शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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सलसुल-बौल (मूत्र असंयम) से पीड़ित व्यक्ति की पवित्रता और नमाज़

प्रश्न

मुझे ऐसा महसूस होता है कि पेशाब की कुछ बूंदें निकलती रहती हैं। मैंने नमाज़ के सबंध में पूछा, तो मुझे बताया गया कि हर नमाज़ के वक़्त वुज़ू करो और जितनी नमाज़ें पढ़ना चाहो पढ़ो तथा जब दूसरी नमाज़ का वक़्त आए, तो नया वुजू करो। मेरा प्रश्न यह है कि :

क्या मेरे लिए नमाज़ का वक़्त शुरू होने से पहले वुज़ू करना जायज़ है, ताकि, उदाहरण के लिए, मैं मस्जिद में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ सकूंॽ तथा जब मैं घर से बाहर होती हूँ तो क्या मेरे लिए उस वुज़ू के साथ उन नमाज़ों को पढ़ना जायज़ है जिनका समय होने वाला है, और यदि यह जायज़ नहीं है तो मुझे अपने अंदरुनी कपड़े को पाक करने के लिए क्या करना चाहिए ताकि मैं वुज़ू कर सकूँ और उसके साथ नमाज़ पढ़ सकूंॽ क्या मेरे लिए एक वुज़ू के साथ लंबी नमाज़ पढ़ना जायज़ है, जैसे इशा की नमाज़ और फिर उसी वुज़ू के साथ तरावीह की नमाज़ॽ अल्लाह आप सभी को प्रत्येक प्रकार का बेहतरीन प्रतिफल दे...

उत्तर का सारांश

जिस किसी को ह़दस (नापाकी) की शिकायत निरंतर रहती हो, जैसे सलसुल-बौल का रोगी, तो अधिकांश विद्वानों ने सलसुल बौल के रोगी को मुस्तह़ाज़ा अर्थात अनियमित गैर-मासिक रक्तस्राव से पीड़ित महिला के समान नियमों के अंतर्गत आने वाला माना है। और वह : - नापाकी (अशुद्धता) को फैलने से रोकने वाले साधनों का प्रयोग करते हुए - प्रत्येक नमाज़ के समय वुज़ू करेगा तथा अपने उस वुज़ू के साथ जितना भी चाहे फ़र्ज़ (अनिवार्य) एवं नफ़्ल नमाज़ें पढ़ेगा। यदि मान लिया जाए कि सलसुल-बौल से पीड़ित व्यक्ति ने वुज़ू किया, फिर उसके बाद पेशाब का कुछ भी क़तरा नहीं निकला और दूसरी नमाज़ का समय शुरू होगया, तो उसके लिए दोबारा वुज़ू करना ज़रूरी नहीं है, बल्कि वह अभी भी अपने पहले वुज़ू पर बाक़ी है। तथा उसके लिए दो नमाज़ों को एकत्र करने की (भी) अनुमति है।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सलसुल-बौल के रोगी का हुक्म इस्तिहाज़ा वाली महिला के हुक्म के समान है।

1. जिस व्यक्ति को ह़दस (नापाकी) की शिकायत निरंतर रहती हो, जैसे सलसुल-बौल और हवा निकलने से पीड़ित व्यक्ति, वह प्रत्येक नमाज़ के समय वुज़ू करेगा और जब तक कि दूसरी नमाज़ का समय न हो जाए, वह अपने उस वुज़ू के साथ जितना भी चाहे फ़र्ज़ (अनिवार्य) एवं नफ़्ल नमाज़ें पढ़ेगा।

इसकी दलील सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित यह हदीस है। उनका वर्णन है : फातिमा बिन्ते अबी हुबैश नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आईं और प्रश्न किया : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं एक ऐसी महिला हूँ कि इस्तिह़ाज़ा (गैर-मासिक रक्तस्राव) से पीड़ित रहती हूँ, इसलिए मैं पाक नहीं रहती हूँ तो क्या मैं नमाज़ छोड़ दूँॽ तब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

