद्ध) रोज़ेः
1- ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़्हा के दिन रोज़ा रखना, इसी प्रकार तश्रीक़ के दिनों का रोज़ा रखना जो कि क़ुर्बानी के दिन (10 ज़ुल-हिज्जा) के बाद तीन दिन हैं (अर्थात 11, 12 और 13 ज़ुल-हिज्जा के दिन)।
2- संदेह के दिन का रोज़ा रखना।
इससे अभिप्राय तीस शाबान का दिन है, यदि (उन्तीस शाबान को) आकाश में कोई ऐसी चीज़ है जो चंद्रमा को देखने से रोकती है। लेकिन यदि आकाश साफ़ है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है।
3- मासिक धर्म और प्रसव (निफ़ास) वाली महिला का रोज़ा रखना।
पांचवां : मुबाह (अनुमत) रोज़ाः
यह वह रोज़ा है जो उपर्युक्त चारों प्रकारों में से किसी एक के तहत नहीं आता है।
यहाँ मुबाह का मतलब यह है किः निर्धारित रूप से इस दिन का रोज़ा रखने का न तो आदेश आया है और न ही उसका रोज़ा रखने से मना किया गया है, जैसेः मंगलवार और बुधवार, हालांकि बुनियादी तौर पर नफ़ली रोज़ा रखना एक मुस्तहब इबादत है।
देखेंः “अल-मौसूअतुल फ़िक़्हिय्या” (28/10-19) और “अश-शर्हुल मुम्ते” (6/457- 483).
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।