हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
शैख़ (इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह) का फतवा यह है कि यात्री उस समय तक सफर की रियायत को अपनाएगा, चुनाँचे वह नमाज़ को क़स्र एवं जमा (एकत्रित) करेगा और रोज़ा तोड़ देगा, जब तक वह एक यात्री माना जाता है, इसका कारण यह है कि शरीयत के नुसूस (पाठ) मुतलक़ (प्रतिबंध रहित) हैं। उनसे पहले शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह का भी यही विचार था। लेकिन जमहूर (अधिकांश) विद्वानों का विचार है कि यात्री यात्रा की रियायतों का लाभ तब तक उठा सकता है जब तक कि वह चार दिन या उससे अधिक समय तक ठहरने का इरादा नहीं रखता। इसी में सावधानी का पक्ष अधिक पाया जाता है। और शैख अब्दुल-अज़ीज़ इब्न बाज़ रहिमहुल्लाह भी इसी का फतवा दिया करते थे।