“नहीं, बल्कि यह एक रग का रक्त है तथा यह माहवारी का रक्त नहीं है। अतः जब आपका मासिक धर्म शुरू हो, तो नमाज़ छोड़ दो और जब वह समय सनाप्त हो जाए, तो रक्त धो लो (अर्थात स्नान कर लो) और नमाज़ पढ़ो। फिर हर नमाज़ के लिए वुज़ू करो जब तक कि माहवारी का नियमित समय न आ जाए।”

(सहीह बुख़ारी, (हदीस संख्या : 228), सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 333), हदीस के ये शब्द सहीह बुख़ारी के हैं।)

सलसुल-बौल के रोगी को विद्वानों ने इस्तिहाज़ा (अनियमित गैर-मासिक रक्तस्राव) से पीड़ित महिला के समान नियमों के अंतर्गत आने वाला माना है।

परंतु यदि सलसुल-बौल के रोगी को यह मालूम हो कि किसी समय पेशाब के क़तरे टपकना बंद हो जाते हैं जो उसके वुज़ू और नमाज़ के लिए पर्याप्त होता है, तो उसके लिए उस समय तक के लिए नमाज़ को विलंबित करना अनिवार्य है।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“सलसुल-बौल से पीड़ित व्यक्ति की दो स्थितियाँ हैं :

प्रथम स्थिति : यदि उसे पेशाब लगातार आता हो, किसी भी समय रुकता न हो। जब भी मूत्राशय में कुछ जमा होता हो तो बाहर निकल जाता हो : तो ऐसा व्यक्ति नमाज़ का समय होने पर वुज़ू करेगा तथा अपने गुप्तांगों पर कुछ बांध लेगा और नमाज़ पढ़ेगा। यदि इसके बाद कुछ निकलता है, तो उससे कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा।

दूसरी स्थिति :

यदि उसके पेशाब करने के बाद पेशाब का टपकना बंद हो जाता हो, भले ही पेशाब करने के 10 या 15 मिनट बाद सही, तो ऐसा व्यक्ति पेशाब के रुकने का इंतिज़ार करेगा फिर वुज़ू करके नमाज़ पढ़ेगा, भले ही उसकी जमाअ़त की नमाज छूट जाए।”

(देखिए : अस्इलह अल-बाब अल-मफ्तूह, प्रश्न सं. : 17, बैठक सं. : 67)

मुस्तह़ाज़ा (अनियमित गैर-मासिक रक्तस्राव से पीड़ित महिला) की पवित्रता

इस्तिहाज़ा से पीड़ित महिला और उसके जैसे अन्य लोगों की त़हारत (पवित्रता) के संबंध में विद्वानों का मतभेद है कि क्या नमाज़ का समय समाप्त होने पर त़हारत अमान्य होती है या अगली नमाज़ का समय शुरू होने परॽ उदाहरण के तौर पर इसका परिणाम उस महिला पर प्रकट होता है जिसने सुबह की नमाज़ के लिए वुज़ू किया था। तो क्या वह इस वुज़ू के साथ चाश्त की नमाज़ और ईद की नमाज़ पढ़ सकती है या नहीं?

जिन लोगों का यह कहना है कि उसकी पवित्रता समय की समाप्ति के साथ अमान्य हो जाती है, तो उन्होंने उसे ऐसा करने से रोका है, क्योंकि सूरज उगने के साथ उसकी पवित्रता समाप्त होगई।

और जिनका यह कहना है कि : अगली नमाज़ का समय शुरू होने पर उसकी पवित्रता अमान्य होती है, तो उनके नज़दीक ऐसी महिला के लिए सुबह के वुज़ू से चाश्त की नमाज़ और ईद की नमाज़ पढ़ना जायज़ है, क्योंकि उसकी पवित्रता यानी वुज़ू ज़ुहर की नमाज़ का समय शुरू होने तक बरक़रार रहेगी।

ये दोनों कथन इमाम अहमद और अन्य लोगों के मत में वर्णित हैं। 

“अल-इंसाफ़” (1/378), “अल-मौसूअ़ह अल-फ़िक्हिय्यह” (3/212)

अधिक सावधानी का पक्ष यह है कि वह चाश्त और ईद की नमाज़ के लिए नया वुज़ू करे। यही फ़तवा शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने भी दिया है। तथा अधिक लाभ के लिए प्रश्न संख्या : (22843) का उत्तर देखें।

2. ऊपर जो कुछ उल्लेख किया गया है, उसके आधार पर : आपके लिए वक़्त़ से पहले वुज़ू करना सही नहीं है ताकि आप बाद में नमाज़ पढ़े, चाहे ऐसा जमाअत के साथ नमाज़ पाने के लिए किया जाए या किसी और उद्देश्य के लिए, क्योंकि नया समय शुरू होने पर आपका वुज़ू टूट जाएगा।

परंतु हम यहाँ चेतावनी देना चाहेंगे कि यह हुक्म निरंतर नापाक रहने और बाहर ख़ारिज होने वाली चीज़ के निकलने से संबंधित है। लेकिन यदि यह मान लिया जाए कि सलसुल बौल से पीड़ित व्यक्ति ने वुज़ू किया, फिर उससे कोई चीज़ नहीं निकली यहाँ तक कि दूसरी नमाज़ का वक़्त़ शुरू हो गया, तो उसके लिए वुज़ू करना ज़रूरी नहीं है, बल्कि वह अपने पहले वुज़ू पर बाक़ी है।

अतः फ़ुक़हा (धर्मशास्त्रियों) के कथन : “वह प्रत्येक नमाज़ के समय वुज़ू करेगा”, यह इस चीज़ के साथ प्रतिबंधित है जब उससे कोई चीज़ निकले।

बहूती रहिमहुल्लाह “अल-रौज़ अल-मुर्बे” (पृष्ठ : 57) में कहते हैं : “(तथा मुस्तह़ाज़ा औरत और इसी तरह के लोग) जो सलसुल-बौल अथवा मज़ी या हवा ख़ारिज होने की बीमारी से पीड़ित हो।... (वे प्रत्येक नमाज़ के समय) के शुरू होने पर (वुज़ू करेंगे) यदि उनसे कोई चीज़ ख़ारिज हुई है और जब तक समय बाक़ी है (फ़र्ज़ और नफ़्ल नमाज़ें पढ़ेंगे।), यदि कोई चीज़ ख़ारिज न हो, तो वुज़ू करना अनिवार्य नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं : “मुस्तह़ाज़ा औरत प्रत्येक नमाज़ के लिए वुज़ू करेगी यदि कोई चीज़ निकले। यदि उससे कोई चीज़ न निकले, तो वह अपने पहले वुज़ू पर बरक़रार रहेगी।” "अश-शर्ह अल-मुम्ते'” (1/438) उद्धरण समाप्त हुआ।

3. यदि आप घर से बाहर हैं और अगली नमाज़ का समय शुरू होने के कारण आपका वुज़ू अमान्य हो गया है और आप नमाज़ पढ़ना चाहती हैं, तो आपके लिए ज़रूरी है कि गुप्तांग को धोने और उसपर कोई ऐसी चीज़ बांधने के बाद दोबारा वुज़ू करें जो यथासंभव उत्सर्जन को बाहर निकलने से रोक सके।

तथा अंडरवियर की शुद्धि उसे धोने से प्राप्त होगी। और यदि आप नमाज़ पढ़ने के लिए कोई पाक-साफ़ कपड़ा चुन लें और उसे अपने साथ रखें तो यह आपके लिए आसान होगा। यदि आपके लिए कपड़ों का धोना या बदलना मुश्किल है तो आप उसी स्थिति में नमाज़ अदा कर लें।

शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“जो व्यक्ति सलसुल-बौल की बीमारी से पीड़ित हो और दवा-इलाज के बावजूद भी ठीक न हो, उसे चाहिए कि नमाज़ का समय हो जाने के बाद हर नमाज़ के लिए वुज़ू करे और उसके शरीर पर जो कुछ भी लगा हो उसे धोकर साफ कर ले, और यदि उसके लिए मुश्किल न हो तो नमाज़ पढ़ने के लिए अलग से एक पाक-साफ़ कपड़ा रखे, अन्यथा उसे छूट दी गई है। जैसा कि अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है :

وَمَا جَعَلَ عَلَيْكُمْ فِي الدِّينِ مِنْ حَرَجٍ 

الحج : ٧٨

“और नहीं बनाई तुम पर धर्म में कोई संकीर्णता (तंगी)।” (अल्-हज्ज : 78)

तथा अल्लाह ने यह भी फ़रमाया :

يُرِيدُ اللَّهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ

البقرة : ١٨٥

“अल्लाह तुम्हारे लिए सुविधा चाहता है, तंगी (असुविधा) नहीं चाहता” (अल्-बक़रह : 185)

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है :

“और जब मैं तुम्हें किसी चीज़ का आदेश दूँ तो जहाँ तक हो सके, उसका पालन करो।”

तथा उसे स्वयं के लिए ऐसी सावधानी बरतनी चाहिए, जो उसके कपड़े, या शरीर या नमाज़ पढ़ने की जगह पर मूत्र फैलने से रोक सके।” "फ़तावा इस्लामियह" (1/192) से उद्धरण समाप्त हुआ।

सलसुल-बौल के रोगी के लिए नमाज़ों को एकत्र करना

यदि प्रत्येक नमाज़ के लिए वुज़ू करना और कपड़े धोना आपके लिए मुश्किल हो, तो आपके लिए जायज़ है कि ज़ुहर और अ़स्र की नमाज़ को एकत्र कर लें। चुनाँचे दोनों नमाज़ों को किसी एक के समय में एक ही वुज़ू से पढ़ लें। इसी प्रकार मग़्रिब और इशा की नमाज़ों को एक साथ पढ़ लें। चाहे आप घर के अंदर हों या घर से बाहर हों।

शैखु़ल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह "मजमूउल-फ़तावा" (14/24) में कहते हैं : “बीमार और इस्तिह़ाज़ा से पीड़ित महिला दो नमाज़ों को एकत्र करेंगे।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह "अश-शर्ह अल-मुम्ते'” (4/559) में कहते हैं : “प्रत्येक नमाज़ के लिए वुज़ू करने की कठिनाई के कारण, इस्तिह़ाज़ा से पीड़ित महिला के लिए दोनों ज़ुहर अर्थात् ज़ुहर और अ़स्र कि नमाज़ों को एकत्र करना तथा दोनों इशा अर्थात मग़्रिब और इशा की नमाज़ों को एकत्र करना जायज़ है।” समाप्त हुआ।

क्या इस्तिह़ाज़ा से पीड़ित महिला के लिए इशा के वुज़ू से तरावीह़ की नमाज़ पढ़ना जायज़ है?

4. आपके लिए इशा के वुज़ू से तरावीह की नमाज़ पढ़ना जायज़ है यद्यपि तरावीह की नमाज़ आधी रात के बाद तक पढ़ी जाए।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया कि :

क्या इस्तिह़ाज़ा से पीड़ित महिला के लिए इशा के वुज़ू से क़ियामुल्लैल (तरावीह की नमाज) पढ़ना जायज़ है, जबकि तरावीह की नमाज़ आधी रात तक पढ़ी जाएॽ

तो शैख़ रहिमहुल्लाह ने उत्तर दिया :

“यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में विद्वानों के बीच मतभेद है। कुछ विद्वानों की राय है कि जब आधी रात बीत जाए, तो उसपर नए सिरे से वुज़ू करना अनिवार्य है। तथा यह भी कहा गया है कि : उसके लिए नए सिरे से वुज़ू करना अनिवार्य नहीं है। और यही राजेह (प्रबल) है।” "फ़तावा अत-त़हारह" (पृष्ठ : 286) से उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह ही सब से अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